बुधवार, 17 सितंबर 2014

खुजली न सताए तो अच्छा

खुजली एक संक्रामक बीमारी है, जो एक आदमी से दूसरे आदमी में फैलती है। खुजली की वजह है ‘इच माइट’ यानी कुटकी जो नंगी आंखों से मुश्किल से दिखता है। इसकी खोज 1687 में हुई थी। इसे अंग्रेजी भाषा में आर्थोपोड कहते हैं। खुजली का यह छोटा जीव 0.4 मिलीमीटर आकार का होता है। इसका आकार कछुए जैसा होता है। इसका शरीर छोटे-छोटे ब्रश जैसे बालों से ढंका होता है। इसके दो जोड़े अगले पैर और दो जोड़े पिछले पैर होते हैं। अगले पैरों में चूसक होते हैं जो लंबी नलिकाकार रचनाएं होती हैं। मादा कुटकी चमड़ी में घुसकर अंडे देती है।
यह बीमारी सामान्य तौर पर प्रभावित आदमी के छूने या नजदीक रहने से फैलती है। इसी तरह प्रभावित बीमार आदमी के बिस्तर में सोने या इसके कपड़ों के इस्तेमाल से भी यह बीमारी होती है। बच्चों में यह बीमारी खेलने के दौरान फैलती है। कुटकी द्वारा पैदा हुई खुजली की बीमारी 63 फीसदी मामलों में हाथों से कलाइयों में ज्यादा होती है। उंगलियों के बीच में भी संक्रमण होता है। 11 फीसदी मामलों में यह बीमारी कुहनियों, नितंबों पेट के निचले भाग व व पैरों में होती है। छोटे बच्चों की हथेलियां भी बीमारी से प्रभावित होती हैं। औरतों की छाती व मर्दों के अंग भी खुजली से ज्यादा प्रभावित होते हैं।
बीमारी की पहचान : खुजली की बीमारी के प्रमुख लक्षणों पर इसकी पहचान की जाती है। जैसे : मरीज खुजली की शिकायत करता है जो रात में ज्यादा होती है।
चमड़ी की जांच करने पर प्रभावित जगह पर बहुत छोटे-छोटे दाने दिखाई देते हैं।
कहीं-कहीं संक्रमण की वजह से दाने बड़े होकर पक जाते हैं। उनसे मवाद भी निकलता है।
अक्सर घर के दूसरे सदस्यों में भी इस तरह की शिकायतें और लक्षण मिलते हैं।
कुटकी का माइक्रोस्कोप द्वारा जांच करके भी इलाज किया जाता है।
इसका इलाज :
सबसे पहले तो पूरे परिवार के ओढ़ने-बिछाने और इस्तेमाल के कपड़ों को गरम पानी और सोडा से धोकर धूप में सुखाना चाहिए।
परिवार के सभी सदस्यों को खूब साबुन लगाकर रगड़कर गरम पानी से नहाना चाहिए। उसके बाद 25 फीसदी बेंजिल बेंजोएट का घोल आंखों को बचाकर पूरे बदन पर ब्रश की मदद से लगाना चाहिए। इसे 12 घंटे बाद दोबारा लगाना चाहिए और 12 घंटे बाद नहाना चाहिए।
यह ध्यान रखें कि बेंजिल बेंजोएट का घोल हफ्ते में दो बार से ज्यादा न लगाया जाए वरना चमड़ी की और दिक्कतें पैदा हो सकती हैं।
लिंडेन को नारियल के तेल में मिलाकर या फिर किसी भी वनस्पति तेल में मिलाकर प्रभावित भाग पर लगाते हैं। इसे दो-तीन बाद दोहराते हैं।
5 फीसदी टेटमोसाल घोल को लगाने से भी कुटकी खत्म हो जाती
है।
सल्फर का मरहम 2.5 से 20 फीसदी को रोजाना चार दिन तक सारे बदन पर लगाने से भी खुजली के मरीज को फायदा होता है। यह एक सस्ता इलाज है।
इसके अलावा डाक्टर खुजली कम करने के लिए भी दवा देते हैं लेकिन जब तक चमड़ी से कुटकी पूरी तरह अलग नहीं होती, तब तक मरीज को पूरी तरह राहत नहीं मिलती।

