सोमवार, 25 अप्रैल 2016

विविध व्याधियां MISCELLANEOUS DISEASES



          ज्यादातर दुर्घटनाओं के बाद आपातकालीन अर्थात एमरजैंसी स्थिति पैदा हो जाती है। एमरजैंसी स्थिति शरीर में अचानक दर्द उठ जाने या किसी दवाई के उल्टे प्रभाव से या एलर्जी से भी पैदा हो सकती है। अपेंडिसाइटिस, अचानक उठने वाला दर्द या गुर्दे में पथरी के कारण होने वाली असहनीय पीड़ा ऐसी ही परिस्थितियों के उदाहरण हैं। ऐसी स्थितियों में यह जरूरी होता है कि डॉक्टर के जाने तक पीड़ित व्यक्ति की हालत और न बिगड़ने पाए। इसलिए पीड़ित को समुचित प्राथमिक उपचार की जरूरत होती है।

नीचे कुछ ऐसे प्राथमिक उपचारों के बारे में बताया जा रहा हैं जो एमरजैंसी स्थितियों में किए जाने चाहिए-

अपेंडिसाइटिस- अक्सर अपेंडिक्स में उठने वाले दर्द के लक्षण असली दर्द उठने से कुछ दिन पहले प्रकट होने लगते हैं। यह लक्षण पीड़ित में अजीर्ण और कब्ज के रूप में प्रकट होते हैं। लेकिन आमतौर से इन लक्षणों को आने वाले रोग के पूर्व-संकेत न समझकर स्वयं रोग समझ लिया जाता है। पीड़ित अपेंडिसाइटिस की चिकित्सा के लिए कोई कदम नहीं उठाता और न ही शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होता है। इसी कारण से वह अपेंडिसाइटिस को अचानक से पैदा होने वाला रोग समझ लेता है।

          अपेंडिसाइटिस में पीड़ित के पेट के निचले, दाहिने भाग में तेज दर्द होती है। इसके साथ ही उसे उल्टी और हल्का बुखार भी हो सकता है। ऐसी स्थिति पैदा होते ही तुरंत डॉक्टर को बुला लें। डॉक्टर के आने तक प्राथमिक उपचार करने वाले व्यक्ति को पीड़ित की हालत को बिगड़ने से बचाने के लिए उसके शरीर के दर्द वाले स्थान पर आइसबैग (बर्फ की थैली) रखनी चाहिए।

          ऐसे पीड़ित को गर्मी से बचाना चाहिए और उसे खाने-पीने के लिए कुछ भी नहीं देना चाहिए।

          ऐसे पीड़ित को किसी भी परिस्थिति में जुलाब नहीं देना चाहिए।

सांस में रुकावट- सांस में रुकावट केवल दुर्घटनाओं के फलस्वरूप ही पैदा नहीं होती बल्कि हृदय रोग, दमा, मिर्गी, टिटेनस, अधिक नींद की गोलियां खाना आदि कारणों से भी सांस में रुकावट हो सकती है। इन कारणों से फेफड़ों तक जरूरत अनुसार ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती।

          पानी में डूबते हुए व्यक्ति की श्वासनली में अक्सर पानी भर जाने से उसकी सांस में रुकावट आ जाती है। ज्यादा गर्म पानी से गले की भीतरी मांसपेशियां सूज जाने के कारण भी सांस की नली में रुकावट आ जाती है। गर्दन में रस्सी, कपड़े आदि को कसकर बांधने, गले को अंगुलियों से दबाने, शिशु के ऊपर भारी बोझा डालने या बेहोश व्यक्ति को छाती के बल तकिए पर लिटाने से भी सांस में रुकावट आ सकती है।

बिजली का झटका लगने, ऊंचाई से गिरने, खान में खुदाई करने, किसी वाहन से कुचल जाने आदि कारणों से भी सांस लेने में रुकावट पैदा हो सकती है। नकली दांतों के मसूड़ों से निकलकर आहार नली में फंस जाने पर भी सांस लेने में परेशानी हो सकती है।

