हस्त-चिकित्सा
हस्त-चिकित्सा शरीर के किसी भी अंग की पीड़ा का चमत्कारिक ढंग से निवारण करनेवाली, स्वास्थ्य एवं सौन्दर्यवर्धक चिकित्सा पद्धति है ।
मानसिक पवित्रता और एकाग्रता के साथ मन में निम्नलिखित वेदमंत्र का पाठ करते हुए दोनों हथेलियों को परस्पर रगड़कर गरम करें, तत्पश्चात् उनसे पाँच मिनट तक पीड़ित अंग का बार बार सेंक करें और उसके बाद नेत्र बन्द करके कुछ मिनट तक सो जाइये । इससे गठिया, सिरदर्द तथा अन्य सब प्रकार के दर्द दूर होते हैं । मंत्र इस प्रकार है:
अयं मे हस्तो भगवानयं मे भगवत्तर:।
अयं मे विश्वभेषजोsयं शिवाभिमर्शनम्॥
“मेरी प्रत्येक हथेली भगवान (ऐश्वर्यशाली) है, अच्छा असर करनेवाली है, अधिकाधिक ऐश्वर्यशाली और अत्यंत बरकतवाली है । मेरे हाथ में विश्व के सभी रोगों की समस्त औषधियाँ हैं और मेरे हाथ का स्पर्श कल्याणकारी, सर्व रोगनिवारक तथा सर्व सौन्दर्यसंपादक है ”
आपकी मानसिक पवित्रता तथा एकाग्रता जितनी अधिक होगी, उसी अनुपात में आप इस मंत्र द्वारा हस्त-चिकित्सा में सफल होते चले जायेंगे । अपनी हथेलियों के इस प्रकार के पवित्र प्रयोग से आप न केवल अपने, अपितु अन्य लोगों के रोग भी दूर कर सकते हैं ।
( विस्तृत जानकारी के लिए आश्रम से प्रकाशित पुस्तक ‘आरोग्यनिधि-1’ के पृष्ट- 177 पर देखें । )
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वात दर्द मिटाने का उपाय
वातरोग के कई प्रकार हैं । किसी भी प्रकार के वातरोग के लिए यह उपाय आजमाया जा सकता है:
तर्जनी(पहली उँगली) को हाथ के अँगूठे के आखिरी सिरे पर रखो और तीन उँगलियाँ सीधी रखो । फिर बायाँ नथुना बंद करके दायें नथुने से खूब श्वास भरो । जहाँ पर वातरोग का असर हो -घुटने में दर्द हो, कमर में दर्द हो, चाहे कहीं भी दर्द हो, उस अंग को हिलाओ-डुलाओ । भरे हुए श्वास को आधे या पौने मिनट तक रोको, ज्यादा से ज्यादा एक मिनट तक रोको, फिर बायें नथुने से बाहर निकाल दो । ऐसे दस बारह प्राणायाम करो तो दर्द में फायदा होता है । एलोपैथी की दवाइयाँ रोग को दबाती हैं जबकि आसन, प्राणायाम उपवास आदि रोग को जड़ से निकालकर फेंक देते हैं । इन उपायों से जो फायदा होता है वह एलोपैथी के कैप्सूल इंजेक्शन आदि से नहीं होता ।
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थकान व सिरदर्द मिटाने का उपाय
जब आप बहुत थके हुए हों तो जीभ को जरा सा बाहर निकालकर तर्जनी उँगली को अँगूठे से दबायें, फिर दोनों को शून्याकार (0) देकर कुछ देर तक आराम करें । इससे ज्ञानतंतुओं को पोषण मिलता है और थकान मिटती है ।
जिसका सिर बहुत दुखता हो वह भी जीभ को थोड़ा सा बाहर निकालकर, दिन में 3बार 2-2 मिनट तक उक्त मुद्रा करे तो उससे कई प्रकार के सिर दर्द मिट जाते हैं ।
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बुद्धिशक्ति विकासक प्रयोग
सुबह सूर्योदय से पहले स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वातावरण में प्राणायाम करने चाहिए । तुलसी के पत्ते चबाकर रात का रखा एक गिलास पानी पीना चाहिए । इससे बुद्धिशक्ति में गजब की वृद्धि होती है ।
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तनावों से बचने के उपाय
शरीर को अति थकाओ मत ।
“मैं थक गया हूँ ” ऐसा सोचकर मन से भी मत थको । मन को तनाव में न डालो । कभी चिंतित न हों, कभी दु:खी न हों । चिंता आये तो चिंतित न हों वरन् विचार करो कि चिंता आयी है तो मन में आयी है । चिंता नहीं थी तब भी कोई था, चिंता है तब भी कोई है और चिंता आयी है तो जायेगी भी क्योंकि जो आता है वह जाता भी है । जो होगा, देखा जायेगा ।
भावनाओं एवं कल्पनाओं में मत उलझो लेकिन ‘हरि ॐ तत् सत् और सब गपशप’ इस मंत्र की गदा से तनाव वाली कल्पनाओं व भावनाओं को मार भगाओ ।
शारीरिक और मानसिक तनाव दूर करने के लिए सुंदर उपाय है- अजपा गायत्री । शरीर को खूब खींचे, फिर ढीला छोड़ दें । मन ही मन चिन्तन करें कि “मैं स्वस्थ हूँ … शरीर की थकान मिट रही है…” इस प्रकार शारीरिक आराम लेकर फिर श्वासोच्छ्वास की गिनती करें । इससे शारीरिक एवं मानसिक तनाव मिटेंगे ।
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निराशा के क्षणों में
अपने मन में हिम्मत और दृढ़ता का संचार करते हुए अपने आपसे कहो कि “मेरा जन्म परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने के लिए हुआ है, पराजित होने के लिए नहीं । मैं इश्वर का, चैतन्य का सनातन अंश हूँ । जीवन में सदैव सफलता व प्रसन्नता की प्राप्ति के लिए ही मेरा जन्म हुआ है, असफलता या पराजय के लिए नहीं । मैं अपने मन में दीनता हीनता और पलायनवादिता के विचार कभी नहीं आने दूँगा । किसी भी कीमत पर मैं निराशा के हाथों अपनी शक्तियों का नाश नहीं होने दूँगा ”
दु:खाकार वृत्ति से दु:ख बनता है । वृत्ति बदलने की कला का उपयोग करके दु:खाकार वृत्ति को काट देना चाहिए ।
आज से ही निश्चय कर लो कि “आत्म साक्षात्कार के मार्ग पर दृढ़ता से आगे बढ़ता रहूँगा । नकारात्मक या फरियादात्मक विचार करके दु:ख को बढ़ाऊँगा नहीं, अपितु सुख दु:ख से परे आनंदस्वरुप आत्मा का चिन्तन करुँगा ”
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सदगुण सदाचार
छ: घटे से अधिक सोना, दिन में सोना, काम में सावधानी न रखना, आवश्यक कार्य में विलम्ब करना आदि सब ‘आलस्य’ ही है । इन सबसे हानि ही होती है । अत: सावधान ! मन, वाणी और शरीर के द्वारा न करने योग्य व्यर्थ चेष्टा करना तथा करने योग्य कार्य की अवहेलना करना प्रमाद है । ऐश- आराम, स्वादलोलुपता, फैशन, सिनेमा आदि देखना, क्लबों में जाना आदि सब भोग है । काम, क्रोध, लोभ, मोह, दंभ, दर्प, अभिमान, अहंकार, मद, ईर्ष्या, आदि दुर्गुण हैं । संयम, क्षमा, दया, शांति, समता, सरलता, संतोष, ज्ञान, वैराग्य, निष्कामता आदि सदगुण हैं । यज्ञ, दान, तप, तीर्थ, व्रत, और सेवा-पूजा करना तथा अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य का पालन करना आदि सदाचार हैं ।
शुरुआत में सच्चे आदमी को भले ही थोड़ी कठिनाई दिखे और बेईमान आदमी को भले थोड़ी सुविधा दिखे, लेकिन अंततोगत्वा तो सच्चाई एवं समझदारीवाला ही इस लोक और परलोक में सुखी रह पाता है ।
जिनके जीवन में धर्म का प्रभाव है उनके जीवन में सारे सदगुण आ जाते हैं, उनका जीवन ऊँचा उठ जाता है, दूसरों के लिए उदाहरणस्वरुप बन जाता है ।
आप भी धर्म के अनुकूल आचरण करके अपना जीवन ऊँचा उठा सकते हो । फिर आपका जीवन भी दूसरों के लिए आदर्श बन जायेगा, जिससे प्रेरणा लेकर दूसरे भी अपना जीवन स्तर ऊँचा उठाने को उत्सुक हो जायेंगे ।
अध्यात्म का रास्ता अटपटा जरुर है । थोड़ी बहुत खटपट भी होती है और समझ में भी झटपट नहीं आता लेकिन अगर थोड़ा सा भी समझ में आ जाय, धीरज न छूटे, साहस न टूटे और परमात्मा को पाने का लक्ष्य न छूटे तो प्राप्ति हो ही जाती है ।
इन शास्त्रीय वचनों को बार-बार पढ़ो, विचारो और उन्नति के पथ पर अग्रसर बनो । शाबाश वीर !! शाबाश !! हरि ॐ … ॐ … ॐ …
बुधवार, 27 अक्टूबर 2010
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