रविवार, 7 अगस्त 2011

जानिए संतान और शक्ति पाने के आयुर्वेदिक नुस्खे


निसंतान होना हमारे समाज में आज भी अभिशाप माना जाता रहा है। नपुंसकता के कारण निःसंतान होना भी एक सामान्य कारण होता है। कुछ एलोपैथिक दवाएं भी नपुंसकता उत्पन्न कर संतान उत्पन्न करने में व्याधा उत्पन्न कर सकती हैं।

इनमें उच्चरक्तचाप की  औषधियां एवं मधुमेह जैसे रोग शामिल हैं। कई बार नपुंसकता का कारण शारीरिक न होकर मानसिक होता है, ऐसे में केवल चिकित्सकीय काऊंसीलिंग ही काफी होती है। ऐसे ही कुछ आयुर्वेदिक नुस्खे स्त्री एवं पुरुषों में नपुंसकताजन्य निःसंतानता के साथ ही शुक्राणुजन्य समस्याओं को दूर करने में कारगर सिद्ध होती हैं, जो निम्न हैं :
- श्वेत कंटकारी के पंचांग को सुखाकर पाउडर बना लें तथा स्त्री में मासिक धर्म के ५ वें दिन से लगातार तीन दिन प्रातः एक बार दूध से दें एवं पुरुष को : अश्वगंधा  10 ग्राम, शतावरी 10 ग्राम, विधारा 10 ग्राम, तालमखाना 5 ग्राम, तालमिश्री 5 ग्राम सब मिलकर 2 चम्मच दूध के साथ प्रातः सायं लेने पर निश्चित लाभ होता है।
 - स्त्री में "फलघृत" नामक आयुर्वेदिक औषधि भी इनफरटीलीटी को दूर करता है।
 - पलाश के पेड़ की एक लम्बी जड़ में लगभग 250 एम.एल. की एक शीशी लगाकर, इसे जमीन में दबा दें, एक सप्ताह बाद इसे निकाल लें, अब इसमें इकठ्ठा होने वाला निर्यास द्रव प्रातः पुरुष को एक चम्मच शहद से दें। यह शुक्रानुजनित कमजोरी (ओलिगोस्पर्मीया)  को दूर करने में मददगार होता है। 
- अश्वगंधा 1.5 ग्राम. शतावरी 1.5 ग्राम, सफ़ेद मुसली 1.5 ग्राम एवं कौंच बीज चूर्ण को 75 मिलीग्राम की मात्रा में गाय के दूध से सेवन करने से भी नपुंसकता दूर होकर कामशक्ति बढ़ जाती है। 
- शिलाजीत का 250 मिलीग्राम से 500 मिलीग्राम की मात्रा में दूध के साथ नियमित सेवन भी मधुमेह आदि के कारण आयी नपुंसकता को दूर करता है। अतः नपुंसकता को दूर करने के लिए उचित चिकित्सकीय परामर्श एवं समय पर कुछ आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग कर इस बीमारी से निजात पाया जा सकता है।

चोट-मोच, दर्द या सूजन, देहाती नुस्खा कर देगा सबको आउट!


कैंसर की रोकथाम, दूषित खून की सफाई, डिमेंशिया से छुटकारा, गठिया, हानिकारक बेक्टीरिया और वायरस का सफाया, रोगों से लडऩे की क्षमता में इजाफा ....जैसे कई नायाब गुणों के साथ ही हल्दी में एक अन्य विशेष खूबी भी पाई जाती है। यदि कभी किसी को कोई चोट-मोच या जर्क लग जाए तथा दर्द, जकडऩ और सूजन की तकलीफ हो रही हो तो ऐसे में हल्दी का यह प्रयोग अवश्य करना चाहिये।




प्रयोग: चार चम्मच संरसों के तेल में 1चम्मच पिसी हल्दी लेकर धीमी आंच पर पका लें, इसमें 4-5 कलियां लहसुन की भी डाल दी जाएं तो लाभ और भी जल्दी होता है। थोड़ा ठंडा या गुनगना रहने पर किसी साफ कॉटन के साथ इस तेल में पकी हुई हल्दी को चोट के स्थान पर लगाकर बांध लें। कुछ ही घंटों में चोट और सूजन में काफी लाभ होगा।




दूध के साथ प्रयोग: दो-तीन दिन लगातार दूध मे 1-चम्मच हल्दी पावडर डालकर पीने से भी चोट-मोच, दर्द और सूजन में तत्काल राहत मिलती है।

शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

कब्ज़, ब्लड प्रेशर, कैंसर...सबको उखाड़ फेंकेगा यह अचूक फंडा


चुकन्दर को अपनी डेली डाइट में शामिल करना तंदरुस्ती के लिये किसी वरदान से कम नहीं है। इसका नियमित सेवन सम्पूर्ण शरीर को निरोग रखने में बेहद सहायक है। हालांकि हमारे दैनिक आहार में चुकन्दर को अभी भी उचित स्थान प्राप्त नहीं है। लेकिन इसे नियमित खाने से अन्य रोगों में लाभ होता है।

चुकंदर अपने अद्भुत सेहतमंद गुणों की बदोलत तो लाजवाब है ही लेकिन उससे भी बढ़कर इसकी खाशियत यह है कि यह कई बेहद गंभीर रोगों को नष्ट करने में भी बेहद कारगर है। आइये जाने की कीमती खूबियों का खजाना यह चुकन्दर किन-किन बीमारियों को मिटाता है...

1.एसीडोसिस: चुकन्दर में क्षारीयता की विशेष खूबी पाई जाती है जो शरीर में एसीडोसिस को रोकने में बेहद सहायक होता है। 


2.खून की कमी(एनीमिया): चुकन्दर से प्राप्त उच्च गुणवत्ता का लोह तत्व रक्त में हीमोग्लोबीन का निर्माण व लाल रक्तकणों की सक्रियता के लिए बेहद प्रभावशाली है।

3.ब्लड प्रेशर: विशेषज्ञों का मानना है कि चुकन्दर के रस का नियमित सेवन रक्तचाप को नियन्त्रित रखता है। उच्च रक्तचाप में कमी लाने में भी चुकन्दर गुणकारी है।






4.कब्ज: चुकन्दर का मुलायम रेशा आँतों की गति बनाए रखता है। इसको नियमित रूप से खाने से लम्बे समय से चली आ रही कब्ज अ से भी मुक्ति  मिल जाती है।

5.रक्त कणिकाओं की सिकुडऩ:  चुकन्दर के रस का नियमित सेवन रक्त नलिकाओं में कैल्शियम के जमाव को हटाकर उनका लचीलापन बनाए रखता है, जिससे रक्त संचरण सुगमता से होता है।



6.कैंसर से बचाव: चुकन्दर में पाए जाने वाले अमीनो एसिड में कैंसररोधी तत्व पाए जाते हैं। शोध अध्ययनों से पता चला है कि चुकन्दर के रस के नियमित सेवन से कैंसरकारक तत्वों का निर्माण बाधित होकर पाचन तन्त्र की कार्यक्षमता को बढ़ावा मिलता है।
7.विषैले तत्वों को बाहर निकालना: चुकन्दर के रस का नियमित सेवन न केवल यकृत , बल्कि सम्पूर्ण पाचन तन्त्र के हानिकारक तत्वों को शरीर से बाहर निकालकर आरोग्य प्रदान करता है। चुकन्दर के साथ यदि गाजर मिलाकर इसके रस का सेवन किया जाए तो यह पित्ताशय व वृक्क से हानिकारक तत्वों को हटाकर इन अंगों की कार्यक्षमता बढ़ाता है।
विशेष:
खाने के लिए पत्तीदार चुकन्दर का ही उपयोग करें। पत्ती सहित चुकन्दर को 3-4 दिन रेफ ्रीजरेटर में संग्रह करने पर इनकी पत्तियों की नमी बनी रहती है, जबकि  पत्तियों के बिना चुकन्दर को लगभग दो सप्ताह तक संग्रह किया जा सकता है। जिन चुकन्दर का तल गोलाई लिए होता है, वे दूसरों से अधिक स्वादिष्ट होता हैं। ताजे व कच्चे चुकन्दर में एक विशेष खुशबू होती है, जो इसके स्वाद को बढ़ाती है।