प्राथमिक उपचार- किसी भी कारण से सांस बंद हो जाने पर अगर जल्दी ही पीड़ित व्यक्ति को प्राथमिक उपचार न किया जाए तो उसकी हालत बिगड़ सकती है, वह बेहोश होने लगता है, मुंह से झाग निकलने लगते हैं और कभी-कभी उसे दौरे पड़ने लगते हैं। इसलिए सबसे पहले उसका प्राथमिक उपचार करना चाहिए।

          यदि किसी व्यक्ति की सांस रुक रही हो तो सबसे पहले उन कारणों को दूर करें जिनसे उसकी सांस रुक रही हो। फिर बेहोश व्यक्ति को पीठ के बल सीधा लेटा दें। जिन कारणों से व्यक्ति बेहोश हो रहा हो अगर उन्हे दूर करना संभव न हो तो बेहोश व्यक्ति को ही उठाकर उस स्थान से सुरक्षित स्थान पर ले जाएं जहां उसे स्वच्छ हवा मिल सके। फिर पीड़ित व्यक्ति को पीठ के बल लेटा दें और उसकी गर्दन के पीछे अपनी हथेली रखकर सिर को नीचे की ओर धीरे से दबाएं। 

          यदि पीड़ित व्यक्ति होश में हो तो उससे मुंह खोलने के लिए कहें लेकिन अगर वह बेहोश हो तो उसके जबड़े को पीछे से आगे की ओर दबाएं। ऐसा करने पर उसका मुंह खुल जाएगा फिर उसके मुंह में झांककर या अंगुली डालकर मालूम कर लें कि उसकी सांस की नली में भोजन का टुकड़ा, नकली दांत या कोई अन्य चीज तो नहीं फंसी या उल्टी हुई जीभ तो नहीं अटकी हुई है। यदि ऐसा हो तो उस अटकी हुई चीज को निकाल दें और जीभ उल्टी हुई हो तो उसे सीधा कर दें। ऐसा करने से अगर सांस रुकी हुई हो तो वह चलने लगती है। मुंह में अंगुली डालते समय ध्यान रखें कि बेहोशी की हालत में पीड़ित व्यक्ति आपकी अंगुली काट भी सकता है।

          यदि किसी बच्चे की सांस की नली में कोई चीज अटक रही हो तो बच्चे को पेट के बल लिटाकर उसका सिर नीचे की ओर करके उसकी पीठ पर हल्के-हल्के मुक्के से मारें। इससे सांस नली में अटकी हई चीज निकल जाएगी और उसकी सांस चलने लगेगी।

यदि सांस नली साफ करने के बाद भी सांस चालू न हो तो पीड़ित को निम्न प्रकार से कृत्रिम सांस दें-

