मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

भोजन : क्या खायें, कब खायें?

 

* प्रात: सूर्य उदय होने से पूर्व उठें। आवश्यक सैर, प्राणायाम, व्यायाम के लिए जरूर समय निकालें।
* रात देर तक जागने की आदत को सदा के लिए त्याग दें।
* यदि आप को खाते रहने की आदत है और उपवास नहीं रखते, तो प्लीज पूरे महीने में दो से तीन बार उपवास करें।
* उपवास तोड़ते समय सामान्य खुराक लें। आम दिनों से दो गुना खाकर उपवास के प्रभाव को खत्म न कर दें।
* जब भी भोजन करने बैठें, सारी चिंताएं दूर भगाकर मन चित्त लगाकर, चबा-चबा कर भोजन करें।
* भोजन खाते समय प्रसन्नचित रहें तथा मौन रहें तो बहुत ही अच्छा।
* अनाज, दालें आदि शरीर के लिए आवश्यक हैं। मोटा आटा, मोटा अनाज छिलकेदार दालें बेहतर हैं।
* यदि आप की आयु पचास से ऊपर है तो दिन में एक बार दालें, एक ही बार अनाज लेना चाहिए।
* कितनी भी जल्दी हो, भोजन सदैव खूब चबाकर खाएं। यदि समय कम है तो कम भोजन खा लें, मगर बिना चबाए नहीं।
* प्रात: तथा सायं के समय कुछ देर खुली हवा में घूमना, लम्बे-लम्बे सांस लेना आप के स्वास्थ्य के लिए उत्तम होगा।
* दोपहर के भोजन के बाद थोड़ा विश्राम, रात्रि के भोजन के बाद थोड़ी वाक करने की आदत अच्छी रहती है।

लाभदायक घरेलू इलाज

* चक्कर आने पर तुलसी के रस में चीनी मिलाकर सेवन करने से ठीक हो जाते हैं।
* मिश्री के साथ तुलसी दल लेने से पेट में दर्द ठीक हो जाता है।
* कुष्ठ रोग में प्रतिदिन प्रात: तुलसी का रस पीने से रोग ठीक हो जाता है।
* दाद-खाज जैसे चर्म रोगों में तुलसी और नींबू के रस का लेप करने से लाभ मिलता है।
* स्मरणशक्ति को बढ़ाने के लिए तुलसी के 5 पत्ते सुबह खाने से लाभ होता है।
* तुलसी का पंचांग चूर्ण चार माशा गाय के दूध में सुबह-शाम पीने से गठिया रोग ठीक होता है।
* मुंह के छालों में तुलसी के अर्क का कुल्ला करने से लाभ होता है।
* हैजे में तुलसी के बीज का चूर्ण बनाकर गाय के दूध में सेवन करने से तुरंत लाभ मिलता है।
* दस्त आने पर एक माशा जीरा और दस तुलसीदल दिन में तीन बार सेवन करने से लाभ मिलता है।
* पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए छोटी इलायची अदरक का रस और तुलसी का रस मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।
* कान में हो रहे सामान्य दर्द को दूर करने के लिए तुलसी के पत्तों का रस कपूर में मिलाकर गुनगुना करके कुछ बूंदें डालने से लाभ मिलता है।

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

कंधो के दर्द-जकडऩ से परेशान है

यदि आप कंधो के दर्द-जकडऩ से परेशान है तो आपके लिए पर्वतासन बहुत अच्छा उपाय है। इस आसन से कंधो की जकडऩ और कंधों के जोड़ों को दर्द दूर होता है। साथ ही साथ रीढ़ के सभी जोड़ों के बीच का तनाव कम होता है।पर्वतासन की विधिसमतल स्थान पर कंबल या अन्य कपड़ा बिछाकर बैठ जाएं। रीढ़ को सीधा रखें, दोनों हाथों की अंगुलियों को इंटरलॉक करें, हथेली को पलट कर सिर के ऊपर लाएं। पर्वतासन करने के लिए हाथों को ऊपर की ओर खींचे, बाजू सीधा कर लें। कंधे, बाज़ू और पीठ की मांसपेशियों में एक साथ खिंचाव को महसूस करें। इस स्थिति में एक से दो मिनट तक रूकें, गहरी सांस लें और निकालें। अंत में हाथों को नीचे कर लें। पैरों की स्थिति बदिलए और एक बार फिर से पर्वतासन का अभ्यास करें। रीढ़ को हमेशा सीधा रखिए।पर्वतासन के लाभपर्वतासन के अभ्यास से कंधो की जकडऩ और कंधों के जोड़ों को दर्द दूर होता है। साथ ही साथ रीढ़ के सभी जोड़ों के बीच का तनाव कम होता है। फलस्वरूप तंत्रिकाओं में एक प्रकार की स्फूर्ति बनी रहती है और मन प्रसन्न रहता है।पर्वतासन करने से ना सिर्फ सांस लेने में अधिक सुविधा होती है, बल्कि फेंफड़ों की क्षमता बढ़ती है. दरअसल जब हाथों को ऊपर की ओर खींचा जाता है तब पेट की मांसपेशियों में हल्का सा खिंचाव बना रहता है और छाती चौड़ी हो जाती है, जिससे फेंफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ जाती है और सांस भरने और निकालने में सुविधा होती है। गर्भवती महिलाएं भी पहले 6 महीने तक इस आसन का अभ्यास कर सकती हैं। इस आसन के अभ्यास से तंत्रिकाओं में चुस्ती स्फूर्ति बनी रहती है।

