सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

पित्‍त के उतार-चढ़ाव को कैसे करें नियंत्रित

लीवर से निकलने वाला बाइल यानी की पीले रंग का वह रस जिसका मुख्‍य कार्य होता है वसा को शरीर में तोड़ना। पित्‍त का उतार-चढ़ाव शरीर के लिए बडी परेशानी पैदा कर सकता है। जब भी बाइल जूस आंत से ऊपर उठ कर पेट और गले में जाता है तो उल्‍टी, चक्‍कर, पेट दर्द और हृदय में जलन जैसी समस्‍या पैदा हो जाती है। चलिए जानते हैं बाइल जूस के उतार-चढ़ाव को कैसे ठीक किया जाए। 

प्राकृतिक उपचार 

1.आमतौर पर यह समस्‍या ज्‍यादा खा लेने की वजह से आती है। इसलिए सोने से 3-4 घंटे पहले ही खा लेना चाहिए जिससे खाना अच्‍छे से हज़म हो जाए और परेशानी न हो। 

2.कोशिश करें की कम-कम मात्रा में आहार का सेवन करें जिससे कि बाइल ज्‍यादा न बनें। रात में कम वसा वाला ही भोजन खाएं। 

3.डिनर में कभी भी तेल और मसालेदार युक्‍त भोजन न करें। यह पित्‍त को बढ़ाएगा और लीवर को फैट बर्न करने के लिए ज्‍यादा कार्य करना पड़ेगा। 

4.अगर आपको पित्‍त की ज्‍यादा परेशानी है तो रात में फलों का जूस न पिएं। ऐसे जूस जिसमें एसिड पाया जाता है जैसे, नींबू, मुसम्‍मी और संतरा लीवर में बाइल के प्रोडक्‍शन को और भी ज्‍यादा बढ़ा देते हैं। इन रसों में सिट्रस एसिड पाया जाता है। यही नहीं रात को शराब पीने से भी बचना चाहिए। 

5.पेट में गडबडी का कारण कैफीन, चॉकलेट, टमाटर, पुदीना, सिट्रस फ्रूट, सोडा और वसा युक्‍त आहार होते हैं, इसलिए इन्‍हें आपने भोजन में कम शामिल करें। 

6.बाइल को ऊपर आने से रोकने के लिए अपने सिर को ऊपर की तरफ रखें। सोने से पहले थोड़ा सा टहलना जरुरी है जिससे खाना हज़म हो जाए और बाइल से मुक्‍ती मिल सके। 

7.पित्‍त के ऊतार-चढ़ाव को खत्‍म करने के लिए रोज़ाना व्‍यायाम करें। यह सबसे बढि़यां प्राकृतिक उपचार है इससे मुक्‍ती पाने के लिए। 

8.शरीर में कभी पानी की कमी न होने दें। हमेशा सोने से पहले गरम पानी का सेवन करें।

ऐसे खाएं त्रिफला तो आंखों पर कभी चश्मा नहीं चढ़ेगा, बाल भी सफेद नहीं होंगे

कमजोरी के कारण शरीर बीमारियों का शिकार हो जाता है। लेकिन यदि हम थोड़ी सी सावधानी बरतकर और आयुर्वेद को अपनाए तो अपने स्वास्थ्य की सही तरह से देखभाल कर ही पाएंगे। साथ ही शरीर का कायाकल्प भी करने में आसानी होगी। त्रिफला ऐसी ही आयुर्वेदिक औषधी है जो शरीर का कायाकल्प कर सकती है। त्रिफला के सेवन से बहुत फायदे हैं। स्वस्थ रहने के लिए त्रिफला चूर्ण महत्वपूर्ण है। त्रिफला सिर्फ कब्ज दूर करने ही नहीं बल्कि कमजोर शरीर को एनर्जी देने में भी प्रयोग हो सकता है।

विधि- सूखा देसी आंवला, बड़ी हर्रे व बहेड़ा लेकर गुठली निकाल दें। तीनों समभाग मिलाकर महीन पीस लें। कपड़छान कर कांच की शीशी में भरकर रखें।

