सोमवार, 18 जून 2012

क्या आप पाइल्स की पीड़ा से परेशान हैं?



कहते हैं कि हम बीमार नहीं होते अपितु एक रोग को स्वयं निमंत्रण देते है। शरीर और मन बीमारी को बुलाते हैं। गलत खान-पान, दिनचर्या, जीवन शैली, रहन-सहन हमें रुग्णता की तरफ ले जाते हैं। हमारी 80 प्रतिशत बीमारियां स्वयं की पैदा की हुई होती है।
आजकल फास्ट फूड, जंक फूड व मांसाहारी भोजन कब्ज के जनक हैं और कब्ज बवासीर (पाइल्स) की जन्मदात्री है। वैसे कब्ज सब बीमारियों की जड़ है। कब्ज की पहली बेटी बवासीर दूसरी संतान सिरदर्द, सुस्ती, अपाच्य, गैस, अफारा, भूख न लगना है।
पाइल्स क्या है- कब्ज के कारण कड़े मल के कारण रैक्टम में जख्म हो जाते हैं। वे रिसते हैं तथा मलद्वार में से रक्तस्राव होता है। बैठने में असुविधा होती है। अनियमित खान-पान और जो मिला, वही खा लिया, सलाद, रेशेदार भोजन की कमी, कब्ज और अर्श की जन्मदात्री है।
अर्श का गुदा-दर्द आदमी को अर्श से फर्श पर ले आता है। बैठना लेटना दूभर हो जाता है। वसायुक्त, तले पदार्थ ज्यादा नानवेज उदर विकार करते है। गुदा की रक्तवाहिनियां एक गुच्छा बना लेती है। इसे मस्सा भी कहते हैं। शौच की हाजत को रोकने से ज्यादा देर तक सख्त आसन पर बैठने से भी बवासीर रोग हो जाता है। इसका दर्द रोगी ही जानता है। असहनीय दर्द से रोगी कराहता है।
पाइल्स, अर्श, बवासीर सभी एक रोग के नाम है। यह एक कष्टदाई दुखदाई रोग है। हम भोजन खान पान की परवाह किये बिना दुकानों, खोमचों पर जो मिला खा लेते हैं जिससे पाचन शक्ति प्रभावित होती है और हम कब्ज से पीड़ित हो जाते हैं।
कुछ सावधानी, पथापथ्य, खानपान व दिनचर्या में परिवर्तन एवं जागरुकता द्वारा हम रोग मुक्त हो सकते हैं।
* मल त्याग की भावना को कभी रोके नहीं। पूर्ण समय लगाकर पूर्ण सफाई रखें। पानी ज्यादा पिएं। भोजन को चबा-चबा कर खाएं।
* भोजन से पहले ज्यादा सलाद खाएं। सलाद में मूली गाजर, प्याज, फल प्रयोग करें।
* लस्सी मट्ठा नमक, कालीमिर्च डालकर पिएं। दही ज्यादा खाएं।
* पालक, साग, मेथी, मूली, शलगम की सब्जी प्रयोग करें।
* पपीता, आम, अमरूद कब्ज बवासीर के लिए घातक है।
* मल वेग के आवेग से तुरन्त मुक्त हों। बथुआ, चौलाई, मौसमी फल, सब्जी खाएं। हरी सब्जियां आतड़ियों में फंसा अन्न निकाल फेंकती है।
* आहार का दमन रोगों का शमन करने में सहायक रहता है। रोग को शुरू से ही पकड़ ले नहीं तो यह आपको पकड़ लेगा जिससे छूटना मुश्किल होगा।
* गर्म दूध के साथ च्यवनप्राश, ईसबगोल या त्रिफला नित्य लेकर चिरंजीवी बने।
* खान-पान का ध्यान रोगमुक्ति सूत्र है। मिठाई, नानवैज, तले पदार्थ, फास्टफूड गरिष्ठ भोजन वर्जित है। इलाज से परहेज बेहतर है।
* चिकित्सक की राय से क्षारसूत्र चिकित्सा, कांटरी चिकित्सा, जैली प्रयोग बर्फ सेंकन, कटिस्ान, औषधि सेवन लाभदायक हो सकते हैं परन्तु परम उपयोगी साधन है सौ बीमारी और एक परहेज जिन्दगी को स्वस्थ रखता है। परहेज सचमुच इलाज से बेहतर है क्योंकि निमंत्रण तो रोगों को हम स्वयं ही देते हैं।
* ईसबगोल का छिलका प्रात: खाएं दूध, शर्बत या पानी से लगातार दो मास तक लें। कब्ज के दुश्मन बन जाएं क्योंकि यह आपके स्वास्थ्य का दुश्मन है।
* हाट वाटर टब में कटि स्नान करें अर्थात मल द्वार डुबोएं रखें, इससे रैक्टम के जख्मों को राहत मिलती है और दर्द भाग जाता है।

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