बच सकते हैं कमर दर्द से

कमर दर्द क्यों होता है :
* अक्सर शरीर भारी होने पर कमर दर्द हो जाता है।
* जल्दी-जल्दी सीढ़ी चढ़ना-उतरना भी कमर दर्द को बढ़ावा देता है।
* भारी वजन उठाने से भी कमर में दर्द हो जाता है।
* अधिक देर तक खड़े रह कर काम करने से भी कमर दर्द होता है।
* झुक कर काम करने से मांसपेशियों पर अधिक दबाव पड़ता है जिससे कमर दर्द की परेशानी का सामना करना पड़ता है।
* रीढ़ की हड्डी में सूजन होने पर भी कमर दर्द होता है।
* सोने और खड़े होने का तरीका गलत होने से भी कमर दर्द में दर्द होता है।
* कामकाजी लोगों को कुर्सी यदि आरामदायक नहीं है तो भी कमर दर्द हो जाता है।
बचाव
* सीढ़ियों पर आराम से उतरें चढ़ें।
* अकेले अधिक वजन न उठायें, किसी दूसरे की मदद लें।
* यदि आप का शरीर भारी है तो अपना वजन कम करने का प्रयास करें।
* पतले रूई के गद्दे पर या मोटी दरी बिछा कर सख्त सपाट जगह पर सोयें।
* लगातार खड़े होकर काम न करें। बीच-बीच में कुछ टहलें या बैठकर काम करें।
* काम करने की कुर्सी-मेज आरामदायक होने चाहिये। कुर्सी और मेज की ऊंचाई में अंतर उचित होना चाहिये।
* कुर्सी पर बैठते समय कुर्सी का पूरा सहारा लेकर बैठे।
* पैरों के नीचे छोटा स्टूल रखें। पैर अधिक समय तक लटकाकर न रखें।
* शीत ऋतु में कमर को उचित गर्म वस्त्रों से ढक कर रखें।
* सुबह सैर पर जरूर जायें और हल्के व्यायाम करें जिनसे कमर दर्द को आराम मिलेगा।

स्वस्थ जीवन के दस नियम

हर आदमी स्वस्थ और सुखी रहना चाहता है लेकिन स्वास्थ्य संबंधी सही जानकारी के अभाव में वह दीन-हीन बना रहता है। आइये हम आपको स्वस्थ रहने के कुछ आसान नियम बतायें :-
- प्रात: शीघ्र उठें और नींबू पानी अथवा तांबे के बर्तन में रखा बासी पानी पर्याप्त मात्रा में पियें। इससे आपका पेट साफ रहेगा और जी हल्का लगेगा।
- प्रात:काल और सायंकाल हल्का व्यायाम अथवा टहलना अत्यंत लाभदायक होता है। आप जैसे भी हों- बाल, वृध्द या युवा, बीमार अथवा स्वस्थ, गरीब या अमीर, बेकार अथवा अत्यं व्यस्त, आपको यह नियम अवश्य बनाना चाहिये।
- स्ान और प्रार्थना भी नित्य नियम से करनी चाहिये। शरीर की शुध्दि के लिये स्ान जितना जरूरी है उतनी ही प्रार्थना भी लेकिन दोनों ही क्रियाएं औपचारिकता की तरह नहीं होनी चाहिये। जो भी करें, पूरे मन से करें।
- नाश्ता और भोजन में मधुर, रसदार तथा पौष्टिक आहार लेना चाहिये। सड़े गले, जले-भुने, बासी और सस्ते फास्टफूड से बचना चाहिये। उत्तम भोजन घर का पकाया गया सात्विक भोजन ही हो सकता है।
- परिश्रम से जी न चुरायें। जितना संभव हो, शारीरिक और मानसिक श्रम करें तथा पूरी तन्मयता से करें, प्रसन्नतापूर्वक करें।
- नींद और विश्राम में कटौती न करें। भोजन और श्रम की तरह नींद भी आवश्यक है। यह टानिक की तरह शरीर तथा मन को ताजगी प्रदान करती है।
- विहार में संतुलन रखें। ऋतु,काल और शक्ति के अनुसार काम सेवन (सहवास) करें, न तो अत्यधिक और न ही अति अल्प। ‘काम’ जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। संतुलित काम सेवन स्त्री पुरुष दोनों के लिये फायदेमंद हैं।
- सप्ताह में एक दिन हर कार्यालय में अवकाश रहता है। ठीक इसी प्रकार पेट को भी विश्राम देना चाहिये। व्रत के नाम पर शरीर को मारना नहीं चाहिये बल्कि नींबू पानी, छाछ या फलों का रस पीकर पेट को तनिक विश्राम देना चाहिये। ताकि आगे के दिनों के लिये वह शक्ति संचय कर सके।
- दिनभर में एक समय ऐसा निकालना चाहिये जब आप एकांत में आत्मनिरीक्षण कर सकें। इससे आपको अच्छा बनने में मदद मिलेगी।
- आत्मविश्वास, ईश्वर विश्वास और सदैव सक्रियता तथा जागृति आपके सुखी स्वस्थ जीवन के लिये संजीवनी का कार्य करती हैं। आप जिस तरह की नौकरी या व्यापार करते हैं उसी को ईश्वर की सेवा मानें।
उपरोक्त प्रकार के नियम अपनाकर आप स्वस्थ सानंद जीवन बिता सकते हैं।