- त्रिफला के नियमित सेवन से कमजोरी दूर होती है।

- त्रिफला के नियमित सेवन से लंबे समय तक रोगों से दूर रहा जा सकता है।

- त्रिफला और इसका चूर्ण तीनों दोषों यानी वात,पित्त व कफ को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

- बालों के खराब होने और समय से पूर्व सफेद होने से भी त्रिफला के सेवन से बचा जा सकता है।

- गाय  व शहद के मिश्रण में (घी अधिक व शहद कम) के साथ त्रिफला चूर्ण का सेवन आंखों के लिए वरदानस्वरूप है। संयम के साथ इसका नियमित प्रयोग करने से आंखों के सारे रोग दूर हो जाते हैं। बुढ़ापे तक चश्मा नहीं लगेगा।

-त्रिफला के काढ़े से घाव धोने से एलोपैथिक एंटिसेप्टिक की आवश्यकता नहीं रहती। घाव जल्दी भर जाता है।

- त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है।

- रात को गुनगुने पानी के साथ त्रिफला लेने से कब्जियत नहीं रहती।

- सुबह के समय तरोताजा होकर खाली पेट ताजे पानी के साथ त्रिफला का सेवन करें और इसके बाद एक घंटे तक पानी के अलावा कुछ ना लें।

- मौसम को ध्यान में रखकर त्रिफला के साथ गुड़, सैंधा नमक, देशी खांड, सौंठ का चूर्ण, पीपल छोटी का चूर्ण, शहद इत्यादि  मिलाकर सेवन कर सकते हैं।

एक आसान उपाय: इससे कब्ज दूर होगी और खुलकर भूख लगने लगेगी


शरीर में पर्याप्त ऊर्जा के लिए सही समय पर पर्याप्त संतुलित आहार लेना जरूरी है। अगर आपके साथ ये समस्या है कि कार्य की अधिकता के चलते खाना-पीना कुछ याद नहीं रहता। ऐसे में खाने का सही समय निर्धारित न होने पर कुछ ही दिनों कम खाने की आदत पड़ जाती है, ठीक से भुख नहीं लगती। यदि आप फिर से अपनी भूख को बढ़ाने चाहते हैं तो धनुरासन आपके लिए सर्वोत्तम उपाय है।
धनुरासन की विधि- किसी समतल और शुद्ध वातावरण वाले स्थान पर कंबल या अन्य को सुविधाजनक आसन बिछा लें। अब मुंह के बल या पेट के बल लेट जाएं। इसके बाद अपने दोनों हाथों को बगल में सटाकर पूरे शरीर के नसों को बिल्कुल ढीला छोड़ दें। इसके बाद अपने दोनों एड़ी व पंजों को आपस में मिलाते हुए घुटनों के बीच फासला रखते हुए पैरों को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाते हुए सिर की तरफ मोड़ें तथा दोनों पैरों को एड़ी के पास से दोनो हाथों से पकड़ लें। हाथों पर जोर देकर पैरों को खिचंते हुए अपने सिर, छाती तथा जांघों को जितना संभव हो उतना ऊपर की ओर उठाने का प्रयास करें और दोनों हाथों को बिल्कुल सीधा रखें। इस स्थिति में तब तक रहें, जब तक आप रह सकें और सांस कुछ देर रोककर रखें। फिर धीरे-धीरे सांसों को छोड़ते हुए सामान्य स्थिति में आ जाएं।
धनुरासन के लाभ- यह आसन सभी योगासनों में काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस आसन के कई लाभ हैं। धनुरासन से शलभासन और भुजंगासन का लाभ भी मिलता है। यह आसन रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है, जिससे व्यक्ति का जवानी अधिक समय तक रहता है। यह शरीर की जोड़ों को मजबूत करता है। इस आसन को करने से टली हुई नाभि सामान्य स्थिति में आ जाती है। यह कमर दर्द व गर्दन के दर्द के लिए भी लाभकारी है। यह आसन गर्दन, छाती व फेफड़े को शक्तिशाली व क्रियाशील बनाता है। कंधे को मजबूत व छाती को चौड़ा व ताकतवर बनाता है। यह आसन पेट की अधिक चर्बी को कम करता है। इससे पेट के विकार दूर कर पेट से सम्बन्धित रोगों को खत्म करता है और हमसे दूर रखता है। पाचन शक्ति को बढ़ाता है और भूख को बढ़ाता है। यह आसन श्वास की बीमारियों के लिए भी लाभकारी है। यह सांसों की क्षमता को बढ़ाता है। इस आसन को करने से कब्ज दूर होता है। मधुमेह के रोगी को धनुरासन का अभ्यास करना अधिक लाभकारी होता है। यह कब्ज को दूर करता है और भूख को बढ़ाता है। यह गठिया, मर्दाग्नि, अजीर्ण, जिगर की कमजोरी आदि को खत्म करता है। यह आतों के सभी रोग, गला, छाती व पसली आदि सभी रोगों को दूर करता है। यह रक्त प्रवाह को तेज करता है और खून को शुद्ध करता हैं।
स्त्रियों के लिए भी लाभकारी -  धनुरासन स्त्रियों से संबंधित बीमारियों के लिए कारगर उपाय है। इससे प्रसव के बाद पेट पर पडऩे वाली झुर्रियों दूर होती है। यह मासिक धर्म, गर्भाशय रोग, तथा डिम्ब ग्रन्थियों के रोगों को खत्म करता है।

