शुक्रवार, 6 मई 2011

Bimari

खून बढ़ाने के लिए

  • खून बढ़ाने के लिए, गन्ने का रस पियें
  • बेल का फल सूखा कर उस के गुदे का चूर्ण में मिश्री मिला कर लेने से भी खून सी बढ़ोतरी होती है ।


फोड़े-फुंसियाँ

फोड़ा-फुंसी है तो पालक+गाजर+ककड़ी तीनों को मिला कर उस का रस ले लें अथवा नारियल का पानी पियें तो फोड़ा पुंसी में आराम होता है ।



पित्तजन्य / गर्मी के कारण बीमारियाँ

धनिया, आंवला, मिश्री समभाग पीस के रख दें........एक चम्मच रात को भिगो दें और सुबह मसल के पियें तो सिर दर्द में आराम हो जायेगा, नींद अच्छी आएगी, मूत्र दाह, नकसीर में आराम होगा, लू से रक्षा होगी और पेट भी साफ रहेगा ।

गर्मी या पित्त के कारण सिर दर्द
गर्मी में सिर दर्द होता हो, कमजोरी हो तो सूखा धनिया पानी में पीस/घिस के माथे पे लेप करने से सिर दर्द में आराम होता है ।



त्वचा के रोग एवं घमोरियां

जिनको को पहले निमोनिया जैसी गंभीर बीमारी हो गयी हो, जिन को चमड़ी के रोग हों या घमोरियां हो वो नीम के फूल १० ग्राम मिश्री मिला कर पियें ।

बरगद का 5 ग्राम दूध महानारायण तेल में मिलाकर मालिश करें।

बड़ की छाल और काली मिर्च दोनों 100-100 ग्राम पीसकर 250 ग्राम सरसों के तेल में पकायें फिर लकवाग्रस्त अंग पर लेप करें

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सिरदर्द में

सिरदर्द होता हो तो दायाँ नथुना बंद करके बाएं नथुने से श्वास लो अथवा दायें नथुने से श्वास लेके बाएं नथुने से छोड़ो । इससे सिरदर्द में आराम होगा ।

जन्मदिवस पर दूध (१० ग्राम), गुड़ (१ ग्राम), काले तिल (१ चुटकी) का मिश्रण करके चिरंजीवियों (हनुमानजी, भीष्म पितामह, अश्वथामा, मार्कंडेय, परशुराम, विभीषण, कृपाचार्य और बलि) का आवाहन करके उसका आचमन करने वाला व्यक्ति चिरंजीवी होता है ।




दस्त व संग्रहणी में

पलाश का 1 से 3 ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध अथवा आँवले के रस के साथ लेने से बल एवं वीर्य की वृद्धि होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं और शरीर पुष्ट होता है।

यह गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है।




बवासीर में

बवासीर में पलाश के पत्तों की सब्जी घी व तेल में बनाकर दही के साथ खायें।



रक्तस्राव

नाक, मल-मूत्रमार्ग अथवा योनि द्वारा रक्तस्राव होता हो तो छाल का काढ़ा (50 मि।ली.) बनाकर ठंडा होने पर मिश्री मिला के पिलायें।

आँत्रवृद्धि

छाल व पत्तों द्वारा उपचारः बालकों की आँत्रवृद्धि (Hernia) में छाल का काढ़ा (25 मि।ली.) बनाकर पिलायें।



बिच्छूदंश

पलाश के बीज आक (मदार) के दूध में पीसकर बिच्छूदंश की जगह पर लगाने से दर्द मिट जाता है।



कृमि

पलाश के बीजों द्वारा उपचारः पलाश के बीजों में पैलासोनिन नामक तत्त्व पाया जाता है, जो उत्तम कृमिनाशक है। 3 से 6 ग्राम बीज-चूर्ण सुबह दूध के साथ तीन दिन तक दें। चौथे दिन सुबह 10 से 15 मि।ली. अरण्डी का तेल गर्म दूध में मिलाकर पिलायें, इससे कृमि निकल जायेंगे।

आँख आने पर

रतौंधी की प्रारम्भिक अवस्था में फूलों का रस आँखों में डालने से लाभ होता है।

आँख आने पर (Conjunctivitis) फूलों के रस में शुद्ध शहद मिलाकर आँखों में आँजें।



प्रमेह (मूत्र-संबंधी विकारों) में

प्रमेह (मूत्र-संबंधी विकारों) में पलाश के फूलों का काढ़ा(50 मि.ली.) मिलाकर पिलायें।




महिलाओं के मासिक धर्म में अथवा पेशाब में

महिलाओं के मासिक धर्म में अथवा पेशाब में रूकावट हो तो फूलों को उबालकर पुल्टिस बना के पेड़ू पर बाँधें। अण्डकोषों की सूजन भी इस पुल्टिस से ठीक होती है।


