देवताओं की भूमि हिमालय अपने अन्दर अनेक दिव्य औषधियों को समेटे हुए है। देवभूमि शायद इन औषधीय वनस्पतियों की उपलब्धता के कारण ही प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों की साधना व तपस्या का केंद्र रही है। ऐसे ही कई गुणों को समेटे हुए एक वृक्ष जिसे हम अखरोट के नाम से जानते हैं अनेक औषधीय गुणों से युक्त होता है।
जंगली अखरोट एवं कागजी अखरोट नाम की दो जातियों से जाना जाने वाला यह वृक्ष अपने फलों के कारण प्रसिद्ध है। आइए अब हम आपको इसके कुछ औषधीय प्रयोग के बारे में जानकारी देते है
-अखरोट के फल के बाह्य कठोर आवरण को तोड़कर अन्दर की गिरी को 10 से 20 ग्राम क़ी मात्रा में गाय के गुनगुने दूध से नित्य सेवन करना रसायनगुणों से युक्त अर्थात शारीरिक क्षय को रोकने वाला प्रभाव देता है।
-अखरोट के पेड़ की छाल को मुंह में रखकर चबाने से मुख रोगों में लाभ मिलता है तथा फल के बाहरी कठोर आवरण को चूर्ण बनाकर आग में जलाकर भस्मीकृत कर मंजन के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
-अखरोट के प़ेड छाल का काढा पेट के कीड़े खत्म कर देता है।
-महिलाओं में माहवारी से सम्बंधित समस्याओं में फल के कठोर आवरण को चूर्ण बनाकर 20 से 25 मिली की मात्रा में शहद के साथ पिलाने से लाभ मिलता है। इसी काढ़े का प्रयोग सुबह शाम सेवन करने से मलबद्धता(कानस्टीपेशन) को दूर होता है।
-अखरोट के फलों की गिरी को पांच से दस ग्राम,छुहारे बीस से तीस ग्राम और बादाम पांच ग्राम की मात्रा में एक साथ यवकूटकर गाय के घी में भूनकर प्राप्त चूर्ण में थोड़ी मिश्री मिलाकर दस ग्राम नित्य प्रात:काल सेवन, डाइबिटीज को दूर करता है।
-अखरोट के फलों के कठोर आवरण को जलाकर भस्म प्राप्त करें तथा अब इसमें पांच से दस ग्राम मात्रा में गुड़ मिला दें ,अब इसे पांच से दस ग्राम की मात्रा में प्री-मेच्युर-इजेकुलेशन से पीडि़त रोगी को दें निश्चित लाभ मिलेगा।
-इसकी छाल से प्राप्त काढ़े से घाव को धोने यह उसे शीघ्रता से भरने (हीलिंग ) का भी काम करता है।
-पाइल्स से सम्बंधित समस्या में भी इसके तेल को गुदा में रुई में भिंगोकर रखने मात्र से लाभ मिलता है।
-ये तो इसके चंद प्रयोग हैं , जो हमने आपको बताए वैसे इसे कई औषधियों के साथ मिलाकर चिकित्सक के निर्देशन में लेना उपयोगी होता है।
जंगली अखरोट एवं कागजी अखरोट नाम की दो जातियों से जाना जाने वाला यह वृक्ष अपने फलों के कारण प्रसिद्ध है। आइए अब हम आपको इसके कुछ औषधीय प्रयोग के बारे में जानकारी देते है
-अखरोट के फल के बाह्य कठोर आवरण को तोड़कर अन्दर की गिरी को 10 से 20 ग्राम क़ी मात्रा में गाय के गुनगुने दूध से नित्य सेवन करना रसायनगुणों से युक्त अर्थात शारीरिक क्षय को रोकने वाला प्रभाव देता है।
-अखरोट के पेड़ की छाल को मुंह में रखकर चबाने से मुख रोगों में लाभ मिलता है तथा फल के बाहरी कठोर आवरण को चूर्ण बनाकर आग में जलाकर भस्मीकृत कर मंजन के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
-अखरोट के प़ेड छाल का काढा पेट के कीड़े खत्म कर देता है।
-महिलाओं में माहवारी से सम्बंधित समस्याओं में फल के कठोर आवरण को चूर्ण बनाकर 20 से 25 मिली की मात्रा में शहद के साथ पिलाने से लाभ मिलता है। इसी काढ़े का प्रयोग सुबह शाम सेवन करने से मलबद्धता(कानस्टीपेशन) को दूर होता है।
-अखरोट के फलों की गिरी को पांच से दस ग्राम,छुहारे बीस से तीस ग्राम और बादाम पांच ग्राम की मात्रा में एक साथ यवकूटकर गाय के घी में भूनकर प्राप्त चूर्ण में थोड़ी मिश्री मिलाकर दस ग्राम नित्य प्रात:काल सेवन, डाइबिटीज को दूर करता है।
-अखरोट के फलों के कठोर आवरण को जलाकर भस्म प्राप्त करें तथा अब इसमें पांच से दस ग्राम मात्रा में गुड़ मिला दें ,अब इसे पांच से दस ग्राम की मात्रा में प्री-मेच्युर-इजेकुलेशन से पीडि़त रोगी को दें निश्चित लाभ मिलेगा।
-इसकी छाल से प्राप्त काढ़े से घाव को धोने यह उसे शीघ्रता से भरने (हीलिंग ) का भी काम करता है।
-पाइल्स से सम्बंधित समस्या में भी इसके तेल को गुदा में रुई में भिंगोकर रखने मात्र से लाभ मिलता है।
-ये तो इसके चंद प्रयोग हैं , जो हमने आपको बताए वैसे इसे कई औषधियों के साथ मिलाकर चिकित्सक के निर्देशन में लेना उपयोगी होता है।
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