रविवार, 5 फ़रवरी 2012

जीरे और मिश्री को ऐसे खा लेने से पथरी के हो जाएंगे टुकड़े-टुकड़े


पथरी एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी को असहनीय पेट दर्द होता है। कई बार पेशाब होना रुक जाता है। मूत्र मार्ग में संक्रमण और पानी कम पीने से गुर्दे में पथरी बनने के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा होती हैं। इसके साथ ही रोजमर्रा में कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ भी हैं, जिनका सेवन पथरी बनने का कारण हो सकता है।

उन्हीं के अंशों से स्टोन का रूप धारण करते जाते हैं। धीरे-धीरे इन छोटी पथरियों पर क्रिस्टल जमा होते जाते हैं और बड़ी पथरी का रूप धारण कर लेती है।जैसे खाने के चीजो से पथरी हो सकती है ठीक उसी प्रकार खाने की चीजों से ही पथरी का इलाज भी हो सकता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं पथरी के इलाज के लिए कुछ ऐसी ही टिप्स....



- तुलसी के बीज का हिमजीरा दानेदार शक्कर व दूध के साथ लेने से मूत्र पिंड में फंसी पथरी निकल जाती है।

- एक मूली को खोखला करने के बाद उसमे बीस-बीस ग्राम गाजर शलगम के बीज भर दें, उसके बाद मूली को भून लें,उसके बाद मूली से बीज निकाल कर सिल पर पीस लें। सुबह पांच या छ: ग्राम पानी के साथ एक माह तक पीते रहे,पथरी और पेशाब वाली बीमारियों में फायदा मिलेगा।

- जीरे को मिश्री की चाशनी बनाकर उसमें या शहद के साथ लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है।

- यदि मूत्र पिंड में पथरी हो और पेशाब रुक रुक कर आना चालू हो गया है तो एक गाजर को नित्य खाना चालू कर देना चाहिये,इससे मूत्रावरोध दूर होगा,और पेशाब खुलकर साफ होगा,पेशाब के साथ ही पथरी घुल कर निकल जायेगी।