ग्रीष्म ऋतु में

ग्रीष्म ऋतु में सूर्य अपनी किरणों द्वारा शरीर के द्रव तथा स्निग्ध अंश का शोषण करता है, जिससे दुर्बलता, अनुत्साह, थकान, बेचैनी आदि उपद्रव उत्पन्न होते हैं। उस समय शीघ्र बल प्राप्त करने के लिए मधुर, स्निग्ध, जलीय, शीत गुणयुक्त सुपाच्य पदार्थों की आवश्यकता होती है। इन दिनों में आहार कम लेकर बार-बार जल पीना हितकर है परंतु गर्मी से बचने के लिए बाजारू शीत पदार्थ एवं फलों के डिब्बाबंद रस हानिकारक हैं। उनसे लाभ की जगह हानि अधिक होती है। उनकी जगह नींबू का शरबत, आम का पना, जीरे की शिकंजी, ठंडाई, हरे नारियल का पानी, फलों का ताजा रस, दूध आदि शीतल, जलीय पदार्थों का सेवन करें। ग्रीष्म ऋतु में स्वाभाविक उत्पन्न होने वाली कमजोरी, बेचैनी आदि परेशानियों से बचने के लिए ताजगी देने वाले कुछ प्रयोगः

धनिया पंचकः धनिया, जीरा व सौंफ समभाग मिलाकर कूट लें। इस मिश्रण में दुगनी मात्रा में काली द्राक्ष व मिश्री मिलाकर रखें।

उपयोगः एक चम्मच मिश्रण 200 मि.ली. पानी में भिगोकर रख दें। दो घंटे बाद हाथ से मसलकर छान लें और सेवन करें। इससे आंतरिक गर्मी, हाथ-पैर के तलुवों तथा आँखों की जलन, मूत्रदाह, अम्लपित्त, पित्तजनित शिरःशूल आदि से राहत मिलती है। गुलकंद का उपयोग करने से भी आँखों की जलन, पित्त व गर्मी से रक्षा होती है।

ठंडाईः जीरा व सौंफ दो-दो चम्मच, चार चम्मच खसखस, चार चम्मच तरबूज के बीज, 15-20 काली मिर्च व 20-25 बादाम रात भर पानी में भिगोकर रखें। सुबह बादाम के छिलके उतारकर सब पदार्थ खूब अच्छे से पीस लें। एक किलो मिश्री अथवा चीनी में चार लिटर पानी मिलाकर उबालें। एक उबाल आने पर थोड़ा-सा दूध मिलाकर ऊपर का मैल निकाल दें। अब पिसा हुआ मिश्रण, एक कटोरी गुलाब की पत्तियाँ तथा 10-15 इलायची का चूर्ण चाशनी में मिलाकर धीमी आँच पर उबालें। चाशनी तीन तार की बन जाने पर मिश्रण को छान लें, फिर ठंडा करके काँच की शीशी में भरकर रखें।

उपयोगः ठंडे दूध अथवा पानी में मिलाकर दिन में या शाम को इसका सेवन कर सकते हैं। यह सुवासित होने के साथ-साथ पौष्टिक भी हैं। इससे शरीर की अतिरिक्त गर्मी नष्ट होती है, मस्तिष्क शांत होता है, नींद भी अच्छी आती है।

आम का पनाः कच्चे आम को पानी में उबालें। ठंडा होने के बाद उसे ठंडे पानी में मसल कर रस बनायें। इस रस में स्वाद के अनुसार गुड़, जीरा, पुदीना, नमक आदि मिलाकर खासकर दोपहर के समय इसका सेवन करें। गर्मियों में स्वास्थ्य-रक्षा हेतु अपने देश का यह एक पारम्परिक नुस्खा है। इसके सेवन से लू लगने का भय नहीं रहता ।

गुलाब शरबतः डेढ़ कि.ग्रा. चीनी में देशी गुलाब के 100 ग्राम फूल मसलकर शरबत बनाया जाय तो वह बाजारू शरबतों से पचासों गुना हितकारी है। सेक्रीन, रासायनिक रंगों और विज्ञापन से बाजारू शरबत महंगे हो जाते हैं। आप घर पर ही यह शरबत बनायें। यह आँखों व पैरो की जलन तथा गर्मी का शमन करता है। पीपल के पेड़ की डालियाँ, पत्ते, फल मिलें तो उन्हें भी काट-कूट के शरबत में उबाल लें। उनका शीतलतादायी गुण भी लाभकारी होगा।

अपवित्र पदार्थों से बने हुए, केमिकलयुक्त, केवल कुछ क्षणों तक शीतलता का आभास कराने वाले परंतु आंतरिक गर्मी बढ़ाने वाले बाजारू शीतपेय आकर्षक रंगीन जहर हैं। अतः इनसे सावधान!

