स्वप्नदोष मिटाकर करें ओज-तेज की रक्षा
- सूखा धनिया पीसकर उसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर रोज सुबह ठंडे पानी से 3-3 ग्राम खाया करें।
- मुलहठी का 3 ग्राम चूर्ण शहद के साथ चाटें।
- बबूल की पत्ती व छाल को पीसकर दो ग्राम चूर्ण सुबह-शाम सेवन करें।
- आँवला चूर्ण और मिश्री के समभाग मिश्रण में 20 प्रतिशत हल्दी मिला के रखें। 4-5 ग्राम रोज पानी के साथ लेने से भाइयों को धातुक्षय से और बहनों को सफेद पानी की तकलीफ से आराम मिलता है।
गंजापन दूर करने के लिए
बच्चों के लिए शक्ति संवर्धक नाश्ता
बाजरे के आटे में तिल मिलाकर बनायी गयी रोटी पुराने गुड़ व घी के साथ खाना, यह शक्ति-संवर्धन का उत्तम स्रोत है। 100 ग्राम बाजरे से 45 मि.ग्रा कैल्शियम, 5 मि.ग्रा. लौह व 361 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। तिल व गुड़ में भी कैल्शियम व लौह प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इससे जल्दी भूखभी नहीं लगेगी । सर्दियों में ही करो ।
पंचगव्य का पान करते समय
बड़ ( बरगद )
· बवासीर , वीर्य का पतलापन , शीघ्रपतन , प्रमेह स्वप्नदोष आदि रोगों में बड़ का दूध अत्यंत लाभकारी है | प्रातः सूर्योदय के पूर्व वायुसेवन के लिए जाते समय २-३ बताशे साथ में ले जाये | बड़ की कलि को तोड़कर एक-एक बताशे में बड़ के दूध की ४-५ बूंद टपकाकर खा जायें | धीरे-धीरे बड़ के दूध की मात्रा बढातें जायें | ८ – १० दिन के बाद मात्रा कम करते-करते चालीस दिन यह प्रयोग करें|
· बड़ का दूध दिल , दिमाग व जिगर को शक्ति प्रदान करता है एवं मूत्र रुकावट ( मूत्रकृच्छ ) में भी आराम होता है | इसके सेवन से रक्तप्रदर व खुनी बवासीर का रक्तस्राव बंद होता है | पैरों की एडियों में बड़ का दूध लगाने से वे नहीं फटती | चोट , मोच और गठिया रोग में इसकी सुजन पर इस दूध का लेप करने से बहुत आराम होता है |
· वीर्य विकार व कमजोरी के शिकार रोगियों को धैर्य के साथ लगातार ऊपर बताई विधि के अनुसार इसका सेवन करना चाहिए |
· बड़ की छाल का काढा बनाकर प्रतिदिन एक कप मात्रा में पीने से मधुमेह ( डायबिटीज ) में फ़ायदा होता है व शरीर में बल बढ़ता है |
· उसके कोमल पत्तों को छाया में सुखाकर कूट कर पीस लें | आधा लीटर पानी में एक चम्मच चूर्ण डालकर काढा करें | जब चौथाई पानी शेष बचे तब उतारकर छान लें और पीसी मिश्री मिलाकर कुनकुना करके पियें | यह प्रयोग दिमागी शक्ति बढाता है व नजला-जुकाम ठीक करता है |
पालक
· पालक के पत्तों में पर्याप्त औषधीय गुण विद्यमान है | पालक में लोह और ताम्बे के अंश होने के कारण यह पाण्डुरोग के लिए पथ्य है | यह रक्त को शुद्ध वहड्डियों को मजबूत बनाती है |
· पाचन तंत्र के लिए यह अत्यंत उपयोगी है | इसके नियमित सेवन से उदर-विकारों व कब्ज से मुक्ति मिलती है व भूख भी खुलकर लगती है |
· इसके नियमित सेवन से गर्भवती महिला को प्रसव के समय अधिक परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता |
· यह वायु करनेवाली , शीतल व मधुमेह के रोग में भी अत्यंत गुणकारी है |
· इसके बीज यकृतरोग , पीलिया व पित्तप्रकोप को मिटाते है |
· कफ और श्वास संबंधी रोगों में भी ये हितकारी है |
· खांसी और गले की जलन तथा फेफड़ों की सुजन में पालक के रस के गराटे करने से लाभ होता है |