सेहत के अनमोल नुस्खे


विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार अविकसित तथा विकासशील देशों में हर वर्ष पांच लाख स्त्रियों की मौत होती है। इनमें एक बड़ी संख्या को उन मामलों में सतर्कता बरत कर बचाया जा सकता है। मृत्यु का कारण बनने वाले रोगों से सतर्कता के साथ ही निबटा जा सकता है। निर्धन देशों में जहां अज्ञानता का बोलबाला है, प्रति एक लाख पांच सौ स्त्रियां गर्भावस्था या प्रसवकाल में मृत्यु को प्राप्त होती हैं जबकि अमेरिका तथा यूरोप के विकसित देशों में यह दर केवल बीस स्त्री प्रति एक लाख है। गर्भकाल में स्त्रियों की मृत्यु का एक बड़ा कारण असंतुलित भोजन तथा गन्दगी है। कुछ नियमों का पालन करते हुए हम अपनी सेहत को उत्तम बना सकते हैं।
* पेट के रोगियों को हरी पत्तेदार सब्जियां अधिक मात्रा में खानी चाहिए। पालक, लालसाग, मेथी का साग, बथुआ का साग अपने भोजन में नियमित लेते रहना चाहिए।
* अपने भोजन में यदि आप पौष्टिक तत्वों को कायम रखना चाहती हैं तो सब्जी में हमेशा तब नमक डालिए जब उसके पकने में सिर्फ थोड़ी-सी कसर बाकी हो।
* सलाद के साथ नमक का इस्तेमाल कतई मत करिए, क्योंकि कच्चे सलादों में नमक की मात्रा प्राकृतिक रूप से ही रहती है। सलाद के साथ अलग से नमक खाने पर मूत्राशय संबंधी अनेकानेक बीमारियां हो जाती हैं।
* यौन शक्ति को बढ़ाने के लिए शुध्द शहद के साथ गर्म दूध पीना अत्यधिक लाभदायक होता है। एक गिलास भैंस के दूध के साथ दो चम्मच शहद डालकर पीते रहने से वृध्दावस्था तक यौन-शक्ति बरकरार रहती है।
* आप कोई एन्टीबायोटिक, नींद लेने वाली गोलियां, दौरे की दवा या टीबी की दवाएं ले रही हों तो उस अविध में सिर्फ गर्भ निरोधक गोलियां ही लेना काफी नहीं होता बल्कि उसके साथ-साथ गर्भ निरोध का दूसरा उपाय भी अपनाना चाहिए।
* बिना चिकित्सक की सलाह के एन्टीबायोटिक दवाएं, गर्भ निरोधक दवाएं, गर्भपात की दवाएं या सेक्स से संबंधित दवाएं कभी न लें अन्यथा स्वास्थ्य के साथ-साथ सुन्दरता पर भी ग्रहण लग सकता है।
* एक नयी धारणा यहह बन रही है कि चेहरे की मालिश तथा ‘फेशियल’ से चेहरे पर बुढ़ापा नहीं उभर पाता किन्तु अमेरिकी त्वचा विशेषज्ञ डा. लेलीमेण्ड तथा टोण्डो एलने का कहना है कि उपरोक्त धारणा का अभी तक कोई प्रमाण नहीं मिला है। यह लाभ केवल मनोवैज्ञानिक कारणों से ही होता है। इससे होता सिर्फ इतना है कि ‘फेशियल’ तथा मालिश से रोमछिद्र साफ हो जाते हैं जिससे रक्त संचार में अस्थायी वृध्दि हो जाती है और व्यक्ति कुछ अवधि के लिए सुखद अनुभव करता है।
* आयुर्वेद के अनुसार भोजन के तुरन्त बाद मट्ठा (तक्र) पीना, सौ कदम चलना (टहलना) आदि ठीक होता है परन्तु भोजन के बाद अधिक बोलना, अधिक भोजन के बाद अधिक घूमना या अधिक गरम पदार्थों का सेवन करना हानिकारक होता है।
* सोयाबीन के अधिक सेवन से स्तन कैंसर नहीं होता अतः अपने दैनिक आहार में सोयाबीन के बने पदार्थों का अधिक सेवन करना चाहिए।
* नियमित रूप से जुकाम की शिकायत रहने पर दूब की कोपलों को तोड़कर उसे चटनी के समान पीस लीजिए और शहद के साथ प्रतिदिन रात्रि में लीजिए। जुकाम एकदम गायब हो जायेगी।
* पेट की किसी भी तरह की शिकायत होने पर गाढ़ा दूध का दलिया, कच्चा नारियल, पेठा व रसगुल्ला खाइए। पेट की बीमारी आपके कब्जे में होगी।
* स्तन पर अनचाहे बालों के होने को गम्भीरता से लीजिए। उन्हें काटिए नहीं बल्कि मूंगदाल के उबटन से हल्का-हल्का मसाज करते हुए नियमित प्रयोग से हटा लें। यह ग्रंथी रोग के कारणों से होता है।
* कच्चे नारियल का पानी दिन भर में 4-5 बार 50-50 ग्राम की मात्रा में पीने से शरीर पर दुबलापन दूर होता है।
* बेर के पत्तों को पीसकर पानी में मथने से जो झाग उठता है, उस झाग को सिर में लगाने से बाल झड़ने बन्द हो जाते हैं।
* अदरक के एक किलो रस में 500 ग्राम तिल का तेल मिलाकर गर्म करिए और जब केवल तेल बचा रहे, उतार कर छान कर बोतल में रखकर बन्द कर रख दीजिए। इस तेल से उस अंग पर मालिश कीजिए जहां कहीं भी दर्द होता है।