बुधवार, 4 मई 2011

पक्षाघात- कुछ विशिष्ट आयुर्वेदिक क्रियाएं

आज के प्रगतिशील वैज्ञानिक युग में सी.टी. स्कैन, एम.आर.आई जैसे महत्वपूर्ण परीक्षणों की वजह से पक्षाघात की गंभीरता हम समझ सकते हैं। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में पक्षाघात के रोगियों के लिये आपातकालीन चिकित्सा भी की जाती है जैसे मल मूत्र पर नियंत्रण न होने पर कैथेटर लगाना, निगलने में असमर्थता होने पर रायल्स टयूब लगाकर टयूब लगाकर रुग्ण को सहारा दिया जाता है पर सभी प्रकार की आपात्कलीन चिकित्साएं देने पर आखिर रूग्ण का क्या हाल होगा। इसका उत्तर यही है कि आधुनिक चिकित्सक केवल फिजियोथिरेपी के सहारे रुग्ण को छोड़ देते हैं।
आपात्कालीन चिकित्सा निपटाने के पश्चात कभी-कभी रूग्ण के सगे संबंधी उसे नीम हकीम के चक्कर में ले जाते हैं। नीम हकीम उसकी सभी प्रकार की जीवन रक्षक एलोपैथी औषधि बंदकर अपनी ही औषधि देते हैं। ऐसे में रोगी को कुछ न कुछ हानि होने की संभावना अवश्य होती है। हो सकता है लकवे का दूसरा आघात भी हो, इसलिए रुग्ण को किसी योग्य आयुर्वेद चिकित्सक के मार्गदर्शन में चिकित्सा देने की आवश्यकता है क्योंकि ये नीम हकीम पक्षाघात के हर रुग्ण को एक ही प्रकार की चिकित्स देते हैं। ऐसे रोगी में कारणानुरूप चिकित्सा कराना आवश्यक होता है।
आयुर्वेदिक चिकित्सक होने के नाते मेरे मतानुसार लकवाग्रस्त रोगी को फिजियोथिरेपी के साथ-साथ रुग्ण पर ऐसी ाियाएं करनी चाहिये जिससे मस्तिष्क में रक्तसंचार की आपूर्ति होती रहे व मस्तिष्कगत नाड़ी कोषों को चेतना मिलती रहे। इस प्रकार की चिकित्सा आयुर्वेद के पंचकर्म से ही संभव है।
पंचकर्म की महत्वपूर्ण ाियाओं से पक्षाघात का मरीज स्वयं अपने दैनिक कार्य भलीभांति कर सकता है। ये ाियाएं शिरोधारा, नस्य, स्ेहन, स्वेदन, पिंड स्वेद, पिषींचल धारा, बस्ति व मृदुविरेचन है। इन सभी ाियाओं को करने से शरीर की नसों व मांसपेशियों को पुष्टि व ताकत मिलती है जिससे रूग्ण चलने-फिरने में कुछ प्रतिशत समर्थ हो जाता है। पक्षाघात का मुख्य कारण मस्तिष्क गत होता है, अत: इसमें शिरोधारा लाभदायी है। शिरोधारा में रूग्ण के ललाट प्रदेश पर औषधियुक्त तेल इत्यादि की धारा विशिष्ट प्राियानुसार गिराई जाती है। शिरोधारा से ब्लडप्रेशर व मानसिक तनाव कम होता है। पक्षाघात के रुग्ण में नस्य के अंतर्गत विशिष्ट प्रािया द्वारा नाक में औषधिद्रव्य डालते हैं जिसके परिणाम आश्चर्यजनक पाए गये हैं।
लकवाग्रस्त रूग्णों में औषधियुक्त तैलों से मालिश (स्ेहन) योग्य चिकित्सक के मार्ग दर्शन में करना चाहिये क्योंकि मांसपेशियों व नसों का उद्गम व निवेश स्थान, चिकित्सक को ही मालूम रहता है, अत: योग्य चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही वैज्ञानिक पध्दति से मालिश करनी चाहिये। पिंषीचल स्वेद में प्रभावित अंग में कोष्ण तैल की धारा गिराते हैं जिससे मांसपेशियों का पोषण होकर ताकत आती है।
पिंड स्वेद में चावल, औषधियुक्त काढ़े की पोटली बनाकर प्रभावित अंग पर घर्षण करते हैं जिससे मांसपेशियों में रक्तप्रवाह बढ़कर स्ायु, मज्जा व मांस धातु को बल मिलता है। इस पिंड स्वेद के परिणाम पोलियो रोग में लाभदायी पाए गये हैं। पक्षाघात का अंतर्भाव वातव्याधि में होता है। वात व्याधि के लिये बस्ति आधी चिकित्सा कही है इसलिये पक्षाघात के रुग्णों में बस्ति कर्म का महत्वपूर्ण स्थान है। बस्तिकर्म में गुद मार्ग द्वारा विशिष्ट औषधियां प्रविष्ट की जाती हैं। लकवाग्रस्त रोगी में विरेचन के अंतर्गत विशिष्ट प्रािया द्वारा जुलाब देते हैं जिससे मस्तिष्कगत धमनियों में रुकावटें दूर होती हैं।
हमारा एक युवा रुग्ण श्री नितिन गलानी लकवाग्रस्त होकर आया था जो चलने-फिरने, उठने-बैठने में असमर्थ व शय्या पर ही था। आरोग्यधाम में उपलब्ध निरंतर 21 दिन की विशिष्ट चिकित्सोपाम से ठीक होकर स्वयं पैदल चलकर अपने घर गया। इस तरह पंचकर्म की इन विशिष्ट ाियाओं से अनेक वातविकार व लकवाग्रस्त रूग्ण लाभान्वित हो रहे हैं। पक्षाघात के रोगी में सबसे अहम् होता है आत्मविश्वास का अभाव, अत: मानसिक सांत्वना देकर व्यायाम फिजियोथिरेपी कर्म के लिये प्रेरित करना चाहिये। औषधि व उक्त विशिष्ट ाियाओं से पक्षाघात के रूग्ण कुछ प्रतिशत में पुन: अपनी दैनिक चर्या कष्टरहित व्यतीत कर सकते हैं। ये विशिष्ट ाियाएं सेरिब्रल पाल्सी व पोलियो में भी लाभदायी पायी गयी हैं।


