रविवार, 15 मई 2011

रिकार्डतोड़ गरमी में कैसे रहें आइस कूल


धीरे-धीरे गर्मी का मौसम अपने चरम पर पहुंचने लगा है। प्रकृति के संतुलन के लिये गर्मी का सीजन चाहे कितना भी जरूरी हो लेकिन इतना तो तय है कि ठंड़ और बरसात की तरह गर्मी को सायद ही कोई पसंद करता हो। फिर गर्मी को सहना सभी के लिए काफी मुश्किल भी होता है। लेकिन चिंता न करें इसका भी तोड़ यानी अचूक उपाय मौजूद है। इसका उपाय है योग मुद्रा। योग मुद्रा के द्वारा हम हमारे शरीर का तापमान वातावरण के अनुसार रखकर इस चिलचिलाती गर्मी के असर को कम कर सकते हैं। रोज सुबह-सुबह 10-15 मिनिट निम्न मुद्रा को करें, दिनभर शरीर में ठंडक बनी रहेगी। इस मुद्रा को काकी मुद्रा कहते हैं।

मुद्रा करने की विधि

किसी शांत और शुद्ध वातावरण वाले स्थान पर कंबल या आसन बिछाकर पद्मासन में बैठ जाएं। फिर होठों को पतली सी नली के रूप में मोड़कर कौए की चोंच जैसा आकार बना लें। इसके बाद अपना पूरा ध्यान नाक के आगे के भाग पर लगाएं। अब मुंह से धीरे-धीरे गहरी सांस लेकर होठों को बंद कर लें और सांस को नाक से बाहर छोड़े। इस क्रिया को कम से कम 10 मिनिट तक करें।

इस क्रिया के लाभ

काकी मुद्रा करने से श्वास संबंधी कई बीमारियां दूर होती हैं और हम इन बीमारियों से हमेशा बचे रहते हैं। इससे होठों की सुंदरता बढ़ती है। इसमें मुंह से अंदर जाने वाली हवा का संपर्क मुंह की दीवारों से होता है। इस मुद्रा को करने से शरीर से बहुत से रोग दूर हो जातें है। इस मुद्रा के निरंतर अभ्यास से अम्लपित्त का बढऩा कम हो जाता है। इससे हमारा पाचन तंत्र सुचारू रूप से कार्य करता है और कई पेट संबंधी बीमारियां नहीं होती हैं।