पेट के रोगों में अचूक लाभ देता है गूलर

मोरासी परिवारी का सदस्य गूलर लंबी आयु वाला वृक्ष है। इसका वनस्पतिक नाम फीकुस ग्लोमेराता रौक्सबुर्ग है। यह सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है। यह नदी-नालों के किनारे एवं दलदली स्थानों पर उगता है। उत्तर प्रदेश के मैदानों में यह अपने आप ही उग आता है।
इसके भालाकार पत्ते 10 से सत्रह सेमी लंबे होते हैं जो जनवरी से अप्रैल तक निकलते हैं। इसकी छाल का रंग लाल-घूसर होता है। फल गोल, गुच्छों में लगते हैं। फल मार्च से जून तक आते हैं। कच्चा फल छोटा हरा होता है पकने पर फल मीठे, मुलायम तथा छोटे-छोटे दानों से युक्त होता है। इसका फल देखने में अंजीर के फल जैसा लगता है। इसके तने से क्षीर निकलता है।
आयुर्वेदिक चिकित्सों के अनुसार गूलर का कच्चा फल कसैला एवं दाहनाशक है। पका हुआ गूलर रूचिकारक, मीठा, शीतल, पित्तशामक, तृषाशामक, श्रमहर, कब्ज मिटाने वाला तथा पौष्टिक है। इसकी जड़ में रक्तस्राव रोकने तथा जलन शांत करने का गुण है। गूलर के कच्चे फलों की सब्जी बनाई जाती है तथा पके फल खाए जाते है। इसकी छाल का चूर्ण बनाकर या अन्य प्रकार से उपयोग किया जाता है।
गूलर के नियमित सेवन से शरीर में पित्त एवं कफ का संतुलन बना रहता है। इसलिए पित्त एवं कफ विकार नहीं होते। साथ ही इससे उदरस्थ अग्नि एवं दाह भी शांत होते हैं। पित्त रोगों में इसके पत्तों के चूर्ण का शहद के साथ सेवन भी फायदेमंद होता है।
गूलर की छाल ग्राही है, रक्तस्राव को बंद करती है। साथ ही यह मधुमेह में भी लाभप्रद है। गूलर के कोमल-ताजा पत्तों का रस शहद में मिलाकर पीने से भी मधुमेह में राहत मिलती है। इससे पेशाब में शर्करा की मात्रा भी कम हो जाती है।
गूलर के तने को दूध बवासीर एवं दस्तों के लिए श्रेष्ठ दवा है। खूनी बवासीर के रोगी को गूलर के ताजा पत्तों का रस पिलाना चाहिए। इसके नियमित सेवन से त्वचा का रंग भी निखरने लगता है। हाथ-पैरों की त्वचा फटने या बिवाई फटने पर गूलर के तने के दूध का लेप करने से आराम मिलता है, पीड़ा से छुटकारा मिलता है। गूलर से स्त्रियों की मासिक धर्म संबंधी अनियमितताएं भी दूर होती हैं।
स्त्रियों में मासिक धर्म के दौरान अधिक रक्तस्राव होने पर इसकी छाल के काढ़े का सेवन करना चाहिए। इससे अत्याधिक बहाव रुक जाता है। ऐसा होने पर गूलर के पके हुए फलों के रस में खांड या शहद मिलाकर पीना भी लाभदायक होता है। विभिन्न योनि विकारों में भी गूलर काफी फायदेमंद होता है। योनि विकारों में योनि प्रक्षालन के लिए गूलर की छाल के काढ़े का प्रयोग करना बहुत फायदेमंद होता है।
मुंह के छाले हों तो गूलर के पत्तों या छाल का काढ़ा मुंह में भरकर कुछ देर रखना चाहिए। इससे फायदा होता है। इससे दांत हिलने तथा मसूढ़ों से खून आने जैसी व्याधियों का निदान भी हो जाता है। यह क्रिया लगभग दो सप्ताह तक प्रतिदिन नियमित रूप से करें।
आग से या अन्य किसी प्रकार से जल जाने पर प्रभावित स्थान पर गूलर की छाल को लेप करने से जलन शांत हो जाती है। इससे खून का बहना भी बंद हो जाता है। पके हुए गूलर के शरबत में शक्कर, खांड या शहद मिलाकर सेवन करने से गर्मियों में पैदा होने वाली जलन तथा तृषा शांत होती है। नेत्र विकारों जैसे आंखें लाल होना, आंखों में पानी आना, जलन होना आदि के उपचार में भी गूलर उपयोगी है।
इसके लिए गूलर के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसे साफ और महीन कपड़े से छान लें। ठंडा होने पर इसकी दो-दो बूंद दिन में तीन बार आंखों में डालें। इससे नेत्र ज्योति भी बढ़ती है। नकसीर पूहृटती हो तो ताजा एवं पके हुए गूलर के लगभग 25 मिली लीटर रस में गुड़ या शहद मिलाकर सेवन करने या नकसीर पूहृटना बंद हो जाती है।

