मंगलवार, 31 मई 2011

मुहं की दुर्गंध और छाले दोनों होंगे रफूचक्कर

आज असंतुलित खान-पान की वजह के कारण मुंह में छाले होना, पेट का खराब होना आम समस्या हो गई है। कई तरह की दवाईयां इस्तेमाल करने के बाद भी लोगों के मुंह के छाले ठीक नहीं हो पातेहैं। घबराइए नहीं जो छाले किसी भी दवा से ठीक नहीं हो रहे हैं वे नीचे दिए जा रहे नुस्खों से निश्चित ही ठीक हो जाऐंगे।

1. छोटी हरड़ को बारीक  पीसकर छालों पर दिन में दो तीन बार लगाने से मुंह तथा जबान दोनों  के छाले ठीक हो जाते हैं।

2. तुलसी की चार पांच पत्तियां रोजना सुबह और शाम को चबाकर ऊपर से थोड़ा पानी पी लें( ऐसा चार पांच दिनों तक करें) ।

3. करीब दो ग्राम  सुहागे का पावडर बनाकर थोड़ी सी ग्लिसरीन में मिलाकर छालों पर दिन में दो तीन बार लगाएं छालों में जल्दी फायदा होगा।

इन सभी प्रयोगों की यह खाशियत है कि इनके प्रयोग से मुंह के छालों से तो छुटकारा मिलता ही है साथ ही मुंह की दुर्गंध से भी निजात मिलती है।

विशेष-  जिन लोगों को बार-बार छाले होने की शिकायत रहती उन्हें टमाटर ज्यादा खाने चाहिए।

तेज धूप से बचने का खट्टा और स्वादिष्ट फंडा


सूरज की गरमी और धूप सारे धरती वासियों के लिये जीवन का वरदान है। सभी जानते हैं कि अगर पृथ्वी पर सूर्य की रोशनी न पड़े तो उस पर जीवन का होना भी संभव न हो पाए। लेकिन जैसा कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, धूप के साथ भी कुछ ऐसा ही है। तेज धूप शारीरिक ही नहीं मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज से भी कई बार बेहद हानिकारक हो जाती है। गर्मियों में लू लगना, नकसीर चलना, मानसिक तनाव का बढऩा, दिमाग में गर्मी बढ़ जाना, त्वचा का झुलस जाना, आंखों और सिर के  बालों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पडऩा... आदि कितने की घातक प्रभाव हैं जो गर्मियों में कभी भी किसी को भी हो सकते हैं। अगर तेज धूप से होने होने वाले इन सभी घातक प्रभावों से खुद को सुरक्षित रखना हो तो नीचे दिये जा रहे बेहद आसान घरेलू उपायों को प्रयोग में लाना चाहिये...

-शुद्ध दही एक बेहतरीन सनस्क्रीम है, जो बाजार में उपलब्ध सनस्क्रीमों की बजाय ज्यादा कारगर है।

-घर से निकलने के 30 मिनिट पहले चेहरे पर दही और बेसन का लेप लगाकर 5 से 10 मिनिट तक रखें। बाहर धूप में निकलने से पहले चेहरा ठंडे पानी से कई बार धोएं और अच्छी तरह से पौंछ कर ही घर से बाहर निकलें।

-दही के लेप से चेहरे पर धूप के प्रभाव को रोकने वाला एक सुरक्षा कवच बन जाता है, जो कई घंटों तक बना रहता है।

नुस्खे मोटापा


  • एक मूली ले और इस पर शहद लगाकर खायें।
  • मोटापा रोग में घी, दूध, गेंहूं की रोटी तथा चावल कम कर दें और चने की रोटी खायें।
  • प्रतिदिन एक गिलास फलों का रस पीयें।



ह्रदय रोग



ह्रदय रोग में २ चम्मच शहद, १ चम्मच नींबू का रस  पीने से तुरंत ह्रदय रोग में आराम होता है l  अथवा अदरक के रस में सामान मात्रा में पानी मिलकर पियें  |

ह्रदय में पीड़ा हो, हार्ट अटैक का भय हो तो तुलसी के ८-१० पत्ते, २-३ काली मिर्च चबा के पानी पी लें l  जादुई असर होगा  |

१०-२० तुलसी के पत्तों का रस गर्म करके, गुनगुने पानी में पियें और तुलसी के पत्तों को पीस कर उसका ह्रदय पर लेप करें |

ब्लड प्रेशर

लहसुन पीस कर दूध में डाल कर पीने से ब्लड प्रेशर में आराम होता है  |

दन्तशूल(toothache) के घरेलू उपचार



   दांत,मसूढों और जबडों में होने वाली पीडा को दंतशूल  से परिभाषित किया जाता है। हममें से कई लोगों को ऐसी पीडा अकस्मात हो जाया करती है। दांत में कभी सामान्य तो कभी असहनीय दर्द उठता है। रोगी को चेन नहीं पडता। मसूडों में सूजन आ जाती है। दांतों में सूक्छम जीवाणुओं का संक्रमण हो जाने से स्थिति और बिगड जाती है। मसूढों में घाव बन जाते हैं जो अत्यंत कष्टदायी होते हैं।दांत में सडने की प्रक्रिया शुरु हो जाती है और उनमें केविटी बनने लगती है।जब सडन की वजह से दांत की नाडियां प्रभावित हो जाती हैं तो पीडा अत्यधिक बढ जाती है।
   प्राकृतिक उपचार दंत पीडा में लाभकारी होते हैं। सदियों से हमारे बडे-बूढे दांत के दर्द में घरेलू पदार्थों का उपयोग करते आये हैं।  यहां हम ऐसे ही प्राकृतिक उपचारों की चर्चा कर रहे हैं।

१) बाय बिडंग १० ग्राम,सफ़ेद फ़िटकरी १० ग्राम लेकर तीन लिटर जल में उबालकर जब मिश्रण एक लिटर रह जाए तो आंच से उतारकर ठंडा करके एक बोत्तल में भर लें। दवा तैयार है। इस क्वाथ से सुबह -शाम कुल्ले करते रहने से दांत की पीडा दूर होती है और दांत भी मजबूत बनते हैं।

२) लहसुन में जीवाणुनाशक तत्व होते हैं। लहसुन की एक कली थोडे से सैंधा नमक के साथ पीसें फ़िर इसे दुखने वाले दांत पर रख कर दबाएं। तत्काल लाभ होता है। प्रतिदिन एक लहसुन कली चबाकर खाने से दांत की तकलीफ़ से छुटकारा मिलता है।

३) हींग दंतशूल में गुणकारी है। दांत की गुहा(केविटी) में थोडी सी हींग भरदें। कष्ट में राहत मिलेगी।

४)  तंबाखू और नमक महीन पीसलें। इस टूथ पावडर से रोज दंतमंजन करने से दंतशूल से मुक्ति मिल जाती है।

५) बर्फ़ के प्रयोग से कई लोगों को दांत के दर्द में फ़ायदा होता है। बर्फ़ का टुकडा दुखने वाले दांत के ऊपर या पास में रखें। बर्फ़ उस जगह को सुन्न करके लाभ पहुंचाता है।

६) कुछ रोगी गरम सेक से लाभान्वित होते हैं। गरम पानी की ्थैली से सेक करना प्रयोजनीय है।

७)  प्याज कीटाणुनाशक है। प्याज को कूटकर लुग्दी दांत पर रखना हितकर उपचार है। एक छोटा प्याज नित्य भली प्रकार चबाकर खाने की सलाह दी जाती है। इससे दांत में निवास करने वाले जीवाणु नष्ट होंगे।

८) लौंग के तैल का फ़ाया दांत की केविटी में रखने से तुरंत फ़ायदा होगा। दांत के दर्द के रोगी को दिन में ३-४ बार एक लौंग मुंह में रखकर चूसने की सलाह दी जाती है।

९) नमक मिले गरम पानी के कुल्ले करने से दंतशूल नियंत्रित होता है। करीब ३०० मिलि पानी मे एक बडा चम्मच नमक डालकर तैयार करें।दिन में तीन बार कुल्ले करना उचित है।

१०) पुदिने की सूखी पत्तियां  पीडा वाले दांत के चारों ओर  रखें। १०-१५ मिनिट की अवधि तक रखें। ऐसा दिन में १० बार करने से लाभ मिलेगा।

