सोमवार, 6 अप्रैल 2015

महिलाओं के कुछ बड़े ऑप्रेशन Some major operations of women




हिस्ट्रीक्टमी-
          हिस्ट्रक्टमी ऑप्रेशन में स्त्री की बच्चेदानी में कोई खराबी जैसे-´ टयूमर, रसौली या कैंसर हो जाने या हार्मोन्स की गड़बड़ी होने के कारण या ज्यादा खून के बहने के कारण उस अंग को काटकर निकाल दिया जाता है। चूंकि बच्चेदानी के निकाल दिए जाने से मासिकधर्म बंद हो जाता है, इसलिए इस ऑप्रेशन को अक्सर 40 साल की उम्र के बाद ही किया जाता है।

मायोमेक्टमी-

        कभी-कभी स्त्री को छोटी उम्र में ही रसौली आदि हो जाने के कारण बच्चे को जन्म देने में परेशानी होती हैं इसलिए इसमे पूरे गर्भाशय को ना निकालकर केवल रसौली को ही निकाला जाता है। इस क्रिया को मायोमेक्टमी कहते हैं।

बैट्रोसस्पेंशन-

          अगर किसी स्त्री की बच्चेदानी ठीक है, पर बार-बार बच्चे को जन्म देने या ज्यादा बार गर्भपात होने की वजह से अपनी जगह से खिसक गई है, जिसकी वजह से उसे काफी परेशानी हो रही है तब भी ऑप्रेशन के द्वारा बच्चेदानी को निकाला नहीं जाता बल्कि उसे अपनी सही जगह पर वापस लगा दिया जाता है। ऑप्रेशन की इस क्रिया को बैट्रोसस्पेंशन कहा जाता है।

          आजकल मेडिकल ने नई तकनीक खोज निकाली है जिसमे बिना खोले पेट का ऑप्रेशन किये बगैर योनि के रास्ते से बच्चेदानी को बाहर निकाल दिया जाता है। लेकिन ये स्त्री की हालत और डॉक्टर पर निर्भर करता है कि `हिस्ट्रक्टमी वैजाइनल´ होगी या `एबडैमनल´। अक्सर `हिस्ट्रक्टमी वैजाइनल´ में 14-15 दिन तथा `एबडैमनल´ (पेट खोलकर) हिस्ट्रक्टमी में 10-12 दिन हॉस्पिटल में रहना होता है। इस ऑप्रेशन के 6 महीने तक ज्यादातर ऐसे कामों से पूरी तरह बचना चाहिए जिससे कि नीचे योनि की तरफ वजन पड़ता हो जैसे- बार-बार सीढ़ियों से नीचे-ऊपर उतरना-चढ़ना, भारी बाल्टी या सामान उठाना आदि।

          अक्सर स्त्रियां ऑप्रेशन के नाम से ही डर जाती है लेकिन यह डर पूरी तरह से बेकार है। पूरी उम्र दुख, पीड़ा सहते हुए जीवन बिताने से तो अच्छा है कि एक ही बार ऑप्रेशन करवाकर हर दुख-दर्द को एक ही बार मे खत्म कर दिया जाए और अपनी बाकी की जिन्दगी को हंसते-खेलते हुए बिताया जाए।

ऑप्रेशन के बाद की शिकायतें-

        अक्सर स्त्रियों को ऑप्रेशन के बाद कुछ परेशानियां पैदा हो जाती है पर ये परेशानियां ज्यादातर वहमबाजी के कारण या ऑप्रेशन के बाद पूरी तरह से आराम न कर पाने या किसी तरह की लापरवाही बरतने से हो सकती है। बहुत सी स्त्रियां हिस्ट्रक्टमी को इसके लिए दोषी मानती है पर ये ठीक नहीं है। ऐसी परेशानियां किसी भी ऑप्रेशन के बाद की गई लापरवाही के कारण हो सकती है।