भूलने की बीमारी को मिटाएं घर बैठे....उपाय सरल है

आमतौर पर हम सभी के घरों में किचन में पाई जाने वाली हल्दी अपने आप में किसी डॉक्टर से कम नहीं है। तभी तो आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा से संबंधित ग्रंथों में घरेलू हल्दी को चमत्कारी औषधि का दर्जा दिया गया है। जिस बात को आयुर्वेद में हजारों साल पहले कह दिया

था, उसकी सच्चाई और प्रामाणिकता पर आज विज्ञान जगत भी मुहर लगा रहा है।

हल्दी के औषधीय गुणों पर किये जा रहे शोध बताते हैं कि हल्दी में कैंसर कोशिकाओं को मारने की क्षमता होती है। भारतीय लोग तो हल्दी के फायदों से परिचित हैं ही लेकिन अब वैज्ञानिकों ने भी साबित कर दिया है कि हल्दी में न केवल कैंसर कोशिकाओं को मारने की क्षमता होती है, बल्कि डिमेंशिया यानी भूलने की बीमारी जिसमें रोगी को मतिभ्रम हो जाता है और वह जरूरी बातें भी भूल जाता है, को भी नियंत्रित करने की क्षमता होती है।

डिमेंशिया में भी अचूक:

हल्दी में पाए जाने वाले रसायन 'करक्यूमिन' में रोगहारी शक्ति होती है, जो गठिया और मनोभ्रंश या डिमेंशिया यानी भूलने की बीमारी जैसी बीमारियों के इलाज में प्रभावी सिद्ध हो चुकी है।

कैंसर की रोकथाम:

ब्रिटेन के कॉर्क कैंसर रिसर्च सेंटर में किए गए परीक्षण दिखाते हैं कि प्रयोगशाला में जब करक्यूमिन का प्रयोग किया गया तो उसने गले की कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर दिया।

डॉ शैरन मैक्केना और उनके दल ने पाया कि करक्यूमिन ने 24 घंटों के भीतर कैंसर की कोशिकाओं को मारना शुरु कर दिया। कैंसर विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रिटिश जरनल ऑफ़  कैंसर में प्रकाशित यह खोज कैंसर के नए इलाज विकसित करने में सहायक हो सकती है।

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

कहीं सांप काट लें तो.... सबसे पहले यह करें !

वर्तमान में चल रहे बारिश के सीजन में जहरीले कीड़ों खाशकर सांप-बिच्छू के काटने का डर बना ही रहता है। घरों में बगीचों या पैड़-पौधों के बीच अचानक ये बेहद जहरीले कीड़े सांप या बिच्छू कभी-कभी घातक रूप से जानलेवा सिद्ध हो जाते हैं। कई बार अंधेरे के कारण हम देख और पहचान भी नहीं पाते कि जिसने हमें काटा है वह सांप जैसा कोई बेहद खतरनाक जानवर भी हो सकता है।

इसलिये यदि पता हो या नहीं हो सांप काटने या काटने की शंका होने पर सबसे पहले व्यक्ति को क्या करना चाहिये यह बहुत महत्वपूर्ण बात होती है। काटने के बाद अगर आपको किसी विषैले सांप के काटने का संदेह हो तो तत्काल यह कार्य करें...

1. उस जगह को तुंरत साबुन पानी से धो कर एंटीसेप्टिक का इस्तेमाल करें।

2. पीडि़त को चलने से रोकें और शरीर में किसी प्रकार की हलचल का न होना शुनिश्चित करें।

3. अगर हाथ अथवा पैर में सांप ने कटा हो तो उसे कपडे के तकिये या अख़बार के सहयोग से स्थिर कर दें, और काटे हुए स्थान से 3-4 इंच उपर एक किसी चीज से बांध दे। ध्यान रहे ज्यादा कस कर न बांधे वरना, वह अंग पूरी तरह बेकार हो सकता है। एक अंगुली आ-जा सके इतनी जगह होनी चाहिए।

4. ऐसी कोई बात न करें जिससे रोगी में भय उत्पन्न हो क्योंकि इससे ब्लड सकुर्लेशन तेज़ हो जाता है और जहर तेजी से फैलता है।