शुक्रवार, 13 मई 2011

अनेक रोगों की असरकारक दवा इमली

पुरानी इमली बहुत ही गुणकारी होती है। सूखी पुरानी इमली संदीपक, भेदक, हल्की, हृदय के लिये हितकारी, कफ एवं वात रोगों में पथ्यकारी तथा कृमिनाशक होती है। इसके बीज संग्रहणी, अतिसार, रक्तार्श, सोमरोग, प्रदर, प्रेमह, बिच्छू आदि विषैले जीवों के काटने के दर्द में उपयोगी है। इमली को हमेशा पानी में कांच या मिट्टी के पात्र में ही भिंगोना चाहिये, तांबा, पीतल, कांसा या लोहे के पात्र में कभी नहीं। इमली के कुछ विशेष उपयोग इस प्रकार है :-
कब्ज : बहुत पुरानी इमली का शर्बत बनाकर पीने से कब्ज दूर होती है।
खाज-खुजली :- इमली के बीज नींबू के रस में पीसकर लगाने से खाज दूर होती है।
लू लगना :- गर्मी में एकदम बाहर निकलने से शरीर का जलीयांश शुष्क होकर तीव्र ज्वर हो जाता है। इसे लू लगना कहते हैं। इससे बचने के लिये लू के समय बाहर निकलने पर इमली का शर्बत पी लेने पर लू की आशंका नहीं रहती।
स्वप्नदोष : इमली के बीजों को चौगुने दूध में भिंगोकर रख दें। दो दिन बाद छिलका निकालकर पीस लें। प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन इसका करने से धातु पुष्ट होती है और स्वप्नदोष दूर होता है।
नपुंसकता : इमली के बीजों की गिरी, वटजटा, सिंघाड़ा, तालमखाना, कमरकस, कतीरागोंद, बबूल का गोंद, बीजबंद, समुद्रदोष, तुख्यमलंगा, कौंच के बीच, रीठे की गिरी, छोटी इलाइयची प्रत्येक को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लें और समभाग मिश्री की चाशनी मिलाकर जमा दें। सुबह-शाम 6-6 माशा सेवन करने से और ऊपर से गाय का दूध पीने से वीर्यहीनता, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन मिटकर नपुंसकता दूर होती है।
श्वेद प्रदर : बिना ऋतुकाल स्त्री की योनि से सफेद, लाल नीला, पीला स्राव होता रहे तो यह प्रदर रोग समझना चाहिये। अप्राकृतिक भोजन, अजीर्ण, अतिमैथुन, गर्भस्राव, क्रोध, शोक, चिंता ज्यादा चटपटे पदार्थों के सेवन आदि से यह रोग होता है। यह रोग कई प्रकार का होता है। इससे स्त्री का शरीर दिनों दिन कमजोर और रक्तहीन होता चला जाता है। इससे बचने के लिये लोहे की छोटी कड़ाही या तवे पर थोड़ी रेत डालकर चूल्हे पर चढ़ाकर खूब गर्म करें। बाद में इमली के बीज इसमें डाल दें और कड़छी चलाते रहें। अधभुने हो जाने पर गर्म दशा में ही इनके छिलके निकाल लें।
बीजों को लोहे के हमामदस्ते में अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण के वजन के बराबर मिश्री या शक्कर मिला लें। प्रात: सायं 1-2 तोले की मात्रा में गाय के दूध के साथ या पानी से कुछ दिन लगातार सेवन करने से श्वेत प्रदर का रोग समाप्त हो जाता है।
सांप का विष : इमली के बीजों को पत्थर पर थोड़े जल में घिसकर रख लें। सांप के काटे हुए स्थान पर ब्लेड से चीरकर दबाकर वहां से काला रक्त निकालकर घिसे हुए बीजों को एक-दो बीज की मात्रा में चिपका दें। ये बीज विष चूसना आरंभ कर देंगे। थोड़ी-थोड़ी देर बाद बीज बदलते रहें और बदले हुए बीजों की जमीन में गाड़ दें। बीज उस समय तक बदलते रहें, जब तक कि पूरा विष न उतर जाए।

विश्राम भी उतना ही जरूरी है जितना काम

माना कि काम हमारे लिए बहुत जरूरी है। काम नहीं करेंगे तो आजीविका भी नहीं कमा पाएंगे। मगर शरीर से काम लेने के लिए विश्राम भी अत्यन्त आवश्यक है ताकि शरीर थकावट दूर कर फिर से काम करने योग्य हो सके। शरीर से लगातार काम नहीं लिया जा सकता। प्रयोग में लाई शक्ति की क्षतिपूर्ति जरूरी है।
* जब भी विश्राम करना हो, निश्चित, एकांत ढूंढ़ें। शोर-शराबे से दूर रहें।
* विश्राम के समय शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ दें, तनाव रहित। अपनी थकान को ध्यान में रखकर विश्राम का समय तय करें।
* खाली मस्तिष्क होगा तो मानसिक थकान जल्दी दूर कर लेंगे।
* गर्मी में, दोपहर के भोजन के बाद आराम करें। थोड़ी देर सोएं। सर्दी में दोपहर के भोजन के बाद सोन नहीं चाहिए। आलस्य आ जाएगा।
* सोने का पूरा कमरा तथा बिस्तर साफ सुथरे हों। आंखों पर रोशनी तथा कानों में शोर नहीं पड़ना चाहिए। सोना समय मुंह न ढंकें।
* खाना खाने के तुरंत बाद नहीं सोना चाहिए। दो घंटे का गैप रखें।
* किसी एक करवट न सोएं। पीठ या पेट के बल भी नहीं। दांयी करवट से सोना शुरू करें।
* आराम करते समय या विश्राम करते समय अपनी समस्याओं को झटक दें। दिमाग को खाली रखें। वरना थकावट बढ़ जाएगी।
* जब कार्यों के कारण विशेष हालात हों और खूब थक जाएं तो ऐसे में देश, काल, समय, स्थान, किसी भी बात, परवाह न करें, शरीर को विश्राम दें।
* सोते समय विशेषकर ध्यान रखेंकि वस्त्र ढीले हो। तंग न हो। नहीं तो विश्राम नहीं कर पाएंगे। अच्छी नींद नहीं ले सकेंगे।
* सिंगल पलंग पर एख ही को या उबल बैंड पर दो को ही सोन चाहिए। नहीं तो बेआरामी बनी रहेगी। शरीर चुस्त नहीं रह पाएगा।