- प्याज पथरी के इलाज के लिए औषधीय गुण पाए जाते हैं। अगर आप सही ढंग से इस घरेलू उपचार का पालन करेंगे तो आपको इसका हैरान कर  देने वाला परिणाम मिलेगा। आपको इसका रस पीना है लेकिन पके हुए प्याज का। इसके लिए आप दो मध्यम आकर के प्याज लेकर उन्हें अच्छी तरह से छिल लें। फिर एक बर्तन में एक ग्लास पानी डालें और दोनों प्याज को मध्यम आंच पर उसमें पका लें। जब वे अच्छी तरह से पक जाये तो उन्हें ठंडा होने दें फिर उन्हें ब्लेंडर में डालकर अच्छी तरह से ब्लेंड कर लें। उसके बाद उनके रस को छान लें एवं इस रस का तीन दिनों तक लगातार सेवन करते रहे। यह घरेलू उपाय रामबाण का काम करता है।
 

शिलाजीत के आयुर्वेदिक टिप्स : मिट जाएगी हर तरह की कमजोरी गारंटीड


आयुर्वेद ने शिलाजीत को बहुत लाभकारी औषधि है।अच्छा स्वास्थ्य हमारी मूल आवश्यकता है और शिलाजीत एक ऐसी ही औषधि जो स्वस्थ रहने में हमारी मदद करती है। यह पत्थर की शिलाओं में ही पैदा होता है इसलिए इसे शिलाजीत कहा जाता है। गर्मी के दिनों में सूर्य की तेज किरणों से पर्वत की शिलाओं से लाख की तरह पिघल कर यह बाहर निकल आता है। यह चार प्रकार का होता है।

रजत, स्वर्ण, लौह तथा ताम्र शिलाजीत। प्रत्येक प्रकार की शिलाजीत के गुण अथवा लाभ अलग-अलग हैं। रजत शिलाजीत का स्वाद चरपरा होता है। यह पित्त तथा कफ के विकारों को दूर करता है। स्वर्ण शिलाजीत मधुर, कसैला और कड़वा होता है जो बात और पित्तजनित व्याधियों का शमन करता है। लौह शिलाजीत कड़वा तथा सौम्य होता है। ताम्र शिलाजीत का स्वाद तीखा होता है। कफ जन्य रोगों के इलाज के लिए यह आदर्श है क्योंकि इसकी तासीर गर्म होती है। 
लाभ- शिलाजीत कफ, चर्बी, मधुमेह, श्वास, मिर्गी, बवासीर उन्माद, सूजन, कोढ़, पथरी, पेट के कीड़े तथा कई अन्य रोगों को नष्ट करने में सहायक होता है। यह जरूरी नहीं है कि शिलाजीत का सेवन तभी किया जाए जब कोई बीमारी हो स्वस्थ मनुष्य भी इसका सेवन कर सकता है। इससे शरीर पुष्ट होता है और बल मिलता है।

प्रयोग- शिलाजीत और बंगभस्म 20-20 ग्राम, लौहभस्म 10 ग्राम और अभ्रक भस्म 5 ग्राम, सबको मिलाकर खरल बारिक पीस लें। इसकी छोटी-छोटी 2-2 गोलियां बना लें। सुबह-शाम एक-एक गोली दूध के साथ सेवन करने से स्वप्नदोष होना बंद होता है और शरीर में बलपुष्टि आती है। यदि शीघ्रपतन के रोगी विवाहित पुरुष इसे सेवन करें तो उनकी यह व्याधि नष्ट होती है।

- शुद्ध शिलाजीत 25 ग्राम, लौहभस्म 10 ग्राम, केशर 2 ग्राम, अम्बर 2 ग्राम, सबको मिलाकर खरल में खूब घुटाई करके महीन कर लें और 1-1 रत्ती की गोलियां बना लें। एक गोली सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से स्वप्नदोष होना तो बंद होता ही है, साथ ही पाचनशक्ति, स्मरण शक्ति और शारीरिक शक्ति में भी वृद्धि होती है।

