कहते हैं अगर किसी व्यक्ति की दिनचर्या नियमित हो और वह आयुर्वेद में बताए गए कुछ नियमों का पालन अपनी डेली लाइफ में करे तो कोई भी सुखपूर्वक निरोगी जीवन व्यतीत कर सकता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसे ही कुछ टिप्स जिन्हें अपनाएंगे तो आप कभी बीमार नहीं होंगे।
- प्रात:काल 4 से 6 बजे के मध्य अर्थात सूरज उगने से पूर्व बिस्तर छोड़ दें।
- सुबह ब्रश व शौचादि से पहले ताम्बे के लोटे में रात्रि को रखा पानी पीयें।
- नाश्ता या भोजन हमेशा भूख से थोड़ा कम करें तथा योग्य आहार का ही सेवन करें ।
- भोजन के साथ -साथ पानी पीने की प्रवृति से बचें।
- रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाने के लिए आंवले का सेवन नित्य करें।
- आहार में रेशेदार फल सब्जियों के अलावा दालों का सेवन, शरीर में किसी भी प्रकार के क्षय (टूट- फूट ) को ठीक करने में मददगार होता है।
- आहार में स्नेह अर्थात घी का नियंत्रित मात्रा में प्रयोग करें।
- भोजन में लाल मिर्च का सेवन कम करें।
- दिनचर्या में जानबूझकर,अनजाने में या असयंमित होकर किये गए आचरण को प्रज्ञापराध की श्रेणी में रखा जाता है,इससे से बचें।
- आहार स्वयं एक औषधी है,अत:ज्ञानेन्द्रिय को वश में करते हुए ही भोजन सहित अन्य आचरण करना स्वस्थ रहने में मददगार होता है।
- शुद्ध जल एवं वायु का सेवन आयुर्वेद अनुसार रोगों से मुक्ति का मार्ग है।
- गाय के दूध का नियमित रूप से सेवन करें।
- साल में एक बार पंचकर्म चिकित्सक के निर्देश में अवश्य करवाएं।
- प्रात:काल 4 से 6 बजे के मध्य अर्थात सूरज उगने से पूर्व बिस्तर छोड़ दें।
- सुबह ब्रश व शौचादि से पहले ताम्बे के लोटे में रात्रि को रखा पानी पीयें।
- नाश्ता या भोजन हमेशा भूख से थोड़ा कम करें तथा योग्य आहार का ही सेवन करें ।
- भोजन के साथ -साथ पानी पीने की प्रवृति से बचें।
- रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाने के लिए आंवले का सेवन नित्य करें।
- आहार में रेशेदार फल सब्जियों के अलावा दालों का सेवन, शरीर में किसी भी प्रकार के क्षय (टूट- फूट ) को ठीक करने में मददगार होता है।
- आहार में स्नेह अर्थात घी का नियंत्रित मात्रा में प्रयोग करें।
- भोजन में लाल मिर्च का सेवन कम करें।
- दिनचर्या में जानबूझकर,अनजाने में या असयंमित होकर किये गए आचरण को प्रज्ञापराध की श्रेणी में रखा जाता है,इससे से बचें।
- आहार स्वयं एक औषधी है,अत:ज्ञानेन्द्रिय को वश में करते हुए ही भोजन सहित अन्य आचरण करना स्वस्थ रहने में मददगार होता है।
- शुद्ध जल एवं वायु का सेवन आयुर्वेद अनुसार रोगों से मुक्ति का मार्ग है।
- गाय के दूध का नियमित रूप से सेवन करें।
- साल में एक बार पंचकर्म चिकित्सक के निर्देश में अवश्य करवाएं।
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