यौवन व सौन्दर्य तेजी से बढ़ता है इससे

इंसान अपने पूरे जीवन में जो भी महत्वपूर्ण या महान कार्य करता है, वह ज्यादातर युवापन में ही कर पाता है। क्योंकि उम्र की इस अवस्था में कोई भी व्यक्ति तन-मन की अधिकांश ऊर्जायों या शक्तियों से भरा हुआ होता है। इसलिये अगर कोई लंबे समय तक जवान रहने के लिये प्रयास करता है तो इसे अनुचित नहीं कहा जा सकता। जवानी के साथ ही सुन्दरता भी कुदरत की एक ऐसी ही नियामत है जो व्यक्ति को आत्मविश्वास से भरपूर रखती है। तो चलते हैं एक ऐसी बेहद आसान योगिक क्रिया की और जिससे आपकी जवानी लंबे समय तक कायम रहेगी साथ ही खूबसूरती में भी वांक्षित इजाफा होगा....

बकासन एक ऐसा आसान आसन है जिसमें हमारे शरीर की अवस्था बगुले के जैसी हो जाती है, इसी वजह से इसे बकासन कहा जाता है। इस आसन से हमारे शरीर की आंतरिक और बाह्य शक्ति में गुणोत्तर वृद्धि होती है। कुछ ही दिनों में इस आसन के लाभ नजर आने लगते हैं।

बकासन की विधि

समतल पर स्थान पर कंबल आदि बिछाकर बैठ जाएं। अब दोनों हाथों को अपने सामने भूमि पर रखें। सांस सामान्य रखें। दोनों घुटनों को हाथों की कोहनियों पर स्थिर कीजिएं। सांस अंदर की ओर लेते हुए शरीर का पूरा भार धीरे-धीरे हथेलियों पर आने दें और अपना शरीर ऊपर की ओर उठा लें। यह आसन काफी कठिन है परंतु निरंतर अभ्यास होने पर आसन की पूर्ण अवस्था प्राप्त की जा सकती है। परंतु ध्यान रखें यदि आपके हाथों में कोई परेशानी या बीमारी हो तो यह आसन ना करें।

बकासन के लाभबकासन में हमारे शरीर का पूरा भार हाथों पर होता है अत: इस आसन से हमारे हाथों के स्नायुओं को विषेश बल एवं आरोग्य मिलता है। मुख की कान्ति बढ़ती है। सुंदरता में आश्चर्यजनक बढ़ोतरी होती है। जवानी बनी रहती है। शरीर हष्ट-पुष्ट बना रहता है। इस आसन को निरंतर करने से शरीर की कई छोटी-छोटी बीमारियां हमेशा दूर रहती है।

सावधानियां

किसी अनुभवी या जानकार योग प्रशिक्षक की देख-रेख में ही इस आसन का अभ्यास करें। शरीर के साथ किसी भी प्रकार की जोर जबरदस्ती नुकसानदेह भी हो सकती है।

फुलटाइम रिचार्ज रहें इस अनूठे तरीके से!!

थकान एक ऐसी बेनाम बीमारी है जो अघोषित रूप से अपना असर दिखाती है। चिकित्सा वैज्ञानिकों ने आज बड़ी से बड़ी बीमारी को काबू में कर लिया है या तकरीबन करीब पहुंच गए हैं। लेकिन थकान या अनिच्छा एक ऐसी अदृश्य बीमारी है जिसका आज तक कोई माकूल हल नहीं मिल पाया है। यहां हम दे रहे हैं स्वचिकित्सा से जुड़ा एक ऐसा प्रयोग जो पूरी तरह से प्राकृतिक और निरापद है। इस प्रयोग का प्रभाव या असर आप सिर्फ चंद मिनिटों में ही जान सकते हैं। तो आइये जानते हैं इस आसान प्रयोग को....

