प्रसूता की देखभाल
प्रसूति के तुरंत बाद पेट पर रुई की मुलायम गद्दी रखकर कसकर पट्टा बाँधने से वायु-प्रकोप न होकर पेट वे पेड़ू अपनी मूल स्थिति में आते हैं। प्रसूति के बाद थकान होने से प्रसूता को सूखे, स्वच्छ कपड़े पहनाकर कान में रुई डालके ऊपर से रूमाल (स्कार्फ) बाँधकर 4-5 घंटे एकांत में सुला दें। प्रथम 10 दिन उठने बैठने में सावधानी रखनी चाहिए अन्यथा गर्भाशय खिसक जाने व दूसरे अवयवों को नुकसान पहुँचने की संभावना होती है। 10 दिन बाद प्रसूता अपने आवश्यक काम करे पर मेहनत के काम सवा मास तक न करे। डेढ़ महीने तक प्रसूता को किसी प्रकार की विरेचक (दस्तावर) औषधि नहीं लेनी चाहिए। आवश्यकता पड़े तो एनीमा का प्रयोग करना चाहिए। सवा महीने तक प्रसूता को तेल मालिश अवश्य करवानी चाहिए।
प्रसव के बाद दूसरे दिन से लेकर कम-से-कम एक सप्ताह तक, हो सके तो सवा माह तक माता को दशमूल क्वाथ पिलाया जाय तो माता और बच्चे के स्वास्थ्य पर अच्छा असर होता है।
टिप्पणीः गतांक में नवजात शिशु की उल्व की सफाई के लिए सेंधा नमक व घी का प्रयोग तथा स्नान के लिए पीपल व बड़ की छाल का प्रयोग दिया गया था। ये प्रयोग वैद्य की सलाह से तभी करने चाहिए जब बालक की त्वचा मलयुक्त, अधिक चिकनी व लसलसी हो, अन्यथा केवल तिल का तेल लगाकर हलके गर्म पानी से स्नान कराना पर्याप्त है।
सार्स (किलर न्यूमोनिया)
नीम की पत्तियों का धूप करना, उसकी पत्तियों का स्टीमबाथ लेना,नासिका से नीम की पत्तियों की भाप लेना।
सोंठ, कालमिर्च, पीपर, हल्दी, अजवायन जैसी वनस्पतियों के चूर्ण का धूप देने में तथा स्टीमबाथ में उपयोग करना चाहिए।
जहाँ तक संभव हो अच्छी से अच्छी गुणवत्तावाली हल्दी का चूर्ण2-2 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ लेना चाहिए।
20-25 ग्राम अदरक को कूटकर उसका रस निकाल लें तथा उसमें5 ग्राम गुड़ मिलाकर खाली पेट लें अथवा अच्छी गुणवत्तावाली 2 से 3ग्राम सोंठ गुड़ के साथ मिलाकर लें।
यदि बुखार न हो तो दोपहर में भोजन करने से पहले देशी गाय का चम्मच शुद्ध घी हलके गरम पानी के साथ लें।
किसी भी प्रकार की बीमारी में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पानी को उबालकर ठंडा करके पीना चाहिए और संभव हो सोना, चाँदी के टुकड़े पानी में डालने चाहिए।
सभी प्रकार के संक्रामक रोगों में मांसाहार तथा कत्लखाने बंद करने चाहिए।
सामान्य रूप से विषाणु (वायरस) गर्मी नहीं सह सकते, इसलिए संक्रामक रोगों में गर्मीवाले वातावरण में अधिक रहना चाहिए तथा एयरकंडीशन, कूलर, पंखे का यथासंभव कम से कम उपयोग करना चाहिए।
तुलसी, पुदीना के रस या अर्क का प्रयोग करें। तुलसी के गमले लगायें, तुलसी के पत्ते की माला पहनें। सुबह तुलसी के 5-7 पत्ते चबाकर पानी पी लें यह विशेष गुणकारी है।
त्रिकटु चूर्ण या छोटी पीपर का 1 ग्राम चूर्ण शहद के साथ लें। इनकी तासीर गर्म है इसलिए अधिक मात्रा न लें।
शहद के फायदे
• प्रातः और सायं गुनगुने पानी में मिलाकर पीने से शरीर की चर्बी कम होती है। गर्मियों में बड़े गिलास में २ चम्मच शहद और नींबू का रस मिलाकर शहद की शिकंजी पीने से शरीर को तत्काल ऊर्जा मिलती है और पेशाब भी खुलकर आती है।
• शुद्ध शहद आँखों में लगाने से नेत्रज्योति बढ़ती है।
• अनिद्रा व कब्ज की शिकायत में शहद के नियमित सेवन से लाभ होता है।
• रक्तचाप बढ़ने पर लहसुन के साथ शहद लेना चाहिए।
• बच्चों को नौ मास शहद देने से उन्हें किसी प्रकार का रोग नहीं होता।
• आँतों की शिकायत में आँवले के रस के साथ शहद का सेवन करना चाहिए।
• शहद को अनार के रस में मिलाकर लेने से दिमागी कमजोरी, सुस्ती, निराशा तथा थकावट होती है।
• शुद्ध शहद आँखों में लगाने से नेत्रज्योति बढ़ती है।
• अनिद्रा व कब्ज की शिकायत में शहद के नियमित सेवन से लाभ होता है।
• रक्तचाप बढ़ने पर लहसुन के साथ शहद लेना चाहिए।
• बच्चों को नौ मास शहद देने से उन्हें किसी प्रकार का रोग नहीं होता।
• आँतों की शिकायत में आँवले के रस के साथ शहद का सेवन करना चाहिए।
• शहद को अनार के रस में मिलाकर लेने से दिमागी कमजोरी, सुस्ती, निराशा तथा थकावट होती है।
घमोरियां
दस्त में
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