मंगलवार, 3 मई 2011

हर समय उपयोगी जड़ी-बूटियां

लोग कहते हैं कि हर व्यक्ति छोटा-मोटा चिकित्सक होता है। यानी छोटी-मोटी बीमारियों के प्रति डाक्टर के पास जाने की बजाय घर में उपलब्ध जड़ी-बूटियों से ही अपना इलाज कर स्वस्थ हो जाता है।
वैसे हमारे घरों में ही इतनी प्राकृतिक दवाएं होती है जिससे सामान्य बीमारियों में हम ज्यादा परेशान हुए बगैर स्वस्थ हो सकते हैं। अगर इन जड़ी बूटियों का चूर्ण शीशियों में भरकर रख लें तो वक्त आने पर तुरन्त इलाज कर सकत हैं। ढूंढने में अपना समय बर्बाद नहीं करना पड़ेगा। प्रस्तुत है कुछ सामान्य जड़ी-बूटियां और उनके गणधर्म।
अजवाइन-स्वाद में चरपरी और हल्की-कड़वी होती है। यह पाचन क्रिया ठीक करने वाली, न्निदोष नाशक, शीत विकृति में फायदेमंद है। घाव इत्यादि में इसके जल का धोने में उपयोग किया जाता है।
अनार- तीनों दोष (वात पित्त कफ) को ठीक करने वाला, स्वादिष्ट, हृदय रोगों में लाभकारी है। उल्टी होने पर अनार दाने का चूर्ण व शक्कर खिलाया जाता है। इसके अलावा प्रतिदिन इसके चूर्ण सेवन करने से वीर्य में वृध्दि होती है।
आम- आम का अमचूर वीर्य वर्ध्दक, शीतकारी, पित्त को शान्त करने वाला कब्जियत के लिए उपयोगी है।
आंवला- आंवला का चूर्ण प्रतिदिन रात्रि में कुनकने जल के साथ सेवन करने पर मोटापा, विटामिन सी, की कमी से उत्पन्न रोग, पेट संबंधी विकार शान्त हो जाते हैं। वीर्य वर्ध्दक व पुष्टि के लिए यह सदैव उपयोगी रहा है। रक्त दोष की यह सर्वोत्तम औषधि है। दस्त लगने की स्थिति में उत्पन्न प्यास में या जल की कमी में इसे शहद से सेवन किया जाये या इसका चूर्ण जल में कुछ घंटे भिगोकर रखें और फिर छान कर सेवन करें तो लाभ होगा।
इलायची- अच्छी पाचक, कास रोधक, शीत प्रकृति और कफ नाशक होती है। इसका चूर्ण शहद के साथ सेवन करना चाहिए। मुख की दुर्गन्ध दूर करने के लिए सुबह-शाम इलायची चबाना चाहिए।
ईसब गोल की भूसी- यह बाजार में आसानी से उपलब्ध ह। पेचिश लगने के दौरान इसे दूध में भिगोकर शक्कर के साथ सेवन करना चाहिए।
कत्था- लोग आमतौर पर पान में लगाकर खाते हैं। इसे खैर की लकड़ी से प्राप्त किया जाता है। पतले दस्त लगने पर दिन में चार-पांच बार दो-दो चुटकी कत्था खाकर पानी पीना चाहिए।
करेला- करेले का चूर्ण बाजारों में उपलब्ध होता है या फिर सुखाकर (पूर्णफल) पीसकर रख लें। यह कृमिनाश की अच्छा दवा है।
कालीमिर्च- काली मिर्च का मंजन करने पर दांत दर्द ठीक होता है।
केशर- हालांकि शुध्द केशर काफी महंगी मिलती है। इसका सेवन दूध में उबाल कर करने पर चेहरे का रंग निखरता है। यह प्रयोग विवाहित लोगों को करना चाहिए।
चंदन- चंदन चूर्ण का शर्बत पेशाब में जलन व धूप-गर्मी से उत्पन्न सिरदर्द में लाभकारी है। चेहरे पर लगाने से चेहरा निखरता है। यह शीतल प्रकृति का होता है। अतः शीतकाल में इसका उपयोग न करें।
जिमीकंद- जिमीकंद को सुखाकर चूर्ण बना लें या इसके कच्चे कंद को आग में भूनकर नमक के साथ खाएं। बवासीर का यह सर्वोत्तम औषधि है।
तुलसी- इसका सर्वाग उपयोगी है। प्रतिदिन तुलसी की पांच पत्ती सेवन करने पर बहुत से रोग स्वमेव खत्म हो जाते हैं। यह अच्छा एण्टी बायोटिक है।
नीम- नीम के बीज से निकाला गया तेल चर्म रोग नाशक, जुएं नाशक है। इसकी सूखी पत्तियों को गेहूं या कागज के बीच रख देने से कीड़े नहीं लगते हैं।
बादाम- प्रतिदिन बच्चों को पांच बादाम छीलकर दूध के साथ देने पर स्मरण शक्ति में आशानुकूल वृध्दि होती है।
मैथी- महिलाओं में होने वाले, वात के कारण कमर व जोड़ों के दर्द में, इसके लड्डू देना चाहिए। महिलाओं के रोग सफेद प्रदर में मैथी को जल में 8-10 घंटे भिगोकर इसके जल से योनि प्रदेश को धोने पर यह रोग चला जाता है। लौंग- चिरपिरे स्वाद वाली यह मुखीय विकारों में फायदेमंद है।

सोमवार, 2 मई 2011

आंख आना, नेत्राभिष्यन्द

(CONJUNCTIVITIS)


परिचय :

आंखों का लाल होना, आंखों में कुछ अटका हुआ महसूस होना और दर्द होना ही इस रोग के मुख्य लक्षण हैं। इस रोग में आंखों को खोलने से भी दर्द होता है। आंखों पर ज्यादा रोशनी पड़ने से या ज्यादा बोझ डालने से दर्द और बढ़ जाता है। इस रोग के बढ़ने से आंखों से पानी निकलने लगता है और गाढ़ा-गाढ़ा पदार्थ भी निकलता है जिसे गीढ़ (कीचड़) कहते हैं। यह कीचड़ रात में ज्यादा निकलने से पलके चिपक जाती हैं।

कारण :

छोटे बच्चे आंखों के रोग की बीमारी से ज्यादा पीड़ित होते हैं क्योंकि छोटे बच्चे धूप या किसी चीज की परवाह किये बिना देर तक खेलते रहते हैं चाहे सर्दी हो या गर्मी उन्हें किसी की परवाह नहीं होती है। इसी कारण से बाहर खेलते समय धूल-मिट्टी के कण आंखों में गिर जाने की वजह से आंखों में दर्द होता है और सूजन आ जाती है। वायु प्रदूषण से आंखों को बहुत नुकसान होता है। सड़क पर गाड़ियों के जहरीले धुंएं से भी आंखों में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं।

लक्षण :

यह संक्रामक (छूने से फैलने वाला रोग) है यह एक बच्चे से दूसरे बच्चे में तेज गति से फैलता है। घर में किसी रोगी के तौलिए या रूमाल के इस्तेमाल से भी आंखों में रोग फैलता है। इस रोग में आंखों में सूजन आ जाती है और आंखें लाल हो जाती हैं। पलकों के किनारे पर कीचड़ दिखाई देते हैं। सूरज की रोशनी में रोगी बच्चे को आंखों को खोलने मे बहुत दर्द और जलन महसूस होती है जब कोई रोगी बच्चा रात को सोकर सुबह उठता है तो पूय (गीढ़, कीचड़) के कारण उसकी पलकें खुल नहीं पाती हैं और पलके पूय (गीढ़) से चिपक जाती हैं। आंखों में सूजन होने से बच्चे रात को सो नहीं पाते हैं। बच्चों को ऐसा लगता है कि आंखों में कुछ गिर गया है। रोगी को सिरदर्द भी होता है। आंखों के आगे अंधेरा फैलने लगता है।


शहद :

    • 1 ग्राम पिसे हुए नमक को शहद में मिलाकर आंखों में सुबह-शाम लगाने से आंख आने की बीमारी में आराम मिलता है।
    • चंद्रोदय वर्ति (बत्ती) को पीसकर शहद के साथ आंखों में लगाने से आंखों के रोग दूर होते हैं।
    • सोना मक्खी को पीसकर और शहद में मिलाकर आंखों में सुबह-शाम लगाने से आंख आने के रोग में लाभ होता है।


    जायफल :

    जायफल को पीसकर दूध में मिलाकर आंखों में सुबह-शाम लगाने से बीमारी में राहत मिलती है।


      हल्दी :


        • 10 ग्राम हल्दी को लगभग 200 ग्राम पानी में उबालकर छान लें, इसे आंखों में बार-बार बूंदों की तरह डालने से आंखों का दर्द कम होता है। इससे आंखों में कीचड़ आना और आंखों का लाल होना आदि रोग समाप्त हो जाते हैं। इसके काढे़ में पीले रंग से रंगे हुए कपड़े का प्रयोग जब आंख आये तो तब करें। उस समय इस कपडे़ से आंखों को साफ करने से फायदा होता है।
        • हल्दी को अरहर की दाल में पकायें और छाया में सुखा लें उसे पानी में घिसकर, शाम होने से पहले ही दिन में 2 बार आंखों में जरूर लगायें। इससे झामर रोग, सफेद फूली और आंखों की लालिमा में लाभ होता है।


        मुलहठी :


          • मुलहठी को पानी में डालकर रख दें। 2 घंटे के बाद उस पानी में रूई डुबोकर पलकों पर रखें। इससे आंखों की जलन और दर्द दूर हो जाता है।
          • आंख आने पर या आंखों के लाल होने के साथ पलकों में सूजन आने पर मुलहठी, रसौत और फिटकरी को एक साथ भूनकर आंखों पर लेप करने से बहुत आराम आता है।


          धनिया :

          धनिये का काढ़ा तैयार करके अच्छी तरह से छान लें। अब इस काढ़े को बूंद-बूंद करके हर 2-3 घंटों में आंखों में डाले। इससे आंखों को आराम मिलता है। इस काढ़े को आंखों में डालने की शुरुआत करने से पहले आंखों में एक बूंद एरण्ड तेल (कैस्टर आयल) डाल लें। यह आंख आने और आंखों के दर्द की बहुत लाभकारी दवा है।


            सत्यानाशी :


              • सत्यानाशी (पीले धतूरे) के पीले का दूध, गोघृत (गाय के घी) के साथ आंखों में लगाने से लाभ होता है। यह दूध हर समय नहीं मिलता इसलिए जब यह दूध मिले तो तब इस दूध को इकट्ठा करके सुखाकर रख लें। इसके बाद जरूरत पड़ने पर इसे गोघृत (गाय के घी) में मिलाकर काजल की तरह आंखों में लगाने से आंख आने का रोग दूर होता है।
              • सत्यानाशी (पीला धतूरा) का दूध निकालकर किसी सलाई की मदद से आंखों में लगाने से आंखों की सूजन और दर्द दूर होता है।


