रविवार, 22 जुलाई 2018

when the Vastu Shastra gets the biggest pleasure of parent शास्त्र के एक सूत्र से जब मिली माता-पिता को सबसे बड़ी खुशी


यह अनुभव है विश्वजीत बब्बल के उस प्रयोग का. जिसमें उन्होंने थोडा सा बदलाव करके   एक माता-पिता को उनके बच्चों से मिलवा दिया. उन्होंने रहत दी उन बूढ़े माँ-बाप को जो कबसे अपने बच्चों के आने की राह देख रहे थे. पर बच्चे थे की आने का नाम ही नहीं ले रहे थे. बस थोडा सा वास्तु अनुरूप किया गया बदलाव माता-पिता को सबसे बड़ी खुशी दे गया. चलिए जानते है उनकी कहानी उन्ही की जुबानी.



यह लेख विश्वजीत बब्बल वैदिक काउंसलर के फेसबुक पोस्ट से लिया गया है. वे वास्तु और ज्योतिष की बहुत अच्छी जानकारी रखते हैं. उन्होंने अपनी जानकारी के आधार पर कई लोगों के परेशानिया दूर की है. यह अपने अनुभव को भी समय समय पर लोगों से शेयर करते हैं. आप इनसे सशुल्क परामर्श ले. सकते हैं. आप उनसे फेसबुक के द्वारा सम्पर्क कर सकते हैं. इस सेवा का लाभ जरुर लें. 
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अपनी ज़रूरतों से कहीं ज़्यादा पैसा, यदि उचित तरह धर्म, आध्यात्म और पुण्यादि कर्मों में न लगे तो अपने साथ बे-आवाज़ गर्दिशों का अंतहीन दौर भी लेकर आता है. हाल के समय में सबकी नाक में दम कर देने वाले टेलिकॉम कंपनी के आईटी हेड के माँ-बाप का बंगला देखकर यही मुहँ से निकला...

बाप दो बरस पहले मेट्रो परियोजना से ऑलमोस्ट हाईएस्ट मोस्ट पोस्ट से रिटायर्ड. तीन बेटे...बड़ा आईटी हेड जयपुर पोस्टेड, मंझला पूना, महाराष्ट्र में इंटरनेशनल बैंक में उच्चाधिकारी और तीसरा सूरत, गुजरात में फाइनेंसियल डायरेक्टर पोस्ट पर....एक बेटी दिल्ली अरबपतियों की बहु....

बड़ा दो साल भर पहले जो घर छोड़ कर निकला तो पलटा ही नहीं, बाकी दोनों भी रस्मी-तौर पे हालचाल पूछ लेते हैं. दोनों पति-पत्नी अब साठ क्रॉस कर चुके हैं.

घर टी-पॉइंट पर नार्थ फेसिंग, मूलरूप से बृजवासी हैं सो हर दीवार पे कान्हा ही कान्हा. अपने घर पर शनिदेव और माँ भद्रकाली की पूजा करवा कर सामने पार्क में प्रतिष्ठा करवाई (कब और किससे पूछकर, भगवान् जाने), हर दरवाज़े पर घोड़े के नाळ, रसोई वेस्ट में, टॉयलेट साउथ-ईस्ट में, मंदिर ईस्ट-साउथ-ईस्ट में...और भी बहुत कुछ तितर-बितर हुआ हुआ...

७-८ दफ़े वृद्ध महिला की आंखें छलकीं, सारस्वत ब्राह्मण पिता ऊपर से सयंत दिखने का असफल प्रयास कर रहे थे. मैं आधे-पौन घन्टे के हिसाब से गया था, तीन घन्टे से ज़्यादा समय बिताया उनके साथ और हर संभव ढाढ़स देने की कोशिश की...

इस रक्षाबंधन पर इस घर में ही सब इकट्ठे होंगे और दीवाली भी आप अपने सब पुत्रों बहुओं और पोते-पोतियों के साथ ही मनायेंगे. उससे पहले बड़ा बेटा आपके पास इसी घर में ही शिफ्ट हो जायेगा.

उन्हें वचन देकर आया हूँ !

मगर इतनी दुश्वारियों के बावजूद भी बुढ़ऊ बाज न आया. मेरे साथ आये से बोले, " ऐसा कौन-सा तीर मारेंगे ? मुझे तो कोई सूरत नज़र नहीं आती ."

- अरे अंकल, जहाँ कोई गुंजाईश नहीं होती, वहीँ तो सर अपना जलवा दिखाते हैं .

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