नहीं पड़ेगा दिल का दौरा

हमारे शरीर में रक्त संचार सामान्य रहना बहुत जरूरी है। रक्त संचार कम या ज्यादा होना दोनों ही परिस्थितियां हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। ऐसे में हमेशा बीमारी को दूर रखने के लिए सही आहार के साथ-साथ योगा भी काफी अहम भूमिका निभाता है।
आसन की विधि: इस आसन की पूर्ण अवस्था प्राप्त करने में नियमित अभ्यास बहुत जरूरी। इसके लिए किसी समतल स्थान पर कंबल या दरी बिछाकर सीधे खड़े हो जाएं। दोनों पैरों के मध्य लगभग एक मीटर की दूरी रखें। लंबी सांस लेकर अंदर ही रोकें। इसमें दाएं हाथ से बाएं पैर का पंजा स्पर्श करें। अब धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए झुकें और बाएं हाथ से दाएं पैर के पंजे का स्पर्श करें और फिर दाएं हाथ से बाएं पैर के पंजे का स्पर्श करें। आपको अपनी नजर हाथ के आगे भाग पर टिकाए रखें। इस बात का भी ध्यान रखें कि झुककर पांव को छूते समय पैर जरा भी झुकें नहीं। वह बिल्कुल सीधी और तनी हुई रखें। इस आसन से कमर का जितना अधिक झुकाव होगा, उतना ही अधिक लाभ प्राप्त होगा। एक बात और छाती को विशेष रूप से पांव की ओर घुमाना चाहिए। इस क्रिया से छाती व फेंफड़े भी मजबूत होंगे।
आसन के लिए सावधानी: यह आसन गर्भवती महिलाओं को नहीं करना चाहिए।
आसन के लाभ: इसके नियमित अभ्यास से हृदय और सांस संबंधी रोगों में बेहद फायदा मिलता है। इससे पेट की आंतें स्वस्थ रहती हैं। कमर दर्द से छुटकारा मिलता है। इस योग से पूरे शरीर का व्यायाम होता है जिससे शरीर का रक्त संचार ठीक रहता है। शरीर को बल मिलता है। कमर, गर्दन, हाथों के लिए यह आसन बेहद लाभदायक है।

