आमतौर पर हम जो भी खातें या पीतें हैं उससे काम के तत्व शरीर में अवशोषित हो जाते हैं तथा बेकार के तत्व मळ या मूत्र के रूप में बाहर उत्सर्जित होते हैं I ऐसे ही हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है गुर्दा (किडनी) , यह दिन -रात खून को छानने में लगा रहता है और बेकार के तत्व को मूत्र के रूप में बाहर निकालता रहता है जबकि यह काम के तत्व को अवशोषित कर लेता है I
अब आप ज़रा सोचिये की जैसे चाय को छानते -छानते छन्नी में कई बार अवरोध आता है और कई बार छन्नी बेकार भी हो जाती है, ठीक इसी प्रकार हमारे शरीर के रक्त की छन्नी 'किडनी या गुर्दा' है क्या निरंतर कार्य करने से खराब नहीं होती होगी? ऐसा नहीं है, सयंमित खान- पान करने पर किडनी रूपी रक्त छन्नी आजीवन निर्बाध रूप से काम करती रहती है ,हाँ यदि खान -पान में कैलशियम,पोटाशियम के आक्स़लेट,यूरेट आदि अधिक मात्रा में खून के माध्यम से गुर्दे में छनने को जा रहे हों तो इनका जमा होना तो तय है और इसके लगातार जमा होने से एक टूकडे का निर्माण होता है।
जिसे बोलचाल की भाषा में 'पथरी' या 'स्टोन' कहते हैं। जिन क्षेत्रों के पानी में चूने आदि तत्व मात्रा से अधिक पाए जाते हैं वहां 'पथरी या केलकुलस' के रोगी अधिक मिलते हैं। ऐसे रोगियों में छोटी पथरी का तो पता ही नहीं चलता,जब पथरी बड़ी या संख्या में अधिक हो जाती है तब रोगी को पेट के नीचे एंठन लिए असहनीय दर्द बताता है, कई बार तो रोगी दर्द से बैचैन हो उठाता है, इस दशा में चिकित्सक अल्ट्रासाउंड द्वारा पथरी के आकार को मापते हैं और आगे की सलाह देते हैं।
आयुर्वेद में पथरी के लिए 'अश्मरी' शब्द का प्रयोग हुआ है I छोटी गुर्दे की 'पथरी' को मूत्र मार्ग से बाहर निकालने में आयुर्वेदिक नुस्खे बड़े कामयाब हैं I ऐसे ही कुछ नुस्खे निम्न हैं ,हाँ इनका प्रयोग चिकित्सक के परामर्श से ही करें तो बेहतर होगा I
-गोक्षुर चूर्ण :1.5 ग्राम,खीरा बीज चूर्ण-1.5 ग्राम,ककडीबीज चूर्ण- ग्राम एवं कुलथीबीज चूर्ण -1.5ग्राम का प्रयोग रोगी की आयु के अनुसार कराने से पथरी में काफी लाभ मिलता है।-पथरी के रोगियों में रात में कुल्थी की दाल को भिगों कर छोड़कर प्रातः उसका पानी पीने से भी लाभ मिलता है।-लगभग दो किलो नींबू का रस निकालकर,इसे एक लीटर की मात्रा में छानकर बोतल में भर कर रख लें,अब इसमें एक मुट्ठी कौडियाँ डाल दें,तथा बोतल को थोड़ा हिला लें, यह थोड़ा दूधिया हो जाएगा,अब इसे रोज आधा कप तबतक पीयें जबतक रस समाप्त न हो जाय,यह पथरी को निकालने का अनुभूत नुस्खा है।-कुछ आयुर्वेदिक योग भी पथरी की चिकित्सा में कारगर होते हैं जैसे : चन्द्रप्रभावटी,श्वेतपर्पटी, चन्दनासव,गोक्षुरादीगुगुल्लू ,वरुणादीक्वाथ,त्रंणपंचमूलक्वाथ आदि, इनका प्रयोग एवं मात्रा का निर्धारण चिकित्सकीय परामर्श से ही होना चाहिए।पथ्य एवं अपथ्य : पथरी के रोगीयों को टमाटर,पालक आदि के सेवन में संयम बरतना चाहिए। हाँ अगर पथरी काफी बड़ी हो तो फ़ौरन आधुनिक चिकित्सा में सर्जरी या लीथोट्रीप्सी बेहतर विकल्प हो सकता है।
Kodiya kya hoti h...nimbu k ras m milani h jo
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