११) दो ग्राम हींग नींबू के रस में पीसकर पेस्ट जैसा बनाले। इस पेस्ट  से दंत  मंजन करते रहने से दंतशूल का निवारण होता है।

१२। मेरा अनुभव है कि विटामिन सी ५०० एम.जी. दिन में दो बार और केल्सियम ५००एम.जी दिन में एक बार लेते रहने से दांत के कई रोग नियंत्रित होंगे और दांत भी मजबूत बनेंगे।

१३)  मुख्य बात ये है कि  सुबह-शाम दांतों की स्वच्छता करते रहें। दांतों के बीच की ्जगह में अन्न कण फ़ंसे रह जाते हैं और उनमें जीवाणु पैदा होकर दंत विकार उत्पन्न करते हैं।

१४) शकर का उपयोग हानिकारक है। इससे दांतो में जीवाणु पैदा होते हैं। मीठी वसुएं हानिकारक हैं। लेकिन कडवे,ख्ट्टे,कसेले स्वाद के पदार्थ दांतों के लिये हितकर होते है। नींबू,आंवला,टमाटर ,नारंगी का नियमित उपयोग  लाभकारी है। इन फ़लों मे जीवाणुनाशक तत्व होते हैं। मसूढों से अत्यधिक मात्रा में खून जाता हो तो नींबू का ताजा रस पीना  लाभकारी है।

१५) हरी सब्जियां,रसदार फ़ल भोजन में प्रचुरता से शामिल करें।

१६)  दांतों की  केविटी में दंत चिकित्सक केमिकल मसाला भरकर इलाज करते हैं। सभी प्रकार के जतन करने पर भी दांत की पीडा शांत न हो तो दांत उखडवाना ही आखिरी उपाय है।

सोमवार, 30 मई 2011

लू और गर्मी से कैसे बचें?


ग्रीष्म ऋतु में जैसे-जैसे गरमी बढ़ती जाती है लोग लू का शिकार होने लगते हैं। बढ़ती गरमी से शरीर को बचाना आवश्यक हो जाता है। इस ऋतु में बाहर के तेज तापमान और लू से शरीर की हिफाजत करने के लिये पर्याप्त सावधानी बरतना जरूरी हो जाता है। निम्न छोटे-छोटे उपायों द्वारा शरीर को गरमी के कहर से बचाकर तरोताजा रखा जा सकता है।

* मौसम के अनुकूल वस्त्र पहनें। हल्के फुल्के खुले व सूती या खादी वस्त्र इस मौसम में हितकर होते हैं। हल्के रंग की ही वस्त्र इस्तेमाल करें।
* धूप में ज्यादा बाहर न निकलें। अति आवश्यक होने पर ही बाहर जाएं अन्यथा न जाएं।
* धूप में बाहर जाने से पहले पर्याप्त मात्रा में पानी पी लें।
* इन दिनों कमजोरी मालूम होने पर एक लीटर पानी में एक छोटा चम्मच नमक, दो चुटकी मीठा सोडा, जरा सा नींबू रस और चीनी मिला घोल बनाकर पिये रसीले फल और शाक सब्जियों का सेवन करें। इससे शरीर में पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी नहीं होगी। दिन भर पानी और दूसरे पेय पदार्थ खूब सेवन करें।
* शिकंजी, कच्चे आम से बना अमरस, नींबू-पानी, पुदीने की चटनी, कच्चे प्याज का रस, छाछ, लस्सी व प्राकृतिक रसों से बने शरबत आदि के सेवन से बहुत ही राहत मिलती है।
* सिर पर साफा बांधें या टोपी पहनें। सुबह शाम ठंडे पानी से स्नान करें। इससे शरीर को ठंढक मिलती है।
* यदि किसी को लू लग जाय तो उसके शरीर पर ठंडे जल की पट्टियां रखे और पंखा चला दें।
* यदि उपरोक्त बातों को अमल में लायेंगे तो आप निश्चिय ही भीषण गर्मी में भी अपने को तरोताजा रख सकेंगे।

घरेलू औषधि भी है धनिया



धनिये का प्रयोग भोज्य पदार्थ बनाने में मसाले के रूप में किया जाता है। धनिया सिर्फ मसाले के योग्य नहीं होता बल्कि इसका प्रयोग अनेक बीमारियों में औषधि के रूप में भी किया जाता है। आयुर्वेद शास्त्र में महर्षि चरक एवं महर्षि सुश्रुत ने धनिये के अनेक औषधीय प्रयोगों का वर्णन किया है। आयुर्वेद के प्रसिध्द ग्रंथ ‘भाव प्रकाश’ में भी धनिये के अनेक प्रयोग बताये गये हैं। आयुर्वेदज्ञों के अनुसार धनिया त्रिदोषहर, शोधहर, कफध्न, ज्वरध्न, मूत्रजनक एवं मस्तिष्क को बल प्रदान करने वाला होता है।
यूनानी मतानुसार देशी धनिया दूसरे दर्जे में शीत एवं रूक्ष होता है जबकि नेपाली धनिया दूसरे दर्जे में रूक्ष एवं उष्ण होता है। इसको सूंधना एवं खाना मस्तिष्क एवं हृदय दोनों के लिए बलदायक होता है। यह शीतल होता है अत: आमाशय एवं यकृत दोनों को ही शक्ति प्रदान करता है, पाचन शक्ति को बढ़ाता है तथा वायु उत्सर्ग करता है। मुख-पाक की बीमारी में इसके स्वरस से कुल्ला करने पर लाभ होता है। आयुर्वेद की औषधि के रूप में मुख्ययोग तुम्बर्वादि चूर्ण, धान्य-पंचक, धान्यचतुष्क, धान्यकादिहिम आदि प्राप्त होते हैं। हरी महक वाली पत्ती तथा सूखे धनियों के बीच का औषधीय प्रयोग परम्परागत रूप में निम्नानुसार किया जाता है-
* सामान्य त्वचा रोगों तथा मौसम के बदलाव पर यदि खुजली होती हो तो उस स्थान पर हरे धनिया को पीसकर लगाने से खुजली दूर हो जाती है।
* अगर पेशाब रूक-रूककर आ रहे हों तो दो चम्मच धनिया चूर्ण को पानी में अच्छी तरह उबालकर पी लेने पर पेशाब खुलकर आने लगता है।
* कमजोरी या अन्य कारणों से चक्कर आने पर धनिया पाउडर दस ग्राम तथा आंवले का पाउडर दस ग्राम लेकर एक गिलास पानी में भिगोकर रख दें। सुबह अच्छी तरह मिलाकर पी लें। इससे चक्कर आने बंद हो जाते हैं।
* पित्त बढ़ जाने पर हरी-पीली उल्टियां आनी शुरू हो जाती हैं। इस अवस्था में हरे धनिया का रस निकालकर उसमें गुलाब जल मिलाक पिलाने से लाभ होता है।
* सूखा धनिया पाउडर एक ग्राम, हरे धनिया का रस एक चम्मच, धनिया पत्ती का रस एक चम्मच तथा शहद एक चम्मच मिलाकर पीते रहने से पुरुष की स्तम्भन शक्ति बढ़ती है तथा वीर्य गाढ़ा होता है।
* पेशाब के साथ अगर खून का अंश आता हो तो सूखे धनिये का काढ़ा बनाकर एक कप की मात्रा में दिन में तीन बार पीजिये। इसमें स्वाद के अनुसार काला नमक मिलाया जा सकता है।
5 अगर बच्चा तुतलाता हो तो हरा धनिया पीसकर पर्याप्त पानी डालकर छान लें। इसमें आधा चम्मच भुनी फिटकरी मिलाकर कुछ दिनों तक कुल्ली करवायें। इस विधि से बच्चे का तुतलाना ठीक हो सकता है।
* शरीर के भीतर किसी भी अंग में मीठी खुजली (सबसबाहट) चल रही हो तो ताजे हरे धनिया को पीसकर उस अंग में लगाने से खुजली दूर होती जाती है।
* गर्मी के कारण कोई भी उपद्रव होने पर सुबह-शाम पिसी धनिये की फक्की एक-एक चम्मच लेते रहना चाहिए।
* बच्चा अगर बहुत ज्यादा तुतलाता हो तो 30 ग्राम धनिये का पाउडर तथा दस ग्राम अमलतास का गूदा लेकर दोनों का काढ़ा बना लें। इस काढ़ा से दो माह तक लगातार सुबह-शाम कुल्ला (गरारा) कराइये। निश्चित ही तुललाना कम होगा।
* पित्त बढ़ जाने से जी मिचलाना रहता हो तो हरा धनिया पीसकर उसका ताजा रस दो चम्मच की मात्रा में पिलाने से लाभ होता है। भोजन में हरे धनिये की ताजी पिसी चटनी का प्रयोग करते रहने से भी जी मिचलाना कम होता है।
* धनिये की हरी पत्तियों को लहसुन, प्याज, गुड़, इमली, अमचूर, आंवला, नींबू, पुदीना आदि के साथ बारीक पीसकर चटनी के रूप में खाते रहने से पाचन क्रिया दुरुस्त बनी रहती है तथा भूख खूब लगती है।