•सांस बंद हो जाने पर पीड़ित व्यक्ति को पीठ के बल लेटाकर उसकी गर्दन के नीचे हाथ रखकर उसे ऊपर की ओर उठाएं। इससे उसका सिर पीछे की ओर झुक जाएगा और मुंह खुल जाएगा।
•इसके बाद अपने अंगूठे तथा तर्जनी अंगुली से पीड़ित व्यक्ति की नाक बंद करके अपने मुंह से उसे कृत्रिम सांस दें।
•यदि किसी बच्चे की सांस बंद हो गई हो तो सबसे पहले उसका सिर पीछे झुकाएं तथा पीठ के नीचे तकिया रखें और फिर सांस कृत्रिम सांस दें। कृत्रिम सांस देने पर पीड़ित बच्चे के फेफड़ें फूलते-सिकुड़ते हैं जिन्हे देखा जा सकता है। पीड़ित बच्चे को कृत्रिम सांस देने के बाद अपने मुंह को उसके मुंह से हटा लें। फिर गहरी सांस लेकर उसे दुबारा से कृत्रिम सांस दें। इस तरह पहली चार सांस जल्दी-जल्दी दें ताकि पीड़ित को ऑक्सीजन जल्दी मिल सके। यह क्रिया हर 5 सेकेंड में दोहराएं।
•मुंह अलग करने पर फेफड़ों से अशुद्ध वायु बाहर आ जाती है। यदि पीड़ित के मुंह से हवा बाहर निकलने की आवाज सुनाई नहीं दे तो उक्त क्रिया को फिर दोहराएं। बेहोश व्यक्ति के मुंह से भी सांस बाहर निकलने की आवाज आती है। ऐसा न होने पर समझ ले कि हवा रोगी के फेफड़ों में नहीं जा रही है। ऐसी स्थिति में पीड़ित के निचले जबड़े को आगे की ओर खींचकर उक्त क्रिया को फिर दोहराएं। .
•कृत्रिम सांस देने की क्रिया एक व्यस्क व्यक्ति को एक मिनट में 12 बार तथा बच्चों में प्रति मिनट 16 से 20 बार की दर से दोहराएं।
•अगर पीड़ित के जबड़े में चोट लगने या किसी और कारण से मुंह से उसे कृत्रिम सांस देना संभव न हो तो उसके मुंह को बंद करके अपना मुंह उसकी नाक पर रखकर सांस दें।
•नवजात शिशु तथा छोटे बच्चों का मुंह छोटा होता है इसलिए उनकी नाक और मुंह दोनों को अपने मुंह से ढककर उन्हे कृत्रिम सांस दें।
•बच्चे को सांस देते समय एक बात का ध्यान रखें कि अधिक तेज सांस न दें क्योंकि इससे उसके फेफड़े पर असर पड़ सकता है। बच्चों को कृत्रिम सांस देते समय अपना एक हाथ हल्के से उसके पेट पर रखें। ऐसा करने से फेफड़े जरूरत से अधिक नहीं फूल पाते।
•कृत्रिम सांस देने की क्रिया तब तक करते रहे जब तक पीड़ित व्यक्ति की सांस चलनी शुरू न हो जाए। ऐसी क्रिया से सामान्यतः 15 मिनट में सांस चलनी शुरु हो जाती है। लेकिन अगर पीड़ित की सांस फिर रुक जाए या उसकी सांस लेने की दर प्रति मिनट 12 से कम हो तो ऊपर बताई क्रिया को दुबारा दोहराएं तथा इस क्रिया को कोई डॉक्टरी सहायता मिलने तक करते रहें।
          कुछ लोगों का मानना है कि जो हवा हम मुंह से निकालते हैं वह दूषित होती है इसलिए मुंह से सांस देना सही नहीं है। जबकि डॉक्टरों का मानना है कि आपातकालीन स्थिति में ऐसा करना सही है और इससे किसी पीड़ित व्यक्ति की जान बच सकती है। जब हम सांस लेते हैं तो उसमें ऑक्सीजन की मात्रा 20 प्रतिशत और कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा 0.03 प्रतिशत होती है परंतु जब सांस मुंह से बाहर निकालते हैं तो वायु में ऑक्सीजन की मात्रा लगभग 16 प्रतिशत होती है और कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा लगभग 4 प्रतिशत होती है।

          कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अधिक होने के कारण शरीर से बाहर निकलने वाली वायु दूषित होती है। जिसे लेने से हमारा दम घुटने लगता है लेकिन जिस व्यक्ति के शरीर में ऑक्सीजन की बहुत कमी हो गई हो और उस कमी के कारण उसके शरीर की महत्वपूर्ण क्रियाएं रुकने लगी हों या बहुत अधिक गड़बड़ी हो सकती हो तो उसके लिए 16 प्रतिशत ऑक्सीजन वाली वायु ही काफी रहती है। ऐसा करने पर उसके शरीर की बंद क्रियाएं फिर चालू हो जाती है।

हृदय की धड़कन फिर शुरू करना- फेफड़ों का कार्य दूषित खून को शुद्ध करके हृदय तक पहुंचाना और हृदय का कार्य शुद्ध खून को विभिन्न अंगों तक पहुंचाना है। अगर हमारे शरीर के किसी अंग से दूषित खून न हट पाए और शुद्ध खून से उसकी पूर्ति निरंतर नहीं हो पाए तो वह अंग सही तरीके से काम नहीं कर पाता और उसमें ऐसी गड़बड़ी पैदा हो सकती है जो कितने ही उपचार के बाद भी ठीक नहीं हो पाती। अगर मस्तिष्क को लगातार 3 मिनट तक और हृदय को 7-8 मिनट तक शुद्ध खून न मिले तो उनमें ऐसी खराबी पैदा हो जाती है जिनके फलस्वरूप व्यक्ति दुबारा स्वस्थ हो जाने के बाद भी जीवनभर कई तरह के मानसिक एवं शारीरिक रोगों से पीड़ित रहता है। हमारा हृदय अनेक कारणों से अपना काम करना बंद कर देता है- हृदय पर गंभीर चोट लगने से, बिजली का जोरदार झटका लगने से तथा शरीर से बहुत अधिक मात्रा में खून निकल जाने से हृदय की धड़कन बाद हो जाती है।        