डेस्क या टेबिल पर कोहनी टिकाकर बैठें, हाथों को सीने के सामने से लाते हुए हथेलियों को गालों के ऊपर से लाते हुए अपनी आंखें बंद करें। यदि आप घर में हैं तो लेटकर भी यह क्रिया दोहरा सकते हैं। ऐसा करते समय अपने घुटनों को मोड़ कर रखें। दोनों हथेलियों को तब तक आपस में रगड़ें जब तक कि वे गर्म न हो जाएं, फिर उन्हें बंद आंखों के ऊपर रखें। गहरी सांसें भरें, इस तरह कि बंद आंखों के अंधेरे को महसूस कर सकें, थकी आंखों पर हथेलियों की गर्माहट का अनुभव करें। इसे महसूस करते हुए मस्तिष्क को खाली कर लें। गहरी सांसें लें, किसी भी समस्या और तनाव का अनुभव न होने पाए। पांच-दस मिनट तक ऐसा करें। रात्रि में सोने से पहले एक बाल्टी में नमक मिला पानी लें। इस पानी में घुटनों तक पैरों को 15 मिनिटों तक डुबाकर रखें, एसा करने से पूरे दिन भर की थकान और नकारात्मक ऊर्जा जादुई रूप से गायब हो जाएगी।

10 मिनिट तक इसे सूंघते ही सारी थकान हो जाएगी छूमंतर!!

ध्वनि चिकित्सा, रंग चिकित्सा और स्पर्श चिकित्सा की तरह की एक अद्भुत चिकित्सा का नाम है गंध चिकित्सा। रंग चिकित्सा की खाशियत है कि यह पूरी तरह से विज्ञान सम्मत तो है ही लेकिन कई मामलों में दूसरी चिकित्सा पद्धतियों से भी ज्यादा असरदार एवं कारगर होती है।

हम यहां गंध चिकित्सा से जुड़े कुछ बेहद असरदार और शानदार प्रयोग दे रहे हैं जो चंद मिनिटों में ही तन-मन दोनों की थकान को मिटाकर आपको चुस्ती-फुर्ती से लबालब भर देगी...

दोपहर का समय वह होता है जब आपका ऊर्जा स्तर गिरने लगता है और खुद को दोबारा से ऊर्जावान बनाना जरूरी होता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना हैं कि दोपहर के समय आप दस मिनट अपनी सभी अवांछित फाइल्स, कार्यक्रम, फोन और ईमेल निपटाने के बारे में सोचें। एक बार जरूरी कार्य निपट जाएं तो थोड़ा सुस्ता लें। कोई सुगंधित तेल लेकर माथे पर लगा लें, इससे आपको राहत महसूस होगी।

अनूठा प्रयोग

यूकेलिप्टस, लेमनग्रास या रोजमेरी के सुगंधित तेल की चार बूंद किसी छोटी सी बोतल में लें। इसमें आधा पानी भरकर आसपास इसका छिड़काव करें। घड़ी की दिशा के अनुसार अपने चारों ओर स्प्रे करें, कोने में, डेस्क या कंप्यूटर के आसपास भी स्प्रे कर सकते हैं।

बुधवार, 11 मई 2011

दन्तशूल(toothache) के घरेलू उपचार


दांत,मसूढों और जबडों में होने वाली पीडा को दंतशूल से परिभाषित किया जाता है। हममें से कई लोगों को ऐसी पीडा अकस्मात हो जाया करती है। दांत में कभी सामान्य तो कभी असहनीय दर्द उठता है। रोगी को चेन नहीं पडता। मसूडों में सूजन आ जाती है। दांतों में सूक्छम जीवाणुओं का संक्रमण हो जाने से स्थिति और बिगड जाती है। मसूढों में घाव बन जाते हैं जो अत्यंत कष्टदायी होते हैं।दांत में सडने की प्रक्रिया शुरु हो जाती है और उनमें केविटी बनने लगती है।जब सडन की वजह से दांत की नाडियां प्रभावित हो जाती हैं तो पीडा अत्यधिक बढ जाती है।
प्राकृतिक उपचार दंत पीडा में लाभकारी होते हैं। सदियों से हमारे बडे-बूढे दांत के दर्द में घरेलू पदार्थों का उपयोग करते आये हैं। यहां हम ऐसे ही प्राकृतिक उपचारों की चर्चा कर रहे हैं।