              ममीरा :

              ममीरा को पीसकर पलकों पर लगाने से आंखों के सभी रोगों में लाभ होता है।


                अर्कपुष्पी :

                आंख आने में अर्कपुष्पी (छरिवेल) की जड़ को पीसकर पलकों पर लेप करने से आंखों के रोगों में आराम मिलता है।


                  पाथरचूर :


                    • पाथरचूर (पाषाण भेद की एक जाति पाथरचूर से अलग) का रस पलकों पर लगाने से आंखों से पानी बहने के समय का दर्द कम होता है।
                    • पाथरचूर (सिलफड़ा) को पीसकर शहद में मिलाकर आंखों में लगाने से पूरा आराम मिलता है।


                    रसौत :


                      • रसौत को पानी में घोलकर आंखों की पलकों पर लगाने से काफी लाभ होता है। नेत्राभिष्यन्द या आंख आने का रोग नया हो या पुराना इससे जरूर लाभ होगा। रसौत के घोल में अफीम, सेंधानमक और फिटकरी को मिलाकर भी लेप किया जा सकता है।
                      • रसौत को घिसकर रात को सोते समय आंखों की पलकों पर लेप करने लाभ होता है।


                      बेल :

                      नेत्राभिष्यन्द या आंख आने पर लगभग 7 मिलीलीटर की मात्रा में बेल के पत्तों के रस को रोगी को सुबह-शाम पिलायें और उसके पत्तों का लेप बनाकर पलकों पर लगायें। इससे आंखों को आराम मिलता है।


                        सुहागा :

                        आंख आने पर सुहागा और फिटकरी को एक साथ पानी में घोल बनाकर आंख को धोयें और बीच-बीच में बूंद-बूंद (आई ड्राप्स) की तरह प्रयोग करें। इससे बहुत जल्दी लाभ होता है।


                          बकरी का दूध :

                          आंखों के लाल होने पर मोथा या नागरमोथा के फल को साफ करके बकरी के दूध में घिसकर आंखों में लगाने से आराम आता है।


                            चाकसू :

                            नेत्राभिष्यन्द या आंख आने पर चाकसू के बीजों को गून्थे हुए आटे के अंदर रखकर गर्म राख में रख दें और बाद में निकालकर बीज के छिलके हटाकर बारीक चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 60 मिलीग्राम की मात्रा में आंखों में लगाने से पूययुक्त नेत्राभिष्यन्द या आंख आना ठीक हो जाता है।


                              फरहद :


                                • आंख आने में फरहद की छाल को बारीक पीसकर पाउडर के रूप में पलकों पर लगाने से पूरा आराम मिलता है।
                                • फरहद की खाल के अंदर के भाग पर घी लगाकर घी के दिये को जलाकर जमी राख को आंखों में काजल की तरह लगाने से आंखों के रोग दूर होते हैं। स्वस्थ आंखों में लगाने से आंखों में किसी भी प्रकार के रोग होने की संभावना ही नहीं रहती है।


                                वेदमुश्क के फूल :

                                वेदमुश्क के फूलों के रस में कपड़ा भिगोकर आंखों पर रखने से नेत्राभिष्यन्द या आंख आना में लाभ होता है।


                                  हरिद्रा :

                                  नेत्राभिष्यन्द (आंख आने) में घीकुआंर का रस और हरिद्रा अथवा एलुवा (मुसब्बर) और हरिद्रा मिलाकर पलकों पर लेप करने से लाभ होता है।


                                    रक्त पुनर्नवा की जड़ :

                                    गदहपुरैना की जड़ (रक्त पुनर्नवा की जड़) को पीसकर शहद में मिलाकर रोजाना 2 से 3 बार आंखों में लगायें। इससे नेत्राभिष्यन्द (आंख आने) के रोग में आराम आता है।


                                      अनन्तमूल :

                                      अनन्तमूल का दूध आंखों में डालने से नेत्राभिष्यन्द या आंख आना में लाभ होता है।


                                        गुलाबजल :


                                          • आंखों को साफ करके गुलाब जल की बूंदें आंखों में डालने से आंखों के रोग समाप्त हो जाते हैं।
                                          • गुलाबजल आंखों में डालने से आंखों की जलन और किरकिरापन (आंखों में कुछ चुभना) भी दूर हो जाता है।


                                          चमेली :

                                          नेत्राभिष्यन्द (आंख आने) पर कदम के रस में चमेली के फूलों को पीसकर पलकों पर लेप करने से रोगी को लाभ होता है।


                                            अगस्त के फूल :

                                            अगस्त के फूल और पत्तों का रस नाक में डालने से आंखों में आराम आता है।


                                              बेर :

                                              बेर की गुठली को पीसकर गर्म पानी से अच्छी तरह से छानकर आंखों में डालने से नेत्राभिष्यन्द और आंखों का दर्द ठीक हो जाता है।


                                                निर्मली के बीज :

                                                निर्मली के बीजों को पानी के साथ पीसकर आंखों में लगाने से आंखों का लाल होना और नेत्राभिष्यन्द ठीक हो जाता है।


                                                  कुंगकु :