          हृदय की धड़कन रुक जाने या बहुत कम हो जाने के कारण नब्ज धीमी पड़ जाती है या उसका स्पंदन बंद हो जाता है। ऐसी स्थिति में पीड़ित व्यक्ति का चेहरा नीला या पीला पड़ जाता है, उसकी आंखों के तारे फैल जाते हैं और वह अचेत हो जाता है। धड़कन को कुछ मिनटों में ही फिर चालू नहीं किया जाए तो पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।

          हृदय के ऊपर हाथ रखकर उसकी धड़कन को महसूस किया जा सकता है। लेकिन उसको महसूस करने का सबसे सही अंग होता है कलाई। कलाई द्वारा नब्ज के धड़कने का पता बहुत ही आसानी से चल जाता है। लेकिन जब किसी कारण से हृदय की धड़कन धीमी हो जाती है तो कलाई पर नब्ज का स्पंदन महसूस नहीं हो पाता। इसलिए प्राथमिक उपचारकर्ता को इस बात की पुष्टि करने के लिए की पीड़ित व्यक्ति के हृदय की धड़कन चल रही है या नहीं, उसकी गर्दन के निचले हिस्से में बाईं ओर स्थित कैरोटिड धमनी या जांघ में स्थित फीमर धमनी की जांच करनी चाहिए। कैरोटिड धमनी का स्पंदन भी महसूस न होने पर प्राथमिक उपचारकर्त्ता को पीड़ित व्यक्ति के हृदय की धड़कन दुबारा चालू करने की कोशिश करनी चाहिए।

प्राथमिक उपचार करने के लिए सबसे पहले पीड़ित व्यक्ति को पीठ के बल लिटा दें। उसके सिर के नीचे कोई तकिया न रखें बल्कि उसके पैरों के नीचे कोई वस्तु रखकर पैरों को जमीन से 40-50 सेमी ऊपर उठा दें। ऐसा करने से खून का बहाव तेजी से पैरों से हृदय की ओर होने लगेगा। पैरों में लगभग डेढ़ लीटर खून होता है जो हृदय की धड़कन को दुबारा से चालू करने में बहुत सहायक हो सकता है।

          यदि इस क्रिया द्वारा हृदय की धड़कन शुरु न हो तो पीड़ित व्यक्ति को उपचार की जरूरत होती है। इसके लिए सबसे पहले पीड़ित व्यक्ति के शरीर में उसके हृदय की स्थिति का पता लगाएं। हृदय की सही स्थिति की जानकारी इसलिए जरूरी है क्योंकि अगर हृदय के स्थान पर धोखे से किसी दूसरे अंग पर हृदय को चालू करने का प्राथमिक उपचार कर दिया जाए तो पीड़ित व्यक्ति को लाभ के स्थान पर हानि हो सकती है। आमतौर पर सामान्य व्यक्ति को हृदय की वास्तविक स्थिति का आसानी से पता नहीं चल पाता। इसलिए सबसे पहले हृदय की स्थिति का पता लगाएं और फिर निम्न उपाय करें-