सेहत : सिरदर्द एक नुस्खे अनेक

सिरदर्द से हर व्यक्ति छुटकारा पाना चाहता है, खासकर इसीलिए भी क्योंकि यह रोजमर्रा की गतिविधियों में खासा बाधक बन जाता है। अब सिरदर्द दूर करने के लिए लोग नाना प्रकार के नुस्खे अपनाते हैं। इनमें से कुछेक को हम यहाँ दर्ज कर रहे हैं। देखिए आपको इनमें से कौन सा नुस्ख फायदा पहुँचाता है? सूखे अदरक पाउडर को पानी में मिलाकर लेप तैयार कर लीजिए और उसे अपने माथे पर लगा लें। इससे थोड़ी सी जलन होगी, लेकिन दर्द से आराम मिल जाएगा। कुछ लोग लेप को कानों के पीछे भी लगाते हैं।
साफ और मुलायम कपड़ा ले लें और उसे सफेद सिरके में डुबो लें। इस कपड़े को सिर पर लपेट लें और आराम करें जितनी बार जरुरत हो दोहराएं। बार-बार सिर में होने वाले दर्द को दूर करने के लिए डॉक्टरों का सुझाव है कि बर्फ का प्रयोग करें। एक पतले प्लास्टिक बैग में बर्फ भर लें और उसे अपने माथे पर सिर पर रखें। दक्षिण भारत में सिरदर्द दूर करने के लिए प्याज को कूटकर लेप बना लिया जाता है और फिर उसे माथे पर लगा लिया जाता है।
अजवाइन के बीजों को रोस्ट करके सुखा लें और उन्हें एक मलमल के कपड़े में बांधकर छोटी सी पोटली बना लें। इसे बार-बार सूंघते रहें, जब तक सिरदर्द दूर न हो जाए। खाली पेट पर रोजाना सुबह एक सेब खाने की आदत डाल लें। ऐसा करने से सिरदर्द की समस्या नहीं रहेगी। पिपरमैंट तेल सूंघने या पेपरमेंटयुक्त चाय पीने से भी सिरदर्द दूर हो जाता है। धूप में काम करने से जो सिरदर्द होता है, वह मेहंदी के पूहृलों से दूर हो जाता है।
मेंहंदी के पूहृलों को सिरके में पीस लें और उसके लेप को माथे पर लगाएं। ताजे चंदन के लेप में अगर तुलसी के पत्ते पीसकर मिला जाएं और इसे माथे पर लगाया जाए, तो सिरदर्द दूर हो जाता है। 10-15 तुलसी के पत्ते, लहसुन की 4 फांक और एक चम्मच सूखे हुए अदरक के पाउडर को मिलाकर पीस लें। इससे जो लैप तैयार होगा, उसे माथे पर लगा लें। 2 लौंग, 2 सेटीमीटर लंबी दालचीनी और एक बादाम लें। इसका लेप बना लें और माथे पर लगाएं। आधा चम्मच लौंग के पाउडर को एक चम्मच दालचीनी के तेल में मिलाकर उसे प्रभावित क्षेत्र पर लगाएं। सिर की मालिश आयुर्वेद का प्राचीन फार्मूला है।