शनिवार, 28 मई 2011

नुस्खे सांप के काटने पर



  • सौ गा्रम प्याज के रस में, चौबीस ग्राम सरसों का तेल मिलाकर, आधे-आधे घंटे बाद रोगी को तीन  खुराक पिला दें। सांप काटे का जहर उतर जाएगा। कटी जगह पर पोटाश परमैग्नेट भर दें और तत्काल डॉक्टर को दिखाएं।
  • सांप के काटने पर, इमली के बीज क ो पानी में घिसकर दंशित स्थान पर चिपका दें।
  • सांप के काटने पर तुरंत कागजी नींबू के तीन ग्राम बीज को पानी के साथ बारीक पीसकर पतला ही  

शुक्रवार, 27 मई 2011

इस गोल की पोल में छुपे हैं कई चमत्कारी गुण


अभी हाल ही में हुई एक अंतर्राष्ट्रीय शोध में पता चला है कि सूखे मेवे के रूप में मशहूर गोले यानी नारियल के तेल में बड़े ही चमत्कारी औषधीय गुण पाए जाते हैं। यह तेल मधुमेह, एल्जिमर, हार्ट अटेक, मिर्गी...जैसे घातक रोगों को दबाने में बेहद कारगर हो सकता है।


खोज के अनुसार यह तेल बिना पित्त के ही पचने लगता है जबकि अन्य तेल अमाशय में पित्त के साथ मिल कर पचना शुरू होते हैं। नारियल-तेल बिना पित्त के सीधा लीवर में पहुंच जाता है और वहां से रक्त प्रवाह में और स्नायु कोशों में 'कैटोंन बोडीज़ के रूप में पहुच कर ऊर्जा कि पूर्ति करता है।

यह 'कैटोंन बोडीज़ अत्यंत शक्तिशाली ढंग से नवीन कोशों का निर्माण करती हैं जिस के कारण शर्करा, इंसुलिन आदि की ज़रूरत ही नहीं रह जाती। मधुमेह रोगी को किसी की प्रकार दवा की आवश्यक नहीं रहती। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी बढ़कर पूरी तरह से काम करने लगती है जिसके कारण सभी रोग धीरे-धीरे अपने आप ठीक होने लगते हैं।

केवल मधुमेह ही नहीं एल्जि़मर, मिर्गी, अधरंग, हार्ट अटैक, चोट आदि के कारण नष्ट हो चुके कोष भी फिर से बनने लगते हैं तथा ये लाइलाज समझे जाने वाले रोग भी ठीक होने लगते हैं।

प्रयोग विधि:

दवाई के रूप में एक दिन में लगभग 45 मि.ली. नारियल तेल का प्रयोग किया जाना चाहिये। शुरुआत केवल एक चम्मच से करते हुए धीरे-धीरे मात्रा बढानी चाहिए अन्यथा हाजमा बिगड़ सकता है। दाल, सब्जी में कच्चा डालकर या तड़के के रूप में इसका प्रयोग किया जा सकता है। गर्मियों में ध्यान रखना चाहिये कि इसके अधिक प्रयोग से शरीर में गर्मी न बढ़ जाए।

गुरुवार, 26 मई 2011

छोटी-छोटी पत्तियों से घरेलू उपचार



. वृक्षों की पत्तियां अनेक गुणों से परिपूर्ण हुआ करती है। प्रकृति द्वारा प्रदत्त ये पतियां न सिर्फ हरियालियां ही देती हैं, बल्कि इन पत्तियों में स्वास्थ्य रक्षा के अनेक सूत्र भी छिपे होते हैं। पतियों में पाए जाने वाले चमत्कारी गुणों को इस प्रकार जाना जा सकता है-

अमरूद की पतियां : अमरुद के पत्तों को कूटकर, लुगदी बनाकर उसे गर्म करके लगाने से गठिया की सूजन दूर हो जाती है। अमरुद के पत्तों को पीसकर उसका रस निकालकर उसमें स्वादानुसार चीनी मिलाकर नित्य पीते रहने से स्वप्नदोष की बीमारी में लाभ होता है। अमरूद की ताजी पत्तियों का रस 10 से 20 मि.ली तक नित्य सुबह-शाम पीने से ल्यूकोरिया नामक बीमारी में अप्रत्याशित लाभ पहुंचाता है।
चम्पा की पत्तियां : चम्पा फूल की पत्तियों को पीसकर उसमें बराबर मात्रा में पानी मिलाकर पीने से पित्त विकार, रक्त विकार एवं पेट के कृमियों में अत्यंत लाभ होता है। इसकी पत्तियों को चबाकर रस चूसने से दांत की कीड़े नष्ट हो जाते हैं तथा पायरिया रोग में लाभ होता है।

अंजीर की पत्तियां : अंजीर के पत्तियों के रस के सेवन से रक्तिपित्त, रक्तिविकार, वायुविकार आदि का नाश होता है तथा शरीर पुष्ट होता है। श्वेत कुष्ठ वाले स्थान पर अंजीर के पत्तों की लुगदी नित्य बदल-बदल कर लगाते रहने से लाभ होता है।

बनफ्सा की पत्तियां : बनफ्सा की पत्तियों को थकूच कर लुगदी बना लें और उसे घाव, सूजन, पर बांधने से तथा उसका काढ़ा बनाकर पीने से बुखार व मूत्र रोगों में फायदा होता है।

अन्नास की पत्तियां : अनन्नास की सफेद पत्तियों के ताजे रस में चीनी मिलाकर सेवन करने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। यह विरेचन का काम भी करता है। इसके रस को अधिक मात्रा में पीने से उल्टियां हो सकती हैं।

चिरयता की पत्तियां : ज्वर में चिरयता की पतियों को पीने से लाभ होता है। इसकी पत्तियों को पानी के साथ गर्म करके काढ़ा बनाकर पीने से ज्वर में तथा पत्तियों को भिंगोकर उसके पानी को छानकर पीने से रक्त में स्थित दोष समाप्त हो जाते हैं।

चौलाई की पत्तियां : चौलाई की पत्तियों को पानी के साथ उबालकर उस पानी में नमक डालकर पीने से पेट दर्द या दस्त साफ न आने में लाभ होता है। पिपरमेंट की पत्तियों के रस को सूंघने से सर्दी, सिरदर्द व जुकाम में अत्यन्त लाभ पहुंचाता है।

अडूसा की पत्तियां : अडूसा की 3-4 पतियों को पीसकर उसका रस निकाल लें। रस में बराबर मात्रा में शहद मिलाकर दिन में तीन बार चाटने पर खांसी से आराम मिल जाता है। लहसुन के पत्तों को पीसकर दाद पर लगाते रहने से आराम होता है। नींबू की पत्तियों के रस को फोड़े फुंसियों पर लगाते रहने से वे ठीक हो जाते हैं।

अनार की पत्तियां : अनार की ताजी पत्तियों के साथ काली मिर्च (गोलकी) को पीसकर इसे 100 ग्राम पानी में मिलाकर सुबह-शाम पीते रहने से महिलाओं की बीमारी श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) में अप्रत्याशित लाभ होता है।