•प्राथमिक उपचार करने के लिए रोगी को पीठ के बल लिटाकर उसके हृदय वाले स्थान पर अपने दोनों हाथों की हथेलियों को एक-दूसरे के ऊपर रखें। दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में फंसा लें।
•हथेली के निचले भाग से छाती को एक सेकेंड में एक बार दबाएं। छाती पर इतना दबाव डालें कि वह 1.5 से 5 सेंटीमीटर तक नीचे धंस जाए। छाती को दबाएं और तुरंत दबाव हटा लें, पर हथेलियों को उसी स्थान पर रहने दें। फिर लगभग एक सेकेंड बाद फिर दबाव डालें। इस प्रकार एक मिनट में लगभग 60 बार दबाव डालें लेकिन ध्यान रखें कि छाती 5 सेंटीमीटर से अधिक न दबें।
•दबाव डालते समय कोहनियों को बिल्कुल सीधा रखें उनमें जरा सा भी झुकाव न आने दें।
•यदि आप अकेले हों तो पीड़ित व्यक्ति को पहले एक बार सांस देने के बाद 5 बार हृदय पर दबाव डालें, फिर एक बार सांस देकर 5 बार दबाव डालें।
•यदि आप दो व्यक्ति हैं और प्राथमिक उपचार दे रहे हैं तो एक व्यक्ति पीड़ित को सांस दें और दूसरा व्यक्ति उसकी छाती पर हृदय के पास दबाव डालें। दोनों में अच्छा तालमेल रखकर उपचार दें। ध्यान रखें कि सांस देते समय हृदय पर दबाव न पड़ें।
•हर पांच मिनट के उपचार के बाद पीड़ित व्यक्ति की नाड़ी और सांस दोनों की जांच करते रहें।
•नाड़ी की गति स्वाभाविक होने तक दबाव डालने तथा सांस देने की क्रिया नियमित रूप से चालू रखें।
•5-6 साल के बच्चे की छाती पर एक ही हाथ का दबाव काफी होता है तथा हृदय पर दबाव डालने की गति प्रति मिनट 80 बार होनी चाहिए।
•शिशुओं की छाती पर दो अंगुलियों का दबाव काफी होता है। इनके दबाव डालने की गति प्रति मिनट 100 बार होनी चाहिए और छाती को लगभग 2 सेंटीमीटर तक ही दबाएं।
•वयस्क व्यक्ति के हृदय पर दबाव डालने के अंतराल में हाथ उसकी छाती से न हटाएं।
•छाती पर दबाव डालते समय बहुत ही सावधानी बरतने की जरूरत हैं क्योंकि ज्यादा जोर से दबाव देने से पीड़ित की पसलियां टूट सकती है।
•सांस देने तथा दबाव देने की क्रिया तब तक करते रहें जब तक पीड़ित व्यक्ति अस्पताल न पहुंच जाए। यह क्रियाएं आधे घंटे तक की जा सकती हैं।
•सांस देने और छाती पर दबाव देने की इस क्रिया को सही रूप से किया जाए तो हृदय की धड़कन फिर से शुरु हो जाती है और खून का बहाव लगभग 100 मिलीलीटर हो जाता है। इस क्रिया के द्वारा मस्तिष्क को मिलने वाले कुल खून की मात्रा में से 25 से 30 प्रतिशत मात्रा मिलने लगती है।
जानकारी- एक बात ध्यान रखें कि हृदय की धड़कन रुकने के साथ पीड़ित व्यक्ति की सांस भी रुक जाती है। ऐसी स्थिति में धड़कन शुरु करने के साथ-साथ सांस को शुरू करने की कोशिश भी करनी चाहिए।

पानी में डूबना- आमतौर पर बहुत से तैराक पानी के नीचे जाने से एकदम पहले गहरी सांस ले लेते हैं। ऐसा करने पर उनके शरीर में से कार्बन डाइऑक्साइड की काफी मात्रा बाहर निकल जाती है। सामान्य अवस्था में यह कार्बन डाइऑक्साइड उस व्यक्ति को लगातार सांस लेने के लिए बाध्य करती है। कार्बन डाइऑक्साइड की अधिक मात्रा शरीर से बाहर निकल जाने के कारण तैराक बार-बार सांस लेने की कोशिश नहीं करता और ऑक्सीजन की कमी के कारण बेहोश हो जाता है। एक बार बेहोश हो जाने के बाद वह अपनी शारीरिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाता और पानी में डूब जाता है। 

          जल्दी-जल्दी डाइव लेने वाले व्यक्ति के साथ भी लगभग इसी प्रकार की क्रियाएं होती हैं। दो डाइवों के बीच के कम समय में वह कई बार गहरी सांस लेता है और निकालता है। इस प्रकार वह भी अपने शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड की काफी मात्रा बाहर निकाल देता है जिसके कारण उसकी सांस लेने की इच्छा नहीं होती। इसीलिए सांस लेने के लिए पानी से बाहर आने की बजाए वह पानी के भीतर ही रहता है और ऑक्सीजन की कमी होने के कारण बेहोश होकर डूब जाता है। पानी में डूबने का कारण चाहे कोई भी हो लेकिन इसके कारण डूबने वाले व्यक्ति की सांस रुक जरूर जाती है। पानी में डूबने वाले व्यक्ति को सांस की रुकावट को दूर करने के लिए निम्नलिखित प्राथमिक उपचार करने से लाभ मिलता है-

          सबसे पहले पानी में डूबने वाले व्यक्ति के मुंह की जांच करके देखें कि उसके मुंह में कोई चीज फंसी तो नहीं है। अगर उसके मुंह में कोई चीज फंसी हो तो सबसे पहले उसे बाहर निकाल दें। फिर तुरंत ही पीड़ित व्यक्ति को कृत्रिम सांस देना शुरू करें। इस क्रिया को उस समय भी किया जा सकता है जब पीड़ित व्यक्ति पानी में हो लेकिन इसके लिए पीड़ित व्यक्ति का मुंह पानी की सतह से ऊपर होना चाहिए। इस तरह पानी में ही सांस देते हुए पीड़ित व्यक्ति को पानी से बाहर निकाल लाएं और जमीन पर पेट के बल लिटा दें। जमीन पर लाने के बाद सांस देना बंद कर दें और पीड़ित व्यक्ति को पेट के बल लिटाकर उसके चेहरे को एक ओर कर दें। उसके हाथ को सिर से ऊपर की ओर करके पूरी तरह फैला दें। ऐसा करने पर उसके मुंह से पानी बाहर निकलने लगेगा।

नोट- शिशुओं और बच्चों के शरीर से पानी बाहर निकालने के उन्हे पैर से पकड़कर उल्टा भी लटकाया जा सकता है।

          फेफड़ों से पूरी तरह पानी बाहर निकालने के लिए पीड़ित व्यक्ति के पेट के भाग को थोड़ा ऊंचा उठा दें ताकि पेट का सारा पानी बाहर निकल जाए। जब पेट से पूरी तरह से पानी बाहर निकल जाए तो व्यक्ति को सीधा करके पीठ के बल सीधा लिटा दें। इसके बाद सांस देने की क्रिया शुरू करें। पीड़ित व्यक्ति को तब तक सांस देते रहें जब तक उसकी सांस फिर से शुरू न हो जाए। कभी-कभी पीड़ित व्यक्ति को सामान्य अवस्था में आने में दो घंटे लग जाते हैं।

          यदि पीड़ित व्यक्ति का जबड़ा भिंच गया हो तो उसके होंठ अलग करके और उसका मुंह खोलकर दांतों के बीच से उसके मुंह में कृत्रिम सांस देने की कोशिश करें। समुद्र के खारे पानी में डूबने वाले व्यक्ति के शरीर में तरल पदार्थों की कमी हो जाती है जिसके कारण होश में आते ही वह पानी मांगता है। ऐसी स्थिति में उसे जितना पानी वह मांगे पिला देना चाहिए।

          इसके बाद उसके शरीर से सारे गीले कपड़े उतारकर उसे सूखे कपड़े पहना दें और ऊपर से गर्म कंबल आदि ओढा दें। पीड़ित व्यक्ति के सामान्य अवस्था में लौट आने पर भी उसे ज्यादा देर तक बैठने न दें। उसे चाय, कॉफी आदि पीने के लिए दिये जा सकते हैं। फिर पीड़ित व्यक्ति को स्ट्रेचर पर डालकर जल्दी से जल्दी अस्पताल ले जाएं।