किसी अनुभवी व्यक्ति से सिर की मालिश कराएं। मालिश बादाम या सरसों के तेल से या घीस से कराएं। ध्यान लगाने से तुरंत राहत तो नहीं मिलेगी, लेकिन रोजाना ध्यान लगाने से मन रिलैक्स होगा। जिससे सिरदर्द की तीव्रता कम हो जाएगी। यह साधारण तरीका है, लेकिन इस पर महारत हासिल करना कठिन है, क्योंकि इंद्रियों को पूरी तरह से नियंत्रित करने का सवाल है। इसमें दिमाग पर इतना काबू करना होता है कि बेकार के विचारों को आने न दिया जाए और अंदरुनी शांति व खामोशी पर फोकस किया जाए। ऐसा करना मुश्किल होता है, लेकिन नामुमकिन नहीं।
एरोथेरेपी विशेषज्ञों का कहना है कि अलग-अलग किस्म के सिरदर्दों के लिए अलग-अलग किस्म से होने वाला सिरदर्द गुलाब तेल से दुरुस्त हो जाता है। बिना किसी विशेष कारण के जो दर्द होता है, उसमें लेवेंडर तेल काम करता है। इन तेलों को लगाया नहीं सूंघा जाता है। सेक्सुअल गतिविधि से एंडोरपिंहृस जारी होते हैं जोेकि प्राकृतिक दर्द निवारक होते हैं, इसीलिए बहुत कम लोग सेक्स के जरिए भी सिरदर्द दूर करते हैं। अगर इन नुस्खों के बावजूद भी सिरदर्द दूर न हो तो डॉक्टर से संपर्क करें, शर्माएं नहीं। आखिर यह आपकी सेहत का मामला है।

क्या फट रही है पैरों की एड़ियां, आजमाएं नुस्खा

शरीर में उष्णता या खुश्की बढ़ जाने, नंगे पैर चलने-फिरने, खून की कमी, तेज ठंड के प्रभाव से तथा धूल-मिट्टी से पैर की एड़ियां फट जाती हैं। यदि इनकी देखभाल न की जाए तो ये ज्यादा फट जाती हैं और इनसे खून आने लगता है, ये बहुत दर्द करती हैं।

 

अमचूर का तेल 50 ग्राम, मोम 20 ग्राम, सत्यानाशी के बीजों का पावडर 10 ग्राम और शुद्ध घी 25 ग्राम। सबको मिलाकर एक जान कर लें और शीशी में भर लें। सोते समय पैरों को धोकर साफ कर लें और पोंछकर यह दवा बिवाई में भर दें और ऊपर से मोजे पहनकर सो जाएं । कुछ दिनों में बिवाई दूर हो जाएगी, तलवों की त्वचा साफ, चिकनी व साफ हो जाएगी। त्रिफला चूर्ण को खाने के तेल में तलकर मल्हम जैसा गाढ़ा कर लें। इसे सोते समय बिवाइयों में लगाने से थोड़े ही दिनों में बिवाइयां दूर हो जाती हैं। 

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