आम की पत्तियां : आम के पत्तों की भस्म जले हुए स्थान पर नारियल तेल में मिलाकर लगाने से आराम होता है। आम के पत्तियों को थकूच कर पानी में डालकर काढ़ा बनाकर पीते रहने से प्रदर की परेशानियों से मुक्ति मिलती है। इसमें स्वादानुसार चीनी मिलायी जा सकती है।

बिल्व पत्र : बेल के पत्तों को पानी में पीसकर माथे पर लेप करने से मस्तिष्क की गर्मी शांत होती है तथा नींद खूब आती है। बेल की पत्तियां 15 नग, बादाम की गिरियां 2 नग तथा मिश्री 250 ग्राम को मिलाकर, पीसकर आंच पर पका लें। जब शर्बत की तरह बन जाये तो उतार कर ठंडा करके पीते रहने से एक माह के अंदर ही नपुसंकता दूर हो जाती है। मंद आंच पर बेल की पत्तियों को भूनकर बारीक पीसकर कपड़े से छान लें और शीशी में भरकर रख लें। 1 ग्राम की मात्रा में प्रात: सायं शहद के साथ मिलाकर चाटते रहने से कुक्कुर खांसी (हूपिंग कफ) में आराम मिलता है।

पपीते की पत्तियां : पपीते के पत्तों को कूटकर उनकी लुगदी बना लें। इसे हाथीपाव (फिलपांव) नामक बीमारी पर बांधते रहने से धीरे-धीरे उसकी सूजन कम होकर ठीक होने लगती है।

कैंसर रूपी काल का भी काल है यह धार्मिक पौधा!!!

तुलसी का पौधा कितना अनमोल है, यह इसी बात से पता चल जाता है कि इसे गुणों को देखकर इसे भगवान की तरह पूजा जाता है। यूं तो आज हर आदमी को किसी न किसी बीमारी ने अपने कब्जे में कर रखा है। लेकिन केंसर एक ऐसी बीमारी है जो लाइलाज कही जाती है।  अभी तक इस बीमारी का कोई परमानेंट इलाज नहीं है। आज यह बीमारी तेजी से फैल रही है। वैसे तो केंसर का कोई परमानेंट इलाज नहीं है लेकिन फिर भी आर्युवेद ने तुलसी को केंसर से लडऩे का एक बड़ा तरीका बताया है। आर्युवेद में बताया गया है कि तुलसी की पत्तियों के रोजाना प्रयोग से केंसर से लड़ा जा सकता है। और इसके लगातार प्रयोग से केंसर खत्म भी हो सकता है।

- कैंसर की प्रारम्भिक अवस्था में रोगी अगर तुलसी के बीस पत्ते थोड़ा कुचलकर  रोज पानी के साथ निगले तो इसे जड़ से खत्म भी किया जा सकता है।

-तुलसी के बीस पच्चीस पत्ते पीसकर एक बड़ी कटोरी दही या एक गिलास छाछ में मथकर सुबह और शाम पीएं कैंसर रोग में बहुत फायदेमंद होता है।

केंसर मरीज के लिए विशेष आहार

अंगूर का रस, अनार का रस, पेठे का रस, नारियल का पानी, जौ का पानी, छाछ, मेथी का रस, आंवला, लहसुन, नीम की पत्तियां, बथुआ, गाजर, टमाटर, पत्तागोभी, पालक और नारियल का पानी।

मोतियाबिंद


        गाजर का रस एक गिलास सुबह व शाम पीने से मोतियाबिंद में लाभ मिलता है।


        लहसुन क ो छीलकर पानी में भिगो दे। अगली सुबह खाली पेट लहसुन को खा ले और उसका पानी  पी लें इससे मोतियाबिंद ठीक हो जाता है।

बुधवार, 25 मई 2011

बालों में खुजली हो या डेंड्रफ... घरेलू नुस्खों का कमाल देखें


डेंड्रफ हमारे सिर की त्वचा में स्थित मृत कोशिकाओं से पैदा होती है। साथ ही वात संबंधी दोषों के कारण भी डेंड्रफ हो जाती है। इसकी वजह से सिर में खुजली रहती है और बाल गिरने लगते हैं। इससे निजात पाने की घरेलू टिप्स-

- नारियल के तेल में कपूर मिलाएं और यह तेल अच्छी तरह बालों में तथा सिर पर लगाएं। कुछ ही दिनों डेंड्रफ की समस्या

   से राहत मिलेगी।

- नींबू के रस को बालों में लगाएं। कुछ समय बाद सिर धो लें।

- नींबू का रस नारियल के तेल में मिलाकर लगाएं।

- दही से सिर धोएं, इससे भी डेंड्रफ से निजात मिलेगी।

  यह उपाय नियमित रूप से अपनाएं।

पायरिया


  • भुनी हुई फिटकरी और अकरकरा को सिरके में मिला लें या बारीक पीसकर रख लें। इस मंजन से    दांत साफ करने से पायरिया रोग में आराम मिलता है।

  •        आंवला जला कर भस्म कर लें। उसमें थोड़ा सा नमक मिलाकर सरसों के तेल के साथ मंजन करने से पायरिया रोग  दूर हो जाता है।

सोमवार, 23 मई 2011

मुंह में छाले हों तो


मुंह में छाले हों तो

मुंह में छाले हों तो त्रिफला के कुल्ले करें l

हड्डी टूटने पर

जिसकी हड्डियाँ कमज़ोर हों या हड्डी टूट गयी हो , वो लहसुन की कलियाँ, घी में सेंक कर लें , तो हड्डी जल्दी जुड़ेगी l  अथवा  गेंहू सेंक लें और पीस के वो आटा, शहद के साथ मिलाकर लें तो हड्डी जल्दी जुड़ेगी l

मोटापा हो तो ..

मोटापा हो तो गर्म पानी में १ पके बड़े नींबू का रस और शहद मिलाकर भोजन के तुरंत बाद पियें l
छाछ में तुलसी के पत्ते लेने से भी मोटापे में आराम होता है l 

वजन बढ़ाना हो तो ..

वजन बढ़ाना हो तो रात को भैंस के दूध में चने भिगोकर सुबह चबा चबा कर खाएं l  खजूर व किशमिश खाएं . इससे वज़न बढेगा l 

शरीर टूटने पर, और जोड़ो के दर्द में

शरीर टूटता हो, जोड़ों का दर्द हो तो भोजन के आखिरी ग्रास में १/४ चम्मच अजवाइन मिलाकर, हनुमान जी का सुमिरन करके "नासे रोग हरे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमंत बीरा" करके वो ग्रास चबाएं l  शरीर टूटने व जोड़ों के दर्द में आराम होगा l   

लकवे में ये करें

  लकवा मार गया हो तो शहद के साथ लहसुन पीस के चाटें l  लकवे में आराम होगा l

चैन की नींद के लिए

चैन की नींद न आती हो, तो सिरहाने की तरफ कपूर जलाकर "" का गुंजन करें l सुबह -शाम जलाने से वायु दोष दूर होगा, लक्ष्मी प्राप्ति होगी, बुरे सपने नहीं आयेंगे l 

बेल से घरेलू उपचार


बिल्वफल अर्थात् बेल का मूल वतन भारत ही है। अति प्राचीन काल से इसकी गणना औषधि के रूप में होती आ रही है। आकार की दृष्टि से यह गोल कैथ (कपित्थ) से मिलता-जुलता है। यह साधारण गेंद के समान होता है। हिमालय की तराई, मध्य एवं दक्षिण भारत, बिहार, बंगाल आदि प्रान्तों में बेल के वृक्ष बहुतायत मात्रा में पाये जाते हैं।


बिल्व का गूदा, पत्ता, जड़, छाल आदि औषधि के लिए उपयोगी माना जाता है। छोटे कच्चे बेल के फल को छीलकर, गोल-गोल कतरेनुमा टुकड़े काटकर सुखाकर मुखरबंद डिब्बों में संग्रह करके रखा जाता है। इसका उपयोग वैद्य लोग सालों भर तक औषधि के रूप में किया करते हैं। प्रयोग हेतु जंगली फलों का ही संग्रह करके रखा जाना उत्तम माना जाता है।
सेवन की दृष्टि से बेल का चूर्ण तीन ग्राम से छह ग्राम तक ही लेना उचित होता है। रस एक तोला से एक ग्राम तक ही सेवनीय होता है।