सांसनली में कोई वस्तु फंस जाने पर- छोटे-छोटे बच्चों को हर चीज मुंह में डालने की आदत होती है। ऐसे में कई बार वह ऐसी चीजें मुंह में ले लेते हैं जो मुंह से उनके गले में अटक जाती है। इसके कारण उनकी सांसनली में रुकावट आ जाती है। कई बार खाना खाते समय वयस्कों की सांसनली में भी भोजन अटक जाता है जिससे उसमें रुकावट आ जाती है। सांसनली में रुकावट आने के बाद व्यक्ति बोल नहीं पाता है और सांस लेने की पूरी कोशिश करता है। ऐसा करने पर उसकी आंखें बाहर निकलने लगती है और पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन न मिल पाने के कारण चेहरा नीला हो जाता है। यदि सांसनली पूरी तरह से बंद हो जाए तो उपचार न मिलने की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति कुछ ही देर में बेहोश हो जाता है। यहां तक की उसकी मृत्यु भी हो सकती है।

          छोटे बच्चों के गले में अगर कुछ फंस जाता है तो उसे बाहर निकालने के लिए पीड़ित बच्चे को टांगों से पकड़कर उल्टा कर दें और उसकी पीठ पर 3-4 बार जोर-जोर से थपकी दें। अगर ऐसा करने पर भी उसके गले में फंसी वस्तु बाहर न निकले तो पीड़ित बच्चे को अपने घुटनों पर उल्टा लिटाकर उसका सिर नीचे की ओर लटका दें। अब ऊपर से उसके कंधों के बीच जोर से थपकी दें। यदि ऐसा करने पर भी फंसी वस्तु बाहर न आए तो उसके गले में दो अंगुलियां डालकर उसे उल्टी करवा दें।

अगर किसी वयस्क व्यक्ति की सांसनली में कोई ग्रास आदि फंसने से उसकी सांस रुक जाती है तो उसको निकालने के लिए निम्नलिखित प्राथमिक उपचार करने से लाभ मिलता है- 

          अगर पीड़ित व्यक्ति लेटी हुई अवस्था में हो तो सबसे पहले उसे पीठ के बल सीधा करके लिटा दें। फिर उसके पैरों की तरफ मुंह करके खड़े हो जाएं और उसकी टांगों के निकट घुटनों के बल इस प्रकार बैठ जाएं कि आपका एक घुटना उसकी टांगों के एक ओर हो और दूसरा दूसरी ओर रहे। अब पीड़ित व्यक्ति के पेट पर नाभि और पसली के बीच अपने एक हाथ की हथेली रखें। फिर उसके ऊपर दूसरी हथेली रखें। अब अपनी हथेलियों को दबाकर ऊपर की ओर तेजी से झटका दें। झटके देने के बाद एक-दो सेकेंड के लिए दबाव हटा लें और फिर झटका दें। ऐसा तब तक करते रहें जब तक उसके गले में फंसी हुई वस्तु बाहर नहीं निकल जाती है।

          इन विधियों द्वारा प्राथमिक उपचार करने पर गले में फंसी वस्तु इसलिए बाहर निकल आती है कि जब सांस रुकने पर भी हमारे फेफड़ों में कुछ हवा होती है। इन क्रियाओं को करने पर वह झटके के साथ बाहर निकलती है और अपने साथ गले में अटकी वस्तु को भी मुंह में धकेल देती है।

          इस क्रिया को करने पर पीड़ित व्यक्ति को उल्टी भी आ सकती है। ऐसा होने पर उसका चेहरा एक ओर झुकाकर उल्टी करा दें।

          वयस्क व्यक्ति की सांसनली में फंसी वस्तु निकल जाने के बाद उसे सांस लेने में कठिनाई महसूस हो सकती है। इसलिए इसके तुरंत बाद उसे कृत्रिम सांस देने की तैयारी करें।

कार्बन मोनोऑक्साइड की कमी से सांस में रुकावट- सर्दी के मौसम में अक्सर लोग ठंड से बचने के लिए कमरे में कोयले की अंगीठी जलाकर दरवाजे और खिड़कियां बंद करके सो जाते हैं जो बहुत ही गंभीर स्थिति पैदा कर सकता है। ऐसा करने से सांस लेने में परेशानी होने लगती है और कुछ समय में दम घुटकर कमरा बंद करके सोने वाले व्यक्तियों की मृत्यु भी हो सकती है।

