शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

अनोखा तरीका: बिना दवाई छू मंतर होंगे पेट और गले के रोग

शंख को भारतीय परंपरा में मांगलिक वस्तु माना गया है। शंख का प्रयोग देव पूजा में होता है। शंख शब्द का अर्थ होता है कल्याण को उत्पन्न करने वाले। इसीलिए शंख बजाकर ही मंदिर में भगवान को उठाया जाता है।

विधि- बाएं हाथ के अंगुठे को दाएं हाथ की हथेली में स्थापित करें और मुठ्ठी को बंद करें। अंगुलियों को दाहिने हाथ के अंगूठे से स्पर्श कराएं। इस तरह चारों अंगुलियों से अग्रि तत्व का संयोग होता है। इस मुद्रा से हाथों की आकृति शंख के सामान हो जाती है। उसे शंख मुद्रा कहा जाता है। ऊपर के भाग में अंगुलियों और अंगूठे के बीच जो खुला भाग रहता है। उसका आकार शंख जैसा होता है। मुंह लगाकर जैसे शंख बजाते हैं वैसे ही बजाने की कोशिश करेंगे तो शंख के समान आवाज आएगी। आरंभ में इसे 16 मिनट किया जाए। फिर उसे 48 मिनट तक किया जा सकता है।

लाभ- वाणी के दोष दूर होते हैं।

- टान्सिल और गले की बीमारियां भी दूर होती है।

- नाभि केन्द्र व्यवस्थित हो जाता है।

- पेट के सारे रोग दूर होते हैं। पाचन तंत्र सुधरता है।

सावधानियां- अंगूठे को दबाने से एक्युप्रेशर के अनुसार थाइराइड प्रभावित होता है। इसलिए अगर इस मुद्रा को करने के बाद अगर आप दुबले या मोटे हो रहें है तो इस मुद्रा को बंद कर देना चाहिए।

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