किसी भी व्यायाम में ऐसी व्यवस्था नहीं है कि पेट के सभी तंत्रों को कुछ क्षण के लिए आराम दिया जा सके। पेट की सारी पेशियों की मालिश भी प्राकृत रूप से हो जाती है। जिनको कब्ज की परेशानी रहती है, उनके लिए यह उड्डीयन बन्ध सबसे अधिक फायदेमंद है।उड्डीयन बंध की विधि: सबसे पहले कंबल या दरी बिछाकर पद्मासन में बैठ जाएं। पेट के अंदर की सारी वायु निकाल दें और पेट को अंदर की ओर खलाएं। जब पेट अंदर चला जाए, तो नाभि के नीचे के के भाग को सिकोड़ें। इसप्रकार महाप्राचीरा ऊपर को उठेगी और नाभि के अंग पेडू और गुप्तांग के आसपास की पेशियों का शिथलीकरण हो जाए। घुटनों को थोड़ा मोड़ें और दोनों घुटनों पर रखें। सांस बाहर निकाल दें। अब घुटनों पर जोर देते हुए पेट को अंदर खलाएं जिससे पेट में गड्ढा सा बन जाए। इस स्थिति के बाद नाभि के नीचे के भाग पेडू और गुप्तांग के चारों ओर की पेशियों को ऊपर की ओर तानें। इस प्रकार उदर, पेडू और नीचे की पेशियों का शिथलिकरण हो जाएगा। इसी स्थिति में रहकर पेट का तनाव कम कर दें और धीरे-धीरे सांस अंदर जाने दें। यह पूर्ण उड्डीयन की स्थिति होगी। जबतक सांस सरलता से रोक सके, उतनी ही देर खलाने की क्रिया जारी रखें। जब यह महसूस होने लगे की अब सांस नहीं रुकेगी तो धीरे-धीरे अंदर की ओर सांस भरना शुरू करें।सावधानी: हाई ब्लड प्रेशर के रोगी इस बंध को ना करें।उड्डीयन बंध के फायदे: इस बंध से पेट के सभी तंत्रों की मालिश हो जाती है। पाचन शक्ति बढ़ती है। कुण्डलिनी जागरण में यह बंध महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि किसी व्यक्ति को कब्ज की समस्या है तो उसे यह बंध नियमित करना चाहिए। साथ ही इस बंध से भूख बढ़ती है एवं पेट संबंधी कई रोग दूर होते हैं।

पाइल्स की प्राब्लम

आजकल की अति व्यस्त जीवन शैली में मन को एकाग्र रख पाना असंभव सा हो गया है। मन को एकाग्र रखने का मतलब यही है कि मन फालतू बातों की ओर ना भटके तथा किसी भी कार्य को अच्छे मन से कर सके। मन की एकाग्रता बढ़ाने के लिए प्रणवासन करें। जल्द ही लाभ प्राप्त होने लगेगा।आसन की विधि:किसी साफ और स्वच्छ स्थान पर कंबल या दरी बिछाकर पीठ के बल लेट जाएं। अब दाएं पैर को घुटने से मोड़कर, बाएं हाथ से दाहिने पैर की एड़ी को पकड़ें। इसके बाद दाहिने पैर को कंधे के पीछे से ले जाकर गर्दन के पिछले भाग से एड़ी को छूते हुए सिर के नीचे रखें। इसी तरह अब बाएं पैर को भी गर्दन के पीछे ले जाकर एड़ी को सिर के नीचे रखें। दोनों हाथों की उंगलियां नितंबों में फंसा कर रखें और अपनी दृष्टि को सामने की ओर टिकाएं।सावधानी:यह आसन लड़कियों और महिलाओं को कभी नहीं करना चाहिए। क्योंकि इसके अभ्यास से संतान नहीं होती है। जो महिलाएं संतान नहीं चाहती वे इस आसन को कर सकती हैं।आसन के लाभ:यह आसन ध्यान और समाधि में सहायक है। इस आसन से मन को शांति प्राप्त होती है और एकाग्रता बढ़ती है। रीढ़ की हड्डी मजबूत बनती है। पेट और गले सुदृढ़ रहते हैं। कमर दर्द दूर होता है। इस आसन से बवासीर के रोग में भी राहत मिलती है।

असंतुलित खान-पान और अव्यवस्थित दिनचर्या के चलते काफी युवाओं का शरीर बेडोल हो जाता है। इसी वजह से अधिकांश समय आलस और सुस्ती में बीतता है। इसे दूर करने के लिए हस्त कटिपादासन करें।

आसन की विधि: कंबल या दरी बिछाकर दोनों पैरों में थोड़ा फासला रखकर खड़े हो जाएं तथा छाती की सीध में फैलाएं। अब गहरी सांस लें और कमर को जितना घुमा सकते हैं, घुमाएं, दाएं-बाएं दोनों तरफ तीस-चालीस सेकंड से प्रारंभ करके दो मिनिट तक का समय बढ़ाएं।आसन
के लाभ:हस्त कटिपादासन के नियमित अभ्यास से कंधे लचीले और पुष्ट होते हैं। बांहें मजबूत बनती हैं। वात रोग दूर होते हैं। छाती और कमर के रोगों से निपटने के लिए यह आसन बेहद फायदेमंद है। रक्त शुद्ध होता है। त्वचा की चमक बढ़ती है, चेहरे का आकर्षण बढ़ता है। इस आसन से मोटे शरीर वाले लोगों को 3-4 महीने में ही फायदा मिलने लगता है। इससे कमर पतली और आकर्षक हो जाती है।

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