          ऐसी स्थिति अक्सर कार्बन मोनोऑक्साइड नामक जहरीली गैस के कारण पैदा होती हैं। कार्बन मोनोऑक्साइड गैस मोटर साईकिल, कार, ट्रक, स्कूटर आदि से निकलने वाली एग्जॉस्ट गैसों में मौजूद रहती है। यह गैस कोयले, लकड़ी आदि ज्वलनशील वस्तुओं के जलने के कारण पैदा होती है। इसके अलावा यह गैस कोयले की खानों में भी पैदा हो जाती है।   यह गैस सांस के साथ शरीर के अंदर जाकर घबराहट पैदा नहीं करती। इसीलिए सोते हुए व्यक्ति को इसकी उपस्थिति का पता नहीं चलता। ऑक्सीजन की तुलना में यह गैस हमारे लाल रक्तकणों के हीमेग्लोबिन के साथ तेजी से काफी ज्यादा मात्रा में मिल जाती है। ऐसा होने से हीमोग्लोबिन को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती जिसके कारण पैदा होने वाली स्थिति किसी गंभीर दुर्घटना की सूचक होती है।          

          हवा से हल्की गैस होने के कारण कार्बन मोनोऑक्साइड जल्दी ही ऊपर उठ जाती है। लेकिन जिस स्थान पर यह गैस निरंतर पैदा होती रहती है वहां कभी-कभी आपातकालीन स्थिति पैदा हो जाती है। ऐसा होने पर सबसे पहले पीड़ित व्यक्ति को उस स्थान से दूर ले जाना बहुत जरूरी होता है। इस दौरान सबसे जरूरी है कि प्राथमिक उपचारकर्त्ता स्वयं 2-3 बार गहरी सांस लें और जितनी देर संभव हो सके सांस को रोककर रखें। इसके बाद उसे रेंगते हुए कार्बन मोनोऑक्साइड के वातावरण में घुसना चाहिए। वायु से हल्की होने के कारण फर्श के निकट इस गैस की सांद्रता अपेक्षाकृत कम होती है। पीड़ित व्यक्ति को फर्श के निकट रखते हुए जल्दी से जल्दी खुली हवा में ले जाएं। यदि पीड़ित व्यक्ति को उस कमरे से बाहर निकालना संभव न हो सके तो सभी खिड़कियां और दरवाजे खोल दें ताकि कमरे में भरी हुई गैस बाहर निकल जाए।

          खुली हवा में बाहर ले जाने के बाद तुरंत ही पीड़ित व्यक्ति सारे कपड़े ढीले कर दें और उसे कृत्रिम सांस देना शुरू करें।

        ऐसी स्थिति में पीड़ित व्यक्ति को शुद्ध ऑक्सीजन देना अधिक ज्यादा अच्छा रहता है परंतु इसकी व्यवस्था सिर्फ बड़े अस्पतालों में ही होती है। इसलिए पीड़ित व्यक्ति को जल्दी से जल्दी अस्पताल ले जाएं।

कार्बन डाइऑक्साइड- धुएं या कार्बन डाइऑक्साइड या दूसरी जहरीली गैसों वाले वातावरण में फंसे व्यक्ति का दम घुटने पर प्राथमिक उपचार देने से पहले उसे भी जल्दी से जल्दी उस वातावरण से बाहर निकालना जरूरी होता है। लेकिन ऐसा करने से पहले प्राथमिक उपचारकर्त्ता लिए कुछ सावधानियां बरतनी जरूर है जैसे-

•धुएं से भरे कमरे में घुसने से पहले उसे अपना मुंह और नाक गीले तौलिए से ढक लेना चाहिए।
•कार्बन डाइऑक्साइड से भरे कमरे में घुसने से पहले उस कमरे के सारे दरवाजे और खिड़कियां खोलने की कोशिश करनी चाहिए।
•दो-तीन बार गहरी सांस लेकर जितनी देर तक संभव हो सके सांस रोके रखना चाहिए।
•कार्बन डाइऑक्साइड हवा से भारी होती है और वह फर्श के निकट ही जमा हो जाती है। इसलिए इस गैस से भरे कमरे में झुकें नहीं बल्कि खड़े होकर ही अपनी कार्यवाही जारी रखें।

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