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

घरेलू संजीवनी: ऐसे बनाएं कुछ दिन खाएं कोई मौसमी बीमारी नहीं होगी



बदलते मौसम के साथ अधिकतर लोगों को अक्सर बुखार और सर्दी, खांसी  व स्नायुतंत्र जैसी समस्याएं जल्दी घेर लेती हैं। ऐसे में बार-बार कई तरह की ऐलोपैथिक दवाई लेना भी शरीर के लिए नुकसानदायक होता है। इसलिए बार-बार  क्लिनिक के चक्कर लगाने से अच्छा है कि आप एक बार इन समस्याओं को जड़ से मिटाने के लिए नीचे लिखा नुस्खा जरुर आजमाएं। 



सामग्री- गुलाब के फूल, तुलसी के पत्ते, ब्राह्मी बूटी, खसखस, और शंखपुष्पी 300-300ग्राम। बनफशा, मुलहठी, सौंफ, तेजपान, 100-100ग्राम। लाल चंदन, बड़ी इलाइची, दालचीनी, लौंग, सौंठ, बदयान, काली मिर्च और असली केसर 10-10 ग्राम सबको अच्छी तरह पीसकर, छानकर बारीक चूर्ण कर लें।



 सेवन विधि- एक चम्मच चूर्ण एक लीटर पानी में डाल कर उबालें। उचित मात्रा में चीनी और दूध डालकर सुबह खाली पेट एक गिलास  पीएं। यह मात्रा चार व्यक्ति के लिए है। 



लाभ- इसके सेवन से शरीर के आंतरिक दोष दूर होते हैं। मानसिक  व शारीरिक थकावट  व निर्बलता दूर होती है। सिरदर्द, खांसी, गैस ज्वर, और उदर रोगों से छुटकारा मिलता है। स्मरण शक्ति और दिमागी ताकत बढ़ती हैं। स्नायुदौर्बल्य दूर होता है। दरअसल यह संजीवनी बूटी की तरह लाभकारी है।

झटपट प्रयोग: 20 मिनट में बाल चमकने लगेंगे

बालों की खूबसूरती और मजबूती के लिये अधिकतर लोग बाजार के कैमिकल युक्त कंडिशनर का उपयोग करते हैं। लेकिन ये बाजार के कंडिशनर थोड़े समय के लिए भले ही बालों को चमकदार बना दें। परन्तु इसके लगातार प्रयोग से बालों को नुकसान पहुंचता है। ऐसे में समस्या ये है कि बालों को बिना कंडिशनिंग के भी तो नहीं रखा जा सकता। 

अगर आप के साथ भी यही समस्या है तो यहां दी जा रही है डीप कंडीशनर की एक बेहद आसान विधि जिसे कोई भी आसानी से कर सकताहै। आप इस आयुर्वेदिक डीप कंडीशनर का प्रयोग 20 दिन में एक बार करें। आप इस कंडीशनर को स्वयं घर पर झटपट बना सकते हैं तथा 20 मिनट में बालों की डीप कंडीशनिंग कर सकते हैं। 

बनाने और लगाने की आसान विधि- आधा कटोरी हरी मेहंदी पाउडर लेकर इसमें गर्म दूध (गाय का) डालकर पतला लेप बना लें। इसी लेप में एक बड़ा चम्मच आयुर्वेदिक हेयर ऑइल डालें। इसे अच्छी तरह से मिला लें। जब यह लेप ठंडा हो जाए तब बालों की जड़ों में लगाएं। 20मिनट छोड़कर आयुर्वेदिक शैंपू पानी में घोलकर बालों को धो लें। इस डीप कंडीशनर द्वारा आपके बालों को पोषण तो मिलेगा ही साथ ही उनमे बाउंस भी आ जाएगा।

Featured post

इस फ़ार्मूले के हिसाब से पता कर सकती हैं अपनी शुभ दिशाऐं

महिलाएँ ...इस फ़ार्मूले के हिसाब से पता कर सकती हैं अपनी शुभ दिशाऐं।   तो ये है इस फ़ार्मूले का राज... 👇 जन्म वर्ष के केवल आख़री दो अंकों क...