औषधीय प्रयोग : बिल्वपत्र के औषधीय गुणों का कारण उसमें स्थित ‘टॉनिन’ होता है। पाचन की तकलीफों और पुरानी पेचिश के लिए बिल्वफल के रस के समान अन्य कोई उपाय नहीं होता। इसका रस पौष्टिक होता है तथा रक्त विकार को भी दूर करता है।
बेल आमातिसार (बादी दस्त) तथा खूनी दस्त (रक्तातिसार) की अचूक औषधि है। दस्त, संग्रहणी (पेचिश), गर्भवती का वमन, बच्चों के दांत निकलते समय का दस्त, कब्ज, समज्वर, रक्तहीनता (एनीमिया), बहुमूत्र, प्रदर (ल्यूकोरिया), हैजा, मस्तिष्क की गर्मी, नपुंसकता, कुकर खांसी, फोड़ा, कंठमाला, रतौंधी, बहरापन, वायु गोला आदि का सफल चिकित्सक हैं। मच्छर-मक्खी भगाने के लिए भी बेल एक सस्ती दवा है।
रक्तहीनता का प्रयोग ः कमजोरी की अवस्था में खून की मात्रा शरीर में कम होने पर बेलगिरी का चूर्ण 5 ग्राम चीनी मिले हुए दूध के साथ दिन में चार बार तक खाने से एनीमिया दूर होता है।
बहुमूत्र पर प्रयोग : पेशाब के जल्दी-जल्दी आने पर दस ग्राम बेलगिरी और पांच ग्राम सोंठ को 

कूटकर रख लें। चार सौ ग्राम पानी में इसका (काढ़ा) बनाइए। जब पानी का आठवां भाग बाकी रह जाए तो उतार कर पांच ग्राम की मात्रा में रोगी को दिन में तीन बार तक पिलाइए।
कुक्कुर खांसी पर प्रयोग : बिल्व की हरी पत्तियों को गर्म तवे पर रख दीजिए। जब वे भुनकर काले रंग के हो जाएं तो उन्हें पीसकर कपड़छन कर लीजिए। फिर इसे शीशी में भरकर रख लीजिए। प्रात: दोपहर तथा सायं एक से 2 ग्राम तक शहद के साथ चाटने से हठीली से हठीली कुक्कुर खांसी एक सप्ताह के अन्दर (कभी-कभी एक ही दिन में) समाप्त हो जाती है।
रतौंधी पर प्रयोग : यह आंखों की बीमारी है। शाम होते ही दिखाई देना बन्द हो जाता है। बेल के ताजे पत्ते दस ग्राम, काली मिर्च सात दाने, पानी सौ ग्राम तथा चीनी (खांड) 25 ग्राम ले लें। बेल के पत्तों को खूब पीस लें। फिर उसमें काली मिर्च डालकर पीस लें। उसमें चीनी डालकर शरबत की तरह प्रात: सायं पिएं। बेल के पत्तों को रात में पानी में भींगने के लिए छोड़ दें। इसी पानी से प्रात: काल आंखों को धोएं। इस प्रकार करने से आंखों की रतौंधी 

रविवार, 22 मई 2011

गर्मी में रहना है कूल तो अपनाएं यह चमत्कारी फंडा


आज पूरी दुनिया में योग की धूम मची हुई है। वह समय चला गया जब योग को हिन्दू धर्म की उपासना पद्धति मानकर अन्य धर्मों के लोग इससे मुंह फेर लेते थे। लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है। विज्ञान ने भी अब योग को एकर वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति मानकर इसकी प्रामाणिकता पर मुहर लगा दी है।






गर्मियों की लगभग शुरुआत हो चुकी है। बारिश और ठंड की बजाय गर्मियों का सीजन सभी के लिये ज्यादा कठिन और पीड़ादायक होता  है। योग में एक ऐसी क्रिया है, जिसे करने मात्र 5 से 7 मिनिट लगते हैं तथा इसके करने से गर्मी में भारी राहत मिलती है। यह क्रिया है-शीतली प्राणायाम। आइये देखें इस योगिक क्रिया को कैसे किया जाता है-






शीतली प्राणायाम: पद्मासन में बैठकर दोनों हाथों से ज्ञान मुद्रा लगाएं। होठों को गोलाकार करते हुए जीभ को पाइप की आकृति में गोल बनाएं।






अब धीरे-धीरे गहरा लंबा सांस जीभ से खींचें। इसके बाद जीभ अंदर करके मुंह बंद करें और सांस को कुछ देर यथाशक्ति रोकें। फिर दोनों नासिकाओं से धीरे-धीरे सांस छोड़ें। इस क्रिया को 20 से 25 बार करें।






प्रतिदिन शीतली प्राणायाम करने से अधिक गर्मीं के कारण पैदा होने वाली बीमारियां और समस्याएं नहीं होती। लू लगना, एसिडिटी, आंखों और त्वचा के रोगों में तत्काल आराम मिलता है।

शनिवार, 21 मई 2011

गैस की शिकायत का समाधान



गैस की शिकायत दूर करने के लिए कब्ज और अपच दूर करना जरूरी है, क्योंकि इसी से गैस बनती है और गैस से सारी बीमारियाँ होती हैं। 


चिकित्सा : सौंठ, पीपल, काली मिर्च, अजमोद या अजवाइन, सेंधा नमक, सफेद जीरा, काला जीरा और भुनी हुई हींग इन सबको समान मात्रा में कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें।इस चूर्ण को आधा चम्मच मात्रा में लेकर समभाग घी मिलाकर भोजन के साथ खाने से मंदाग्नि, अपच दूर होता है, वात प्रकोप शांत होता है, इसे 8 दिन लगातार लेने से इस समस्या से निजात मिलती है। 

दूसरा नुस्खा : अजवायन और काला नमक पीस कर समान मात्रा में मिला लें। इस चूर्ण को एक चम्मच मात्रा में गर्म पानी से लेने से अधोवायु निकल जाती है और गैस का प्रकोप शांत हो जाता है, पेट पर सेक करने से भी लाभ होता है

शुक्रवार, 20 मई 2011

बेल से घरेलू उपचार



बिल्वफल अर्थात् बेल का मूल वतन भारत ही है। अति प्राचीन काल से इसकी गणना औषधि के रूप में होती आ रही है। आकार की दृष्टि से यह गोल कैथ (कपित्थ) से मिलता-जुलता है। यह साधारण गेंद के समान होता है। हिमालय की तराई, मध्य एवं दक्षिण भारत, बिहार, बंगाल आदि प्रान्तों में बेल के वृक्ष बहुतायत मात्रा में पाये जाते हैं।
बिल्व का गूदा, पत्ता, जड़, छाल आदि औषधि के लिए उपयोगी माना जाता है। छोटे कच्चे बेल के फल को छीलकर, गोल-गोल कतरेनुमा टुकड़े काटकर सुखाकर मुखरबंद डिब्बों में संग्रह करके रखा जाता है। इसका उपयोग वैद्य लोग सालों भर तक औषधि के रूप में किया करते हैं। प्रयोग हेतु जंगली फलों का ही संग्रह करके रखा जाना उत्तम माना जाता है।
सेवन की दृष्टि से बेल का चूर्ण तीन ग्राम से छह ग्राम तक ही लेना उचित होता है। रस एक तोला से एक ग्राम तक ही सेवनीय होता है।
औषधीय प्रयोग : बिल्वपत्र के औषधीय गुणों का कारण उसमें स्थित ‘टॉनिन’ होता है। पाचन की तकलीफों और पुरानी पेचिश के लिए बिल्वफल के रस के समान अन्य कोई उपाय नहीं होता। इसका रस पौष्टिक होता है तथा रक्त विकार को भी दूर करता है।
बेल आमातिसार (बादी दस्त) तथा खूनी दस्त (रक्तातिसार) की अचूक औषधि है। दस्त, संग्रहणी (पेचिश), गर्भवती का वमन, बच्चों के दांत निकलते समय का दस्त, कब्ज, समज्वर, रक्तहीनता (एनीमिया), बहुमूत्र, प्रदर (ल्यूकोरिया), हैजा, मस्तिष्क की गर्मी, नपुंसकता, कुकर खांसी, फोड़ा, कंठमाला, रतौंधी, बहरापन, वायु गोला आदि का सफल चिकित्सक हैं। मच्छर-मक्खी भगाने के लिए भी बेल एक सस्ती दवा है।
रक्तहीनता का प्रयोग ः कमजोरी की अवस्था में खून की मात्रा शरीर में कम होने पर बेलगिरी का चूर्ण 5 ग्राम चीनी मिले हुए दूध के साथ दिन में चार बार तक खाने से एनीमिया दूर होता है।
बहुमूत्र पर प्रयोग : पेशाब के जल्दी-जल्दी आने पर दस ग्राम बेलगिरी और पांच ग्राम सोंठ को कूटकर रख लें। चार सौ ग्राम पानी में इसका (काढ़ा) बनाइए। जब पानी का आठवां भाग बाकी रह जाए तो उतार कर पांच ग्राम की मात्रा में रोगी को दिन में तीन बार तक पिलाइए।
कुक्कुर खांसी पर प्रयोग : बिल्व की हरी पत्तियों को गर्म तवे पर रख दीजिए। जब वे भुनकर काले रंग के हो जाएं तो उन्हें पीसकर कपड़छन कर लीजिए। फिर इसे शीशी में भरकर रख लीजिए। प्रात: दोपहर तथा सायं एक से 2 ग्राम तक शहद के साथ चाटने से हठीली से हठीली कुक्कुर खांसी एक सप्ताह के अन्दर (कभी-कभी एक ही दिन में) समाप्त हो जाती है।
रतौंधी पर प्रयोग : यह आंखों की बीमारी है। शाम होते ही दिखाई देना बन्द हो जाता है। बेल के ताजे पत्ते दस ग्राम, काली मिर्च सात दाने, पानी सौ ग्राम तथा चीनी (खांड) 25 ग्राम ले लें। बेल के पत्तों को खूब पीस लें। फिर उसमें काली मिर्च डालकर पीस लें। उसमें चीनी डालकर शरबत की तरह प्रात: सायं पिएं। बेल के पत्तों को रात में पानी में भींगने के लिए छोड़ दें। इसी पानी से प्रात: काल आंखों को धोएं। इस प्रकार करने से आंखों की रतौंधी जाती रहती है।

पेट की हर बीमारी के लिए रामबाण है यह नुस्खा

चिकित्सा के क्षेत्र में दुनिया ने काफी तरक्की कर ली है। लेकिन आज भी स्वास्थ्य कि क्षेत्र में प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद और योग को सर्वाधिक भरोसेमंद और अचूक माना जाता है।  ऐलोपैथिक दवाइयां रोग के लक्षणों को दबाती और नष्ट करती है, जबकि प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद और योग का लक्ष्य बीमारी को दबाना नहीं बल्कि शरीर को अंदर से मजबूत करके हर बीमारी को जड़ से मिटाना होता होता है। आयुर्वेद के अंतर्गग नीबू के प्रयोग को बेहद फायदेमंद और गुणकारी माना गया है।



नीबू में ऐसे कई दिव्य गुण होते हैं जो पेट संबंधी अधिकांस बीमारियों को दूर करने में बेहद कारगर होता है। खुल कर भूख न लगना, कब्ज रहना, खाया हुआ पचाने में समस्या आना, खट्टी डकारें आना, जी मचलाना, एसिडिटी होना, पेट में जलन होना....ऐसी ही कई बीमारियों में नीबू का प्रयोग बहुत फयदेमंद और कारगर सिद्ध हुआ है।



सावधानियां



 - निबू की तासीर ठंडी मानी गई है, इसलिये शीत प्रकृति के लोगों को इसका प्रयोग कम मात्रा में ही करना चाहिये।



 -जहां तक संभव हो नीबू का प्रयोग दिन में ही करना चाहिये, शाम को या रात में प्रयोग करने से सर्दी-जुकाम होने की  संभावना रहती है।



- व्यक्ति अगर किसी अन्य बीमारी से ग्रसित हो तो उसे किसी जानकार आर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श के बाद ही नीबू  का सेवन करना चाहिये।

गुरुवार, 19 मई 2011

आधे सिर का दर्द अब चुटकियों में होगा छूमंतर


अक्सर लोग सिर दर्द की समस्या से परेशान रहते हैं, लेकिन कुछ लोगों ऐसे हैं जिनके लिए अक्सर होने वाला आधाशीशी का दर्द बडी परेशानी बन गया है। नीचे बताए जा रहे कुछ आयुर्वेद के उपायों से आप इस समस्या से हमेशा के लिए छुटकारा पा सकते हैं।

1. गाय का ताजा घी सुबह शाम दो चार बूंद नाक में डालने से टपकाने से आधाशीशी का दर्द हमेशा के लिए जड़ से खत्म हो जाता है।

2. सिर के जिस भाग में दर्द हो रहा हो उस तरफ  के नथुने में चार पांच बूंद सरसों के तेल की डालने से या तेल को सूंघने से आधासिर दर्द बन्द हो जाता है।

विशेष: इस विधि को अपनाने से नाक से खून आने(नकसीर) की समस्या भी दूर हो जाती है।

सावधानी: यह प्रयोग आयुर्वेद के किसी अनुभवी जानकार की देखरेख में करना ज्यादा सुरक्षित रहता है।

बुधवार, 18 मई 2011


कैंसर की रामबाण औषधि सर्वपिष्टी

चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत प्राचीनकाल से ही अग्रणी रहा है। हमारे देश में विकसित विभिन्न प्रकार की चिकित्सा पध्दतियां एवं औषधियां कई असाध्य रोगों के इलाज में कारगर साबित हुई है। महर्षि चरक संभवत: पहले चिकित्सक थे। जिन्होंने पाचन चयापचय और शरीर प्रतिरक्षा की अवधारणा दी। उन्होंने वात, पित्त और कफ के दोष के आधार पर शरीर के विभिन्न रोगों की व्याख्या की। ये दोष तब उत्पन्न होते हैं, जब हमारा चयापचय खाये हुए भोजन पर प्रतिक्रिया करता है। एक ही मात्रा में ग्रहण किया गया भोजन अलग-अलग शरीर में भिन्न-भिन्न प्रकार के दोष उत्पन्न कर सकता है।
बीमारी तब उत्पन्न होती है जब मानव शरीर में मौजूद तीनों दोष असंतुलित हो जाते हैं। इनके संतुलन को फिर से कायम करने के लिये महर्षि चरक विभिन्न प्रकार की औषधियां बतते थे, जो आज भी हमारे आयुर्वेद का आधार बनी हुई हैं। उन्होंने जिन औषधियों को अपनी चिकित्सा पध्दति का आधार बनाया, उनसे से अधिकांश भोज्य पदार्थ नहीं है। इस अवधारणा के विपरीत भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिकों ने लाइलाज बीमारी कैंसर की दवा खाद्य पदार्थों से ही तैयार करने का करिश्मा कर दिखाया है।
आज विश्व की आबादी का एक बड़ा हिस्सा कैंसर बीमारी से पीड़ित है, और सबसे चिंताजनक बात तो यह है कि हर साल इसमें लाखों की संख्या में औसतन वृध्दि हो रही है। ऐसे समय में भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिकों के प्रयास से कैंसर रोगियों में आशा की एक नयी किरण जागी है। वाराणसी स्थित डी.एस. रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों द्वारा इजाद की गयी इस औषधि का नाम ‘सर्वपिष्टी’ है। इस औषधि से जुड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारे शरीर को पोषण खाद्य पदार्थों से ही मिलता है, इसलिए औषधि भी खाद्य पदार्थों में ही है। ‘पोषक ऊर्जा’ के सिध्दांत का प्रतिपादन कर मानव जाति के कल्याण की असीम संभावनाएं सामने आयी है। संभावना है कि यदि इस दिशा में आगे कार्य किये गये तो कैंसर की तरह अन्य बीमारियों का इलाज खोजने में सफलता हासिल होगी।
सर्वापिष्टी नामक इस औषधि के प्रयोग से हजारों कैंसर रोगियों को नया जीवन मिला है। इतने कारगर परिणाम हासिल करने के बाद भी आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिक यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि जिस कैंसर पर विजय पाने में पूरी दुनिया के वैज्ञानिक असफल रहे हैं, उस पर विशुध्द भारतीय पध्दति से विजय पायी जा चुकी है।
यह एक संयोग ही रहा कि अमेरिका में रह रहे कैंसर चिकित्सक डा.सुहद पारीख को ही कैंसर हो गया और वे हर आधुनिक चिकित्सा पध्दति को आजमाने के बाद अंत में ‘सर्वपिष्टी’ की शरण में आये और अपना जीवन बचाने में सफल हो सके।
इस दवा के प्रयोग के दो माह बाद जब उन्होंने अपनी एमआरआई दर्ज करायी तो परिणाम आश्चर्यजनक थे। हेड आफ पैंक्रियाज के सभी मास्स काफी छोटे हो गये थे और लीवर के सभी मास्स लगभग समाप्त हो गये थे। रक्त परीक्षण के बाद ट्यूमर मार्कर काफी नीचे आ गये थे। पहले ट्यूमर 2,00,000 (दो लाख) था जो घटकर 2,000 ही रह गया।
कुछ दिनों बाद हेड आफ पैंक्रियाज के मास्स भी समाप्त हो गये और डा.पारीख ने अपना खोया हुआ वजन भी वापस पा लिया।
वैज्ञानिकों का कहना है कि सर्वपिष्टी कैंसर के इलाज में रामबाण औषधि साबित हुई है। साथ ही इलाज पर होने वाले खर्च वर्तमान में मौजूद चिकित्सा पध्दतियों की तुलना में काफी कम है लेकिन कई बार रोग अधिक बढ़ जाने पर इस औषधि को काम करने के लिये समय नहीं मिल पाता है। चिकित्सक रोगी को नहीं बल्कि रोगी की जांच रिपोर्ट को देखने के बाद ही यह औषधि देते हैं।
कैंसर सहित अन्य सभी प्रकार की गंभीर बीमारियों से बचने के लिये सबसे अधिक आवश्यकता रोगी की जागरूकता की है। यदि प्रारंभिक अवस्था में ही समस्या को नजरअंदाज न किया जाय और रोग की सही पहचान हो जाये तो इलाज आसान हो जाता है।


