आज हम आपको मेष लग्न में कुछ ऐसे ग्रहों के बारे में बताने जा रहे है जो इस लग्न वालों को धन और यश देते हैं. और इस लग्न के में कुछ ऐसी युति भी है जो अशुभ होती हैं. इसके साथ ही हम मंगल ग्रह के बारे में भी बता रहे हैं की वो किस भाव में बैठने पर आपको भूमि सूख देता हैं.
यह लेख विश्वजीत बब्बल वैदिक काउंसलर के फेसबुक पोस्ट से लिया गया है. वे वास्तु और ज्योतिष की बहुत अच्छी जानकारी रखते हैं. उन्होंने अपनी जानकारी के आधार पर कई लोगों के परेशानिया दूर की है. यह अपने अनुभव को भी समय समय पर लोगों से शेयर करते हैं. आप इनसे सशुल्क परामर्श ले. सकते हैं. आप उनसे फेसबुक के द्वारा सम्पर्क कर सकते हैं. इस सेवा का लाभ जरुर लें.
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मेष लग्न में जन्म लेने वाले जातकों के लिए धन-प्रदाता ग्रह शुक्रु्देव हैं. धनेश शुक्र की शुभाशुभ स्थिति में, धन स्थान से सम्बन्ध जोड़ने वाले ग्रहों की स्थिति एवं योगायोग, शुक्र एवं धन भाव पर पड़ने वाले ग्रहों की द्रष्टि-संबंध से जातक की आर्थिक स्थिति, आय के स्रोतों तथा चल-अचल संपत्ति का पता चलता है. इसके अलावा पंचमेश सूर्य, भाग्येश गुरु तथा लाभेश शनि और लग्नेश मंगल की अनुकूल स्थितियां मेष लग्न वालों के लिए धन, ऐश्वर्य और वैभव को बढ़ाने में पूर्ण रूप से सहायक सिद्ध होती हैं.
वैसे मेष लग्न के लिये शनि, बुद्ध और शुक्र अशुभ फलप्रदाता हैं, बुद्ध महापापी है, गुरु और रवि शुभ फल देते हैं. अशुभ योग के संयोग से गुरु निश्चित रूप से अशुभ फल देगा. शुक्र मारक भाव का अधिपति होकर भी मारक नहीं है पर अरिष्ट फलदायक है. शनि इत्यादि पापग्रह इस लग्न के लिए घातक सिद्ध होते हैं. मंगल लग्नेश और अष्टमेश होने पर भी लग्नेश होने के कारण अशुभ फल नहीं देगा, स्वगृही हो तो उत्तम फल देगा.
शुभ युति : गुरु+शनि
अशुभ युति : बुद्ध+मंगल
राजयोग कारक : सूर्य, चन्द्र्मा और बृहस्पति
कुछ अन्य टिप्स -
चतुर्थ भावस्थ मंगल संपत्ति का सुख तो देता है, लेकिन संतति से तकलीफ़ भी देता है. इनका भाग्योदय अपने जन्मस्थान में नहीं होता. वहां बहुत से कष्ट होते हैं. सरसता-सफलता जन्मभूमि छोड़ने के बाद ही आती है. यही चतुर्थ मंगल यदि मेष, सिंह अथवा धनु राशि में हो तो इनके घर को आग लगने की संभावना भी होती है.
अपना घर बनवाकर आखरी दिन वहीँ बिताने की प्रबल इच्छा सफल होती है यदि मंगल चतुर्थ भाव में कर्क, तुला, वृश्चिक या मिथुन राशिगत हो, लेकिन मृत्यु अपने घर में नहीं होती. मृत्यु के समय विशेष कष्ट भी नहीं होता.
इनके पूर्वजों ने किसी असहाय की धन-संपत्ति का षड्यंत्रपूर्वक हरण किया होता है अथवा भगवती या गणपति की पूजा-अर्चना बंद करवाई होती है, जिसके फलस्वरुप इनके घर में हमेशा ही असमाधान की सी स्थिति बनी रहती है.
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