· बाल अधिक झड़ने तथा बालों में रुसी की शिकायत होने पर पालक के उबले रस में नींबू का रस समानमात्रा में मिलाकर सिर धोने से इस समस्या से छुटकारा मिलेगा |
· दांतों में पायरिया की बिमारी होने पर कुछ दिन रोज प्रातःकाल आधा गिलास पालक का रस खाली पेट लें | इसके अलावा कच्चा पालक चबा-चबाकर खायें |पालक के रस में गाजर का रस मिलाकर पीने से मसूड़ों से खून आना बंद हो जाता है |
· पालक के पत्ते नीम की पत्तियों के साथ पीसकर बनाया हुआ लेप मवाद भरे फोड़ों पर लगाने से खराब रक्त बाहर निकल जाएगा और फोड़ा ठीक हो जाएगा |
· जले हुए अंग पर पालक के पीसे हुए पत्तों का तत्काल लेप करने से जलन शांत होगी व फफोले नहीं पड़ेंगे |
· किसी दवा का प्रतिकूल असर ( साइड इफेक्ट ) होने या कोई विषैली वस्तु खा लेने पर पानी में पालक उबालकर प्रभावित व्यक्ति में अदरक का थोड़ा-सा रस मिलाकर प्रभावित व्यक्ति को देने से तत्काल राहत मिलती है |
· रक्तालप्ता की बिमारी में पालक की सब्जी का नियमित सेवन व आधा गिलास पालक के रस में दो चम्मच शहद मिलाकर ५० दिन पियें | इससे काफी फ़ायदा होगा |
· पालक के नियमित सेवन से समस्त विकार दूर होकर चेहरे पर लालिमा , शरीर में स्फूर्ति , उत्साह , शक्ति-संचार व रक्त -भ्रमण तेजी से होता है | इसके निरंतर सेवन से चेहरे के राग में निखार आ जाता है | नेत्रज्योति बढती है |
· पालक पीलिया , उन्माद , हिस्टीरिया , प्यास , जलन , पित्तज्वर में भी लाभ करता है |
विशेष : पालक की सब्जी वायु करती है अतः वर्षाकाल में इसका सेवन न करे| इसके पत्तों में सूक्ष्म जंतु भी होते है अतः : गर्म पानी से धोने के बाद ही इसका उपयोग करें |
विशेष : पालक की सब्जी वायु करती है अतः वर्षाकाल में इसका सेवन न करे| इसके पत्तों में सूक्ष्म जंतु भी होते है अतः : गर्म पानी से धोने के बाद ही इसका उपयोग करें |
· अच्छी सेहत के लिए हल्का गर्म पानी हल्का गुनगुना पानी पीने से शरीर पर बहुत ही अच्छा प्रभाव पड़ता है , इससे खून का दौरा भी बढ़ता है और रोगप्रतिरोधी शक्ति भी बढ़ती है जिससे शरीर से विषैले पदार्थ मूत्र के द्वारा बाहर निकल जाते है | तरिका : पानी को हल्का गर्म करके थर्मस में भर ले | उसमें से थोडा-थोड़ा सारा दिन पीते रहें |
शरीर के अंगों की सुन्नता व थकावट
पटाखों से जलने पर
पटाखों से जलने पर जले हुए स्थान पर कच्चे आलू के पतले पतले चिप्स काट कर रख दें या आलू का रस लगा दें । और कुछ ना लगाये । इससे १-२ घंटे में आराम हो जायेगा । अथवा तो सर्व गुण तेल से भी आराम होता है ।
कब्ज़ में
दांत-मसूड़ों का दर्द
सफ़ेद फिटकरी व सेंधा नमक दोनों बराबर मात्रा में लेकर खूब बारीक पीसें व छान कर रख लें । दांत व मसूड़ों में दर्द होने पर हथेली में इस मिश्रण को लेकर दो-तीन बूँद सरसों का तेल मिलाकर धीरे-धीरे मसाज करें । कुछ देर बाद कुल्ला कर लें। यह प्रयोग सुबह-शाम दोहराएँ । आराम होने पर यह प्रयोग बंद कर दें ।
फोड़े-फुंसी की चिकित्सा
थोड़ी सी साफ़ रुई पानी में भिगो दें, फिर हथेलियों से दबाकर पानी निकाल दें । तवे पर थोड़ा-सा सरसों का तेल डालें और उसमे इस रुई को पकाएं । फिर उतारकर सहन कर सकने योग्य गर्म रह जाय, तब इसे फोड़े पर रखकर पट्टी बाँध दें । ऐसी पट्टी सुबह-शाम बाँधने से एक-दो दिन में फोड़ा पककर फूट जायेगा । उसके बाद सरसों के तेल की जगह शुद्ध घी का उपयोग उपरोक्त विधि के अनुसार करने से घाव भरके ठीक हो जाता है ।
नीम का धुआं
Tuesday 5 October 2010
तुलसी व तुलसी-माला की महिमा
तुलसीदल एक उत्कृष्ट रसायन है। यह गर्म और त्रिदोषशामक है। रक्तविकार, ज्वर, वायु, खाँसी एवं कृमि निवारक है तथा हृदय के लिए हितकारी है।
- सफेद तुलसी के सेवन से त्वचा, मांस और हड्डियों के रोग दूर होते हैं।
- काली तुलसी के सेवन से सफेद दाग दूर होते हैं।
- तुलसी की जड़ और पत्ते ज्वर में उपयोगी हैं।
- वीर्यदोष में इसके बीज उत्तम हैं तुलसी की चाय पीने से ज्वर,आलस्य, सुस्ती तथा वातपित्त विकार दूर होते हैं, भूख बढ़ती है।
- जहाँ तुलसी का समुदाय हो, वहाँ किया हुआ पिण्डदान आदि पितरों के लिए अक्षय होता है। यदि तुलसी की लकड़ी से बनी हुई मालाओं से अलंकृत होकर मनुष्य देवताओं और पितरों के पूजनादि कार्य करे तो वह कोटि गुना फल देने वाला होता है।
- तुलसी सेवन से शरीर स्वस्थ और सुडौल बनता है। मंदाग्नि,कब्जियत, गैस, अम्लता आदि रोगों के लिए यह रामबाण औषधि सिद्ध हुई है।
- गले में तुलसी की माला धारण करने से जीवनशक्ति बढ़ती है,आवश्यक एक्युप्रेशर बिन्दुओं पर दबाव पड़ता है, जिससे मानसिक तनाव में लाभ होता है, संक्रामक रोगों से रक्षा होती है तथा शरीर स्वास्थ्य में सुधार होकर दीर्घायु की प्राप्ति होती है। शरीर निर्मल, रोगमुक्त व सात्त्विक बनता है। इसको धारण करने से शरीर में विद्युतशक्ति का प्रवाह बढ़ता है तथा जीव-कोशों द्वारा धारण करने के सामर्थ्य में वृद्धि होती है। गले में माला पहने से बिजली की लहरें निकलकर रक्त संचार में रूकावट नहीं आनि देतीं । प्रबल विद्युतशक्ति के कारण धारक के चारों ओर चुम्बकीय मंडल विद्यमान रहता है। तुलसी की माला पहनने से आवाज सुरीली होती है, गले के रोग नहीं होते, मुखड़ा गोरा, गुलाबी रहता है। हृदय पर झूलने वाली तुलसी माला फेफड़े और हृदय के रोगों से बचाती है। इसे धारण करने वाले के स्वभाव में सात्त्विकता का संचार होता है। जो मनुष्य तुलसी की लकड़ी से बनी हुई माला भगवान विष्णु को अर्पित करके पुनः प्रसाद रूप से उसे भक्तिपूर्वक धारण करता है, उसके पातक नष्ट हो जाते हैं।
- कलाई में तुलसी का गजरा पहनने से नब्ज नहीं छूटती, हाथ सुन्न नहीं होता, भुजाओं का बल बढ़ता है।
- तुलसी की जड़ें कमर में बाँधने से स्त्रियों को, विशेषतः गर्भवती स्त्रियों को लाभ होता है। प्रसव वेदना कम होती है और प्रसूति भी सरलता से हो जाती है।
- कमर में तुलसी की करधनी पहनने से पक्षाघात नहीं होता,कमर, जिगर, तिल्ली, आमाशय और यौनांग के विकार नहीं होते हैं।
- तुलसी की माला पर जप करने से उँगलियों के एक्यूप्रेशर बिन्दुओं परदबाव पड़ता है, जिससे मानसिक तनाव दूर होता है ।
- इसके नियमित सेवन से टूटी हड्डियाँ जुड़ने में मदद मिलती हैं ।
- तुलसी की पत्तियों के नियमित सेवन से क्रोधावेश एवं कामोत्तेजना परनियंत्रण रहता है ।
- तुलसी के समीप पड़ने, संचिन्तन करने से, दीप जलने से और पौधे कीपरिक्रमा करने से पांचो इन्द्रियों के विकार दूर होते हैं ।
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