        ऑप्रेशन के बाद स्त्रियों का पेट बाहर निकलना या मोटापा बढ़ने की शिकायते भी आम होती है। मीनूपाज के समय मासिकधर्म बंद हो जाने के कारण यूं भी स्त्री के शरीर मे थोड़ा बहुत फर्क आता है पर ये शिकायत भी ज्यादातर ऑप्रेशन के बाद हर समय लेटे रहने या हर समय खाते रहने से ही होती है क्योंकि बहुत सी स्त्रियां सोचती है कि ऑप्रेशन के बाद काम बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए और शरीर मे कमजोरी न आ जाए इसलिए हर समय कुछ न कुछ खाते रहना चाहिए। इन्ही कारणों से उनका मोटापा बढ़ जाता है नहीं तो हिस्ट्रक्टमी के बाद स्त्री अपनी पूरी जिन्दगी सामान्य तरीके से जी सकती है तथा संभोगक्रिया में भी वो पूरी तरह नार्मल रह सकती है बल्कि इस ऑप्रेशन के कारण संभोग क्रिया करते समय उसके मन मे बच्चा ठहर जाने का डर भी नहीं रहता जिससे वो संभोगक्रिया को पूरी तरह बिना किसी डर के कर सकती है। इसलिए अगर स्त्रियों को ये ऑप्रेशन कराने की जरूरत पड़े तो उन्हे बिना किसी डर या झिझक के ये ऑप्रेशन करवा लेना चाहिए।

ओबेरियाटमी-

        `हिस्ट्रक्टमी´ में सिर्फ बच्चेदानी को ही निकाला जाता है, ओवरीज या डिंब-ग्रन्थियों को नहीं। लेकिन कभी-कभी इस जगह पर भी ट्यूमर हो जाने से ओवरीज को बाहर निकालना जरूरी हो जाता है पर इससे भी डरने की कोई जरूरत नहीं है। एक ओवरीज को बाहर निकाल देने से दूसरी काम करती रहती है। अगर दोनो ओवरीज हटा दी जाती है तो हार्मोन्स की कमी को दवाईयों या इजैंक्शनों के द्वारा पूरा किया जाता है और अपनी बाकी की जिन्दगी को साधारण तरीके से जिया जा सकता है। लेकिन ऑप्रेशन होने के बाद पूरी तरह सावधानी बरतना और डॉक्टर के कहे अनुसार चलना बहुत जरूरी है। स्त्री की हालत के अनुसार ही ये सम्भव हो सकता है जिसमे खराबी हो, सिर्फ वो ही एक ही ओवरी निकाली जाएं तथा किसी ओवरी में छोटा सा टयूमर हो तो सिर्फ टयूमर को ही निकाला जाए ओवरी को नहीं। ऐसे में ऑप्रेशन की इस क्रिया को `ओवेरियन सिस्टैक्टमी´ कहते हैं।

एक्टोपिक प्रेग्नेंसी-

        एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का मतलब होता है किसी-किसी मामलों में स्त्री के गर्भ का बच्चेदानी में ठहरकर गर्भनली मे गलत तरह से ठहर जाना। इसी कारण से इसे `टयूबल प्रेग्नेंसी´ भी कहते है। जब टयूब के अन्दर गर्भ के बढ़ने और फैलने की कोई संभावना नहीं तो स्वाभाविक है कि बढ़ने की कोशिश में वो दर्दनाक हालात पैदा करेगा। इसमें अक्सर 1 महीने के बाद ही मुश्किल पैदा हो जाती है। कभी दर्द, कभी खून बहना, कभी तेज ना सहने वाला दर्द और उल्टियां। ऐसी किसी तरह की परेशानी होने पर तुरन्त ही जांच करवानी चाहिए तथा जितनी जल्दी हो सकें इस गर्भ को ऑप्रेशन करवाकर निकलवा देना चाहिए। ये ऑप्रेशन कुछ बड़ा ही होता है पर उसके बाद जिस स्त्री का ऑप्रेशन होता है वो जल्द ही ठीक हो जाती है। यहां एक बात और भी ध्यान रखना जरूरी है कि दूसरा गर्भधारण जल्दी नहीं होना चाहिए और जब भी हो डॉक्टर को पहले गर्भ के बारें मे पूरी तरह बताकर उसकी जांच करवा लेनी चाहिए।