केले से होते हैं कई उपचार

प्राकृतिक चिकित्सा में केले का विशेष महत्व है। इसका विविध प्रकार से सेवन बहुत से रोगों से छुटकारा दिलाता है।
कुछ पेचीदा रोग भी केले के सामने औंधे मुंह गिरते हैं।
* यदि सफेद पानी का रोग परेशान कर रहा हो तो रोगी को पहले दो केले खिलाएं फिर शहद मिला आधा गिलास दूध पीने को दें। प्रात: खाली पेट। साथ होने लगेगा।
* क्षय रोग में यह प्रयोग करें। केले के पेड़ का ताजा रस रोगी प्रतिदिन तीन बार भी लिया करे। यदि रस उपलब्ध न करा सकें तो कच्चा हरा केला काटकर खिलाएं। यह उपचार काफी जल्दी अच्छे परिणाम देता है।
* पेशाब रुक जाने पर केले के पौधे का रस लें। इसे चार चम्मच देसी घी में मिलाएं। इसके दो चम्मच एक बार पिलाएं। दिन में दो बार। पेशाब की रुकावट नहीं रहेंगी।
* यदि हाई ब्लडप्रेशर की शिकायत हो तो नाश्ते के बाद केले का सेवन फायदा करता है।
* कुछ व्यक्तियों को बार-बार पेशाब जाना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को एक केला, आधा कप आंवले के रस के साथ खिला दें। आंवले के रस में थोड़ी चीनी मिला लें। दो-तीन दिनों के उपचार के बाद काफी लाभ हो जाएगा।
* पेचिश की शिकायत में एक कटोरी दही लें। उसमें छिले केले के टुकड़े मिला दें। रोगी इसे दिन में तीन बार खा लें। आराम आ जाएगा।
* गैस रोग से परेशान रोगी एक पका हुआ केला ले। दूध का एक छोटा गिलास भी। थोड़ी दूध पीए, साथ में थोड़ा केला खाए। दोनों को साथ-साथ चलाएं। यह गैस रोग में तो उपयोगी है ही, अल्सर में भी ठीक रहता है।
* कुछ बच्चों को मिट्टी खाने की आदत हो जाती है। वे ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि उनके शरीर में कैल्शियम की कमी रहती है। केला तथा 5 ग्राम शहद, दोनों को साथ-साथ खिलाएं। मिट्टी खाने की आदत छूट जाएगी।
* शरीर का कोई अंग जल जाने पर, उस पर केले के खाने वाले भाग को कूटकर बांधें।
दर्द गायब हो जाएगा। कुछ दिनों तक रोज बांधें। पूरी तरह ठीक हो जाएंगे।

बॉडी मसाज से पहले इस बात का ध्यान जरूर रखें क्योंकि...

तेल मालिश करना शरीर के लिए लाभदायक होता है लेकिन इसके भी अपने नियम हैं, अगर उसे ध्यान में नहीं रखा जाए तो परेशानी खड़ी हो सकती है। शास्त्रों और आयुर्वेद में बताया गया है कि रविवार, मंगलवार और शुक्रवार को तेल की मालिश नहीं करनी चाहिए। इससे शरीर पर विपरित प्रभाव पड़ता है।



शास्त्रों के अनुसार रविवार, मंगलवार और शुक्रवार को तेल से मालिश करना मना है। इसके पीछे भी विज्ञान है।



- रविवार का दिन सूर्य से संबंधित है। सूर्य से गर्मी उत्पन्न होती है। अत: इस दिन शरीर में पित्त अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक होना स्वाभाविक है। तेल से मालिश करने से भी गर्मी उत्पन्न होती है। इसलिए रविवार को तेल से मालिश करने से रोग होने का भय रहता है।



- मंगल ग्रह का रंग लाल है। इस ग्रह का प्रभाव हमारे रक्त पर पड़ता है। इस दिन शरीर में रक्त का दबाव अधिक होने से खुजली, फोड़े फुन्सी आदि त्वचा रोग या उनसे मृत्यु होने का डर भी रहता है।



- इसी तरह शुक्र ग्रह का संबंध वीर्य तत्व से रहता है। इस दिन मालिश करने से वीर्य संबंधी रोग हो सकते हैं।



- अगर रोजाना मालिश करना हो तो तेल में रविवार को फूल, मंगलवार को मिट्टी और शुक्रवार को गाय का मूत्र डाल लेने से कोई दुष्प्रभाव नहीं होता।

मंगलवार, 17 मई 2011

कभी न होंगे नर्वस व फ्रस्टेट, गर करें ये 7 काम

हेजीटेशन यानी झिझक एक ऐसी समस्या है जो किसी के व्यक्तित्व को पूरी तरह से निखरने और खिलने नहीं देती। कई बार देखने में आता है कि योग्य और प्रतिभाशाली व्यक्ति भी अपने गुणों को अभिव्यक्त नहीं कर पाता है। मंच पर जाने से झिझकना, संकोच करना, चार लोगों के बीच बोलना पड़े तो कतराना, भीड़ के सामने से गुजरना...ये कुछ ऐसे ही अवसर हैं जिन पर हेजीटेशन का शिकार व्यक्ति बड़ी कठिनाई और असहजता का सामना करता है। ऐसे कठिन हालातों से बचने के लिये हम कुछ ऐसे उपाय कर सकते हैं, जो यकीनन कुछ ही दिनों में हमें इस समस्या से छुटकारा दिलाकर आत्मविश्वा से भर देते हैं। तो चलिये जानें कि वे अचूक उपाय कौन से हैं.....