                                                  20 से 40 ग्राम कुंगकु की छाल का काढ़ा सुबह-शाम सेवन करने से आंखों के कई रोगों में फायदा होता है।


                                                    बबूल :

                                                    बबूल की पत्तियों को पीसकर टिकिया बना लें और रात के समय आंखों पर बांध लें सुबह उठने पर खोल लें। इससे आंखों का लाल होना और आंखों का दर्द आदि रोग दूर हो जायेंगे।


                                                      मक्खन :

                                                      लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में स्वर्ण बसन्त मालती सुबह-शाम मक्खन-मिश्री के साथ सेवन करने से आंख आना, आंखों में कीचड़ जमना और आंखों की रोशनी कमजोर होना आदि रोग दूर होते हैं।


                                                        बोरिक एसिड पाउडर :

                                                        बोरिक एसिड पाउडर को पानी में मिलाकर आंखों को कई बार साफ करने से आंखों के अंदर की पूय (मवाद) और धूल मिट्टी साफ हो जाते हैं।


                                                        मिश्री :

                                                        लगभग 6 से 10 ग्राम महात्रिफला और मिश्री को घी में मिलाकर सुबह-शाम रोगी को देने से गर्मी के कारण आंखों में जलन, आंखें ज्यादा लाल हो जाना, आंखों की पलकों का सूज जाना और रोशनी की ओर देखने से आंखों में जलन होना आदि रोग दूर होते हैं। इसके साथ ही त्रिफला के पानी से आंखों को धोने से भी आराम आता है।


                                                          फिटकरी :

                                                          फिटकरी का टुकड़ा पानी में डुबोकर पानी की बूंदें आंखों में रोजाना 3 से 4 बार लगाने से लाभ मिलता है।


                                                            त्रिफला :

                                                            4 चम्मच त्रिफला का चूर्ण 1 गिलास पानी में भिगों दें। फिर उस पानी को अच्छी तरह से छानकर आंखों पर छींटे मारकर आंखों को दिन में 4 बार धोने से आंखों के रोगों में लाभ होता है।


                                                              बरगद :

                                                              बरगद का दूध पैरों के नाखूनों में लगाने से आंख आना ठीक होता है।


                                                              दूध :

                                                              मां के दूध की 1-2 बूंदे बच्चे की आंखों में डालने से आंखों के रोगों में लाभ होता है।


                                                                आंवला :

                                                                आंवले का रस निकालकर उसे किसी कपडे़ में छानकर रख लें। इस रस को बूंद-बूंद करके आंखों में डालने से आंखों का लाल होना और आंखों की जलन दूर होती है।


                                                                गोक्षुर :

                                                                गोक्षुर के हरे ताजे पत्तों को पीसकर पलकों पर बांधने से आंखों की सूजन और आंखों का लाली दूर होती है।


                                                                दूब :

                                                                हरी दूब (घास) के रस में रूई के टुकड़े को भिगोकर पलकों पर रखने से आंख आना के रोग से छुटकारा मिलता है।


                                                                हरड़ :

                                                                हरड़ को रात के समय पानी में डालकर रखें। सुबह उठकर उस पानी को कपड़े से छानकर आंखों को धोयें। इससे आंखों का लाल होना दूर होता है।



                                                                नीम :


                                                                  • नीम के पत्ते और मकोय का रस निकालकर पलकों पर लगाने से आंखों का लाल होना दूर होता है।
                                                                  • नीम के पानी से आंखें धोकर आंखों में गुलाबजल या फिटकरी का पानी डालें।


                                                                  अडूसा :

                                                                  अड़ूसा के ताजे फूलों को हल्का सा गर्म करके पलकों पर बांधने से आंखों के दर्द होने की बीमारी दूर होती है।


                                                                  तगर :

                                                                  तगर के पत्तों को पीसकर आंखों के बाहरी हिस्सों में लेप करने से आंखों का दर्द बन्द हो जाता है।


                                                                    बथुआ :

                                                                    आंखों की सूजन होने पर रोज बथुए की सब्जी खाने से लाभ होता है।


                                                                      आत्रवरोध


                                                                      परिचय :

                                                                      आंत के अंदर मल की गांठ या किसी ठोस खाद्य-पदार्थ के अटकने या फंसने को आत्रवरोध कहते हैं।

                                                                      लक्षण :

                                                                      आंत का एक हिस्सा दूसरी आंत के अंदर चले जाने से आंतों में गुलझट पड़ जाने के कारण आत्रनली में सूजन आ जाती है अथवा आंतों में मल या दूसरी चीज फंस जाने से आंतों पर दबाव पड़ने के कारण यह रोग पैदा होता है।

                                                                      पेट में तेज दर्द होता है, दस्त बंद हो जाते हैं। कभी-कभी उल्टी भी होने लगती है और पेट फूल जाता है।

                                                                      चिकित्सा :

                                                                      1. त्रिफला : मल के रुकने की विकृति में कब्ज ज्यादा होती है। इसलिए कब्ज को खत्म करने के लिए त्रिफला का पाउडर 5 ग्राम रात में हल्के गर्म दूध के साथ खायें। इससे आंत्रावरोध ठीक हो जाता है।

                                                                      2. प्याज : आत्रवरोध में प्याज का काढ़ा पीने से लाभ होता है।

                                                                      3. एरंडी का तेल : एरंडी के तेल को दूध में मिलाकर पीने से मलावरोध खत्म होता है।

                                                                      4. कलौंजी : तीन चम्मच करेले का रस, आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह भूखे पेट और रात को सोते समय नियमित सेवन करना चाहिए।

                                                                        बड़ी आंत की सूजन

                                                                        (COLITIS)


                                                                        परिचय :

                                                                        बड़ी आंत की श्लैष्मिक झिल्ली के जलन और घाव को बड़ी आंत की सूजन, प्रदाह या कोलायटिस कहते हैं।

                                                                        भोजन तथा परहेज :

                                                                        शुरू के दिनों में उपवास रखें, बाद में पका हुआ केला, पपीता, शरीफा चीकू, उबली हुई सब्जियां, चावल-दाल, कच्चे नारियल का पानी और सेब का स्टयू आदि खिलाना चाहिए।

                                                                        कच्चा सलाद और पत्तेदार सब्जियां नहीं खानी चाहिए क्योंकि इनमें फाइबर काफी मात्रा में होता है। मसाले, अचार, चाय, काफी, ऐल्कोहल का सेवन नहीं करना चाहिए। धूम्रपान व उसके आस-पास जाने से बचना चाहिए। मैदा आदि से बनाई गई चीजें, तली हुई चीजें, पेस्ट्री, केक वगैरह नहीं खाना चाहिए।


                                                                        सिनुआर :

                                                                            • सिनुआर के पत्तों का रस 10 ग्राम से 20 ग्राम तक खाने से आंतों की सूजन मिट जाती है।
                                                                            • सिनुआर, करंज, नीम और धतूरे के पत्तों को पीसकर हल्का गर्म-गर्म ऊपर से पेट पर बांधा जाये तो और अच्छा परिणाम मिलता है।


                                                                            नागदन्ती :

                                                                            नागदन्ती की जड़ की छाल 3 से 6 ग्राम सुबह-शाम दालचीनी के साथ लेने से जलन और दर्द दूर होता है।


                                                                            राई :

                                                                            बड़ी आंत की सूजन में राई पीसकर लेप करें परन्तु एक घंटे से ज्यादा यह लेप न लगायें वरना छाले पड़ जायेंगे।


                                                                            हुरहुर :

                                                                            आंत की सूजन में पीले फूलों वाली हुरहुर के सिर्फ पत्तों का ही लेप करने से लाभ होता है।


                                                                              पालक का साग :

                                                                              आंत से सम्बन्धित रोगों में पालक का साग खाना फायदेमंद है।


                                                                                चौलाई :

                                                                                चौलाई का साग लेकर पीस लें और उसे लेप करे। इससे शांति मिलेगी और सूजन दूर होगी।


                                                                                  बड़ी लोणा (लोना) :

                                                                                  बड़ी लोणा का साग पीसकर आंत के सूजन वाले स्थान पर लेप लगायें या उसे बांधें दर्द कम होकर सूजन दूर हो जाता है


                                                                                  चांगेरी :

                                                                                  चांगेरी के साग को पीसकर लेप बना लें और उसे पेट के जिस हिस्से में दर्द हो वहां पर बांधने से लाभ होगा।


                                                                                    चूका साग :

                                                                                    चूका साग सिर्फ खाने और ऊपर से लेप करने व बांधने से ही दर्द दूर कर देता है।


                                                                                      गाजर :

                                                                                      गाजर में विटामिन बी-कॉम्पलेक्स मिलता है जो पाचन-संस्थान को शक्तिशाली बनाता है। इसके प्रयोग से कोलायटिस में लाभ मिलता है।


                                                                                        बरगद :

                                                                                        बरगद के पेड़ के नीचे जो जटाएं लटकती हैं, उनमें अंगुली की मोटाई की जटायें एक किलो लेकर एक-एक इंच के टुकड़े काट लें। इसे पांच किलो पानी में उबालें। उबलते हुए जब एक किलो पानी रह जाये तब ठंडा करके छान लें और बोतल में भर लें। इसको दो चम्मच सुबह-शाम पीयें। इससे लाभ होगा।


                                                                                        पानी :

                                                                                        खाना खाने के बाद एक गिलास गरम-गरम पानी, जितना गर्म पिया जा सके, लगातार पीते रहने से कोलाइटिस ठीक हो जाती है।


                                                                                        छाछ :

                                                                                        शुरू में तो उपवास रखना चाहिए और सिर्फ छाछ का ही इस्तेमाल करना चाहिए।


                                                                                          नारियल का पानी :

                                                                                          कच्चे नारियल का पानी ज्यादा से ज्यादा पीने से लाभ मिलता है।


                                                                                            सेब :

                                                                                            सेब का स्टयू भी कोलायटिस के घावों का उपचार करने में सहायक होता है।



                                                                                              पत्तागोभी :

                                                                                              एक गिलास छाछ में चौथाई कप पालक का रस, एक कप पत्तागोभी का रस मिलाकर रोजाना दिन में दो बार पिलाने से कोलाइटिस (वृहद अंग्त्रिक प्रदाह) ठीक हो जाती है। दो दिन उपवास रखें। तीसरे दिन एक गिलास पानी तीन चम्मच शहद, आधे नींबू का रस मिलाकर पीयें। सुबह एक कप गाजर का रस, भोजन में दही, एक कप गाजर का रस, चौथाई कप पालक का रस मिलाकर पीयें और शाम के भोजन में पपीता खायें।


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