हिस्ट्रोटमी-

          हिस्ट्रोटमी की जरूरत तभी पड़ती है, जबकि स्त्री के गर्भ मे बच्चा लगभग 4 महीने से ऊपर का हो गया हो और किन्ही कारणों से उसे निकालना जरूरी हो, क्योंकि इस बढ़े हुए गर्भ को फिर से योनि के रास्ते से निकालने मे मुश्किल पैदा हो जाती है और उसे पेट का ऑप्रेशन करके ही निकालना पड़ता है। इसलिए डॉक्टर के बोलते ही कि गर्भपात 12 हफ्तों के बाद ही करा लेना चाहिए क्योंकि 12 से 16 सप्ताह के बीच भी वो इतना आसान नहीं रह जाता पर उसके बाद हिस्ट्रोटमी का सहारा लेना ही पड़ता है। ऑप्रेशन करने के बाद टांकों के खुलने तक 10 दिन तक अस्पताल में रहना, बाद में कम से कम 6 सप्ताह तक आराम करना तथा 3 महीने तक भारी काम न करना जैसी बातों पर ध्यान देना जरूरी है। अगला गर्भाधान जल्द न हो इस बात का ध्यान भी रखना भी जरूरी है।

टयूबैक्टमी-

        इन सारे बड़े आप्रेशनों में सबसे आसान और छोटा ऑप्रेशन है `टयूबैक्टमी´ यानि स्त्रियों की नसबन्दी करना ताकि आगे उनको गर्भधारण न हो। अक्सर लोग संभोग क्रिया करते समय कण्डोम आदि का सही से इस्तेमाल नहीं करते, जिसके कारण स्त्री को गर्भ ठहर जाता है और वह बार-बार गर्भपात कराती रहती है। लेकिन बार-बार गर्भपात बिल्कुल ठीक नहीं है गर्भपात जब ज्यादा ही मजबूरी हो तभी करना चाहिए। इसलिए 2-3 बच्चों के बाद परिवार नियोजन के लिए पुरुषों को `वासैक्टमी´ और स्त्रियों को `टयूबैक्टमी´ करा लेने की सलाह दी जाती है पर यह जानना भी जरूरी है कि इस ऑप्रेशन के बाद नसबन्दी पति या पत्नी दोनो में से किसी एक ही करानी चाहिए।

          `टयूबैक्टमी´ अगर आखिरी बच्चे को जन्म देने के अगले दिन ही करवा ली जाए तो ज्यादा आसानी रहती है। इसके लिए स्त्री को दो बार समय निकालने की जरूरत भी नहीं होती है। इसलिए अस्पतालों में दूसरे या तीसरे बच्चे के बाद साथ ही `टयूबैक्टमी´ या नसबन्दी करने के लिए बोला जाता है।

           इस ऑप्रेशन में पेट का लगभग 2 इंच हिस्सा ही खोला जाता है और नसबन्दी करके 2-3 टांके लगा दिए जाते हैं। जब तक टांके खुलते है ज्यादा से ज्यादा 6-7 दिन अस्पताल में रहना होता है बाद में 2 हफ्ते तक स्त्री को पूरा आराम करना होता है, उसके बाद घर के या बाहर के सारे साधारण काम किए जा सकते हैं। सिर्फ 3 महीने तक ज्यादा वजन उठाने वाले या ज्यादा थकान वाले काम से बचना चाहिए। आजकल की आधुनिक तकनीक में लेपरोस्कोप के द्वारा सिर्फ 1 सेमीमीटर चीरा लगाने से ऑप्रेशन हो जाता है। यह ऑप्रेशन बच्चे का जन्म होने के 10-12 दिन बाद या मासिकधर्म के आने के बाद कराना चाहिए।

जानकारी-

        बहुत सी स्त्रियां सोचती है कि नसबन्दी करवाने के बाद वो ज्यादा भारी काम नहीं कर सकती या वजन नहीं उठा सकती पर ये सब वहम है। अगर नसबन्दी के बाद व्यायाम और भोजन में सन्तुलन रखा जाए और डॉक्टर की हिदायतों का पालन किया जाए तो स्त्री का स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक रह सकता है।

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