1. नकारात्मक विचारों और दोस्तों से दूर रहें।

2. अपनी दिनचर्या नियमित रखें।

3. योग-प्राणायाम को अपनी नियमित दिनचर्या में अवश्य शामिल करें।

4. प्रतिदिन 30 मिनिट आध्यात्मिक साहित्य पढऩे के लिये रोज निकालें।

5. जल्दी सोने और सुबह जल्दी उठने की आदत डालें।

6. कोरी कल्पनाएं करने और योजनाएं बनाते रहने में समय बर्बाद करने की बजाय, एक छोटा सा ही काम करें

 पर पूरी मेहनत और जी-जान लगाकर करें।

7. सीमा से अधिक झिझक, हीनभावना, या घबराहट होने पर किसी मनोरोग विशेषज्ञ, या साइक्रेटिस्ट से सलाह लें और खुलकर अपनी समस्या बताएं।

ऊपर बताए गए उपायों को पूरी तरह से अपना लेने पर आपका आत्मविश्वास बढऩे लगेगा। जैसे प्रकाश के प्रकट होते ही अंधेरा मिट जाता है, वैसे ही आत्मविश्वास के पैदा होते ही सारे काल्पनिक डरों का अस्तित्व सदैव के लिये समात्प हो जाता है।

60 दिनों में शरीर को बनाएं बलवान और चमकदार

माना कि शरीर की बजाय गुणों का मूल्य अधिक होता है लेकिन यह भी इतना ही सच है कि इंसान की पहली पहचान उसे देखकर ही बनती है। आन्तरिक व्यक्तित्व का गुणवान होना अच्छी बात है, लेकिन इससे भी बढिय़ा बात तो तब होगी कि आप अंदर और बाहर दोनों ही स्तरों पर आकर्षक और प्रभावशाली व्यक्तित्व के मालिक बनें। तो आइये चलते हैं एक ऐसे बेहद आसान और 100 प्रतिशत असरदार आयुर्वेदिक नुस्खे की तरफ जो शर्तिया तौर पर आपके शरीर को ताकतवर, चमकदार और तेजस्वी बनाता है....

किसी प्रामाणिक और भरोसे की जगह से अश्वगंधा, विधारा, शतावरी 50-50 ग्राम लेकर पीस लें, अब इसमें 150 ग्राम मिश्री मिलाकर रोज प्रात: एक चम्मच चूर्ण पानी या गाय के दूध से खाते रहें। खटाई, अधिक मिर्च-मसाले, बेहद गर्म व बहुत ठंडी चीजों से  कुछ दिनों तक दूरी बनाकर रखें। यदि आपको कब्ज की शिकायत न हो तो यकीनन इस आयुर्वेदिक नुस्खे से मात्र 60 ही दिनों में आपका काया कल्प हो जाएगा।आपको देखकर सहसा लोगों को अपनी आंखों को भरोसा ही नहीं होगा।

सोमवार, 16 मई 2011


अनेक रोग नाशक भी है पपीता

पपीता एक ऐसा मधुर फल है जो सस्ता, सपरिचित एवं सर्वत्र सुलभ है। यह फल प्राय: बारहों मास पाया जाता है। किन्तु फरवरी से मार्च तथा मई से अक्तूबर के बीच का समय पपीते की ऋतु मानी जाती है। कच्चा पपीता हरे रंग का तथा पकने पर पीले रंग का हो जाता है। कच्चे पपीते में विटामिन ‘ए’ तथा पके पपीते में विटामिन ‘सी’ की मात्रा भरपूर पायी जाती है।
आयुर्वेद में पपीता (पपाया) को अनेक असाध्य रोगों को दूर करने वाला बताया गया है। संग्रहणी, आमाजीर्ण, मन्दाग्नि, पाण्डुरोग (पीलिया), प्लीहा वृध्दि, बन्ध्यत्व को दूर करने वाला, हृदय के लिए उपयोगी, रक्त के जमाव में उपयोगी होने के कारण पपीते का महत्व हमारे जीवन के लिए बहुत अधिक हो जाता है।
पपीते के सेवन से चेहरे पर झुर्रियां पड़ना, बालों का झड़ना, कब्ज, पेट के कीड़े, वीर्यक्षय, स्कर्वी रोग, बवासीर, चर्मरोग, उच्च रक्तचाप, अनियमित मासिक धर्म आदि अनेक बीमारियां दूर हो जाती है। पपीते में कैल्शियम, फास्फोरस, लौह तत्व, विटामिन- ए, बी, सी, डी प्रोटीन, कार्बोज, खनिज आदि अनेक तत्व एक साथ हो जाते हैं। पपीते का बीमारी के अनुसार प्रयोग निम्नानुसार किया जा सकता है।
१) पपीते में ‘कारपेन या कार्पेइन’ नामक एक क्षारीय तत्व होता है जो रक्त चाप को नियंत्रित करता है। इसी कारण उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) के रोगी को एक पपीता (कच्चा) नियमित रूप से खाते रहना चाहिए।
२) बवासीर एक अत्यंत ही कष्टदायक रोग है चाहे वह खूनी बवासीर हो या बादी (सूखा) बवासीर। बवासीर के रोगियों को प्रतिदिन एक पका पपीता खाते रहना चाहिए। बवासीर के मस्सों पर कच्चे पपीते के दूध को लगाते रहने से काफी फायदा होता है।
३) पपीता यकृत तथा लिवर को पुष्ट करके उसे बल प्रदान करता है। पीलिया रोग में जबकि यकृत अत्यन्त कमजोर हो जाता है, पपीते का सेवन बहुत लाभदायक होता है। पीलिया के रोगी को प्रतिदिन एक पका पपीता अवश्य खाना चाहिए। इससे तिल्ली को भी लाभ पहुंचाया है तथा पाचन शक्ति भी सुधरती है।
४) महिलाओं में अनियमित मासिक धर्म एक आम शिकायत होती है। समय से पहले या समय के बाद मासिक आना, अधिक या कम स्राव का आना, दर्द के साथ मासिक का आना आदि से पीड़ित महिलाओं को ढाई सौ ग्राम पका पपीता प्रतिदिन कम से कम एक माह तक अवश्य ही सेवन करना चाहिए। इससे मासिक धर्म से संबंधित सभी परेशानियां दूर हो जाती है।
५) जिन प्रसूता को स्तनों में दूध कम बनता हो, उन्हें प्रतिदिन कच्चे पपीते का सेवन करना चाहिए। सब्जी के रूप में भी इसका सेवन किया जा सकता है। इससे स्तनों में दूध की मात्रा अधिक उतरने लगती है।
६) सौंदर्य वृध्दि के लिए भी पपीते का इस्तेमाल किया जाता है। पपीते को चेहरे पर रगड़ने से चेहरे पर व्याप्त कील मुंहासे, कालिमा व मैल दूर हो जाते हैं तथा एक नया निखार आ जाता है। इसके लगाने से त्वचा कोमल व लावण्ययुक्त हो जाती है। इसके लिए हमेशा पके पपीते का ही प्रयोग करना चाहिए।
७) कब्ज सौ रोगों की जड़ है। अधिकांश लोगों को कब्ज होने की शिकायत होती है। ऐसे लोगों को चाहिए कि वे रात्रि भोजन के बाद पपीते का सेवन नियमित रूप से करते रहें। इससे सुबह दस्त साफ होता है तथा कब्ज दूर हो जाता है।
८) समय से पूर्व चेहरे पर झुर्रियां आना बुढ़ापे की निशानी है। अच्छे पके हुए पपीते के गूदे को उबटन की तरह चेहरे पर लगायें। आधा घंटा लगा रहने दें। जब वह सूख जाये तो गुनगुने पानी से चेहरा धो लें तथा मूंगफली के तेल से हल्के हाथ से चेहरे पर मालिश करें। ऐसा कम से कम एक माह तक नियमित करें।
९) नए जूते-चप्पल पहनने पर उसकी रगड़ लगने से पैरों में छाले हो जाते हैं। यदि इन पर कच्चे पपीते का रस लगाया जाए तो वे शीघ्र ठीक हो जाते हैं।
१०) पपीता वीर्यवर्ध्दक भी है। जिन पुरुषों को वीर्य कम बनता है और वीर्य में शुक्राणु भी कम हों, उन्हें नियमित रूप से पपीते का सेवन करना चाहिए।
११) हृदय रोगियों के लिए भी पपीता काफी लाभदायक होता है। अगर वे पपीते के पत्तों का काढ़ा बनाकर नियमित रूप से एक कप की मात्रा में रोज पीते हैं तो अतिशय लाभ होता है

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