5. यह ध्यान रहे की सांप काटे हुए अंग को ह्रदय से निचे ही रखें।

पुराने ज़माने में जब सांप के जहर को काटने वाले विषरोधी यानी एंटी वेनम की दवाईयां उपलब्ध नहीं थी तब किसी तेज धारदार हथियार से सांप के काटे हुए स्थान पर तत्काल चीरा लगा कर जहर और जहरीला रक्त निकालने का प्रयास किया जाता था। लेकिन इस विधि से संक्रमण  होने का खतरा होता है, तथा आज विषरोधी यानी एंटीवेनम दवाईयां भी बाजार में उपलब्ध हैं।

विशेष: ऊपर बताए गए सारे उपाय प्राथमिक उपचार के हैं, जो कि डॉक्टर उपलब्ध होने से पहले के हैं। चिकित्सा उपलब्ध हो जाने पर चिकित्सक की सलाह से ही कार्य करना चाहिये।

बुधवार, 3 अगस्त 2011

पेट में गैस, जलन या दर्द हो.... ये रहे रामबाण उपाय

कब्ज़, गैस, कमर दर्द, त्वचा के रोग, रक्त चाप, दांत संबंधी रोग.... ये कुछ एसी बीमारियां हैं जिनसे दुनिया का लगभग हर दूसरा व्यक्ति हैरान-परेशान है। आधुनिक भोग-विलास की जीवनशैली पर चलने वाला हर एक व्यक्ति आज किसी न किसी छोटी-बड़ी शारीरिक या मानसिक बीमारी से ग्रसित है। 

सामान्य दिखने वाली इन घातक बीमारियों से छुटकारे के लिए यहां दिये जा रहे हैं  कुछ परखे हुए 100 फीसदी असरदार  घरेलू नुस्खे। ये घरेलू नुस्खे कारगर तो हैं ही इनका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है। तो आइये जानें कुछ जांचे-परखे असर दार नुस्खों के बारे में....

1. गैस की समस्या से निजात पाने के लिए काली मिर्च और नमक को पीस कर गुनगुने पानी के साथ लेने से तुरंत लाभ होता है

2. एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नीबू, थोड़ा सा काला नमक, सिका हुआ जीरा और थोडी सी हींग मिलाकर लेने से गैस की तकलीफ में तत्काल राहत मिलती है।

3. म_ा, हींग, सोंठ, गुड आदि पाचन में बेहद सहायक चीजों का सेवन करने से यह बीमारी जड़ से चली जाती है।

4. भोजन करने के बार मात्र 5 मिनिट के लिये वज्रासन में अवश्य बैठें।

5. जब भी लेटें या सोएं बाईं करवट का ही प्रयोग करें।

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

दूध से सफेद व चट्टान से मजबूत दांत, सिर्फ तीन फंड़े


पूरे शरीर की बाहरी खूबसूरती काफी कुछ चेहरे बनावट और रंग-रूप पर निर्भर करती है। चेहरे में भी आंखों के बाद दांतों की बनावट और दिखावट का अहम् स्थान होता है। साफ सफेद ओर चमकते दांत किसी भी चेहरे की खूबसूरती में चार चांद लगा सकते हैं।




आयुर्वेद के 3 कीमती सूत्र:




1. आजकल के बच्चों के दांत सफ़ेद-सुन्दर नहीं होते क्योंकि टूथपेस्ट में डले हुए फ्लोराईड से दांत और हमारे शरीर की हड्डियां गलने, खराब होने लगती हैं। इस पर अनेक शोध हो चुके हैं। अत: पेस्ट के स्थान पर किसी आयुर्वेदिक या प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से बने हुए मन्जन का प्रयोग करना चाहिये।




2. कभी-कभी अवसर मिलने पर नीम, बबूल, बिल्व आदि पेड़ों से प्राप्त दांतुन भी करते रहना चाहिये।




३. मल-मूत्र त्याग के समय दांत दबाकर बैठें और बाद में कुल्ला कर लें। इससे भी दांत मजबूत बनते हैं। असल में मल-मूत्र त्याग के समय हमारे दांतों की जडों में कुछ तेजाबी पदार्थ एकत्रित होकर उनकी जडों को कमजोर बना देते हैं। कुल्ला करने से ये तेजाबी तत्व निकल जाते हैं। हमारे पूर्वज तभी तो मल-मूत्र त्याग के बाद सदा कुल्ला किया करते थे।

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