१) बाय बिडंग १० ग्राम,सफ़ेद फ़िटकरी १० ग्राम लेकर तीन लिटर जल में उबालकर जब मिश्रण एक लिटर रह जाए तो आंच से उतारकर ठंडा करके एक बोत्तल में भर लें। दवा तैयार है। इस क्वाथ से सुबह -शाम कुल्ले करते रहने से दांत की पीडा दूर होती है और दांत भी मजबूत बनते हैं।

२) लहसुन में जीवाणुनाशक तत्व होते हैं। लहसुन की एक कली थोडे से सैंधा नमक के साथ पीसें फ़िर इसे दुखने वाले दांत पर रख कर दबाएं। तत्काल लाभ होता है। प्रतिदिन एक लहसुन कली चबाकर खाने से दांत की तकलीफ़ से छुटकारा मिलता है।

३) हींग दंतशूल में गुणकारी है। दांत की गुहा(केविटी) में थोडी सी हींग भरदें। कष्ट में राहत मिलेगी।

४) तंबाखू और नमक महीन पीसलें। इस टूथ पावडर से रोज दंतमंजन करने से दंतशूल से मुक्ति मिल जाती है।

५) बर्फ़ के प्रयोग से कई लोगों को दांत के दर्द में फ़ायदा होता है। बर्फ़ का टुकडा दुखने वाले दांत के ऊपर या पास में रखें। बर्फ़ उस जगह को सुन्न करके लाभ पहुंचाता है।

६) कुछ रोगी गरम सेक से लाभान्वित होते हैं। गरम पानी की ्थैली से सेक करना प्रयोजनीय है।

७) प्याज कीटाणुनाशक है। प्याज को कूटकर लुग्दी दांत पर रखना हितकर उपचार है। एक छोटा प्याज नित्य भली प्रकार चबाकर खाने की सलाह दी जाती है। इससे दांत में निवास करने वाले जीवाणु नष्ट होंगे।

८) लौंग के तैल का फ़ाया दांत की केविटी में रखने से तुरंत फ़ायदा होगा। दांत के दर्द के रोगी को दिन में ३-४ बार एक लौंग मुंह में रखकर चूसने की सलाह दी जाती है।

९) नमक मिले गरम पानी के कुल्ले करने से दंतशूल नियंत्रित होता है। करीब ३०० मिलि पानी मे एक बडा चम्मच नमक डालकर तैयार करें।दिन में तीन बार कुल्ले करना उचित है।

१०) पुदिने की सूखी पत्तियां पीडा वाले दांत के चारों ओर रखें। १०-१५ मिनिट की अवधि तक रखें। ऐसा दिन में १० बार करने से लाभ मिलेगा।

११) दो ग्राम हींग नींबू के रस में पीसकर पेस्ट जैसा बनाले। इस पेस्ट से दंत मंजन करते रहने से दंतशूल का निवारण होता है।

१२। मेरा अनुभव है कि विटामिन सी ५०० एम.जी. दिन में दो बार और केल्सियम ५००एम.जी दिन में एक बार लेते रहने से दांत के कई रोग नियंत्रित होंगे और दांत भी मजबूत बनेंगे।

१३) मुख्य बात ये है कि सुबह-शाम दांतों की स्वच्छता करते रहें। दांतों के बीच की ्जगह में अन्न कण फ़ंसे रह जाते हैं और उनमें जीवाणु पैदा होकर दंत विकार उत्पन्न करते हैं।

१४) शकर का उपयोग हानिकारक है। इससे दांतो में जीवाणु पैदा होते हैं। मीठी वसुएं हानिकारक हैं। लेकिन कडवे,ख्ट्टे,कसेले स्वाद के पदार्थ दांतों के लिये हितकर होते है। नींबू,आंवला,टमाटर ,नारंगी का नियमित उपयोग लाभकारी है। इन फ़लों मे जीवाणुनाशक तत्व होते हैं। मसूढों से अत्यधिक मात्रा में खून जाता हो तो नींबू का ताजा रस पीना लाभकारी है।

१५) हरी सब्जियां,रसदार फ़ल भोजन में प्रचुरता से शामिल करें।

१६) दांतों की केविटी में दंत चिकित्सक केमिकल मसाला भरकर इलाज करते हैं। सभी प्रकार के जतन करने पर भी दांत की पीडा शांत न हो तो दांत उखडवाना ही आखिरी उपाय है।

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