लेखक - पी. ए. बाला
हर व्यक्ति और उसका जीवन अपने आप में प्रभु का वरदान है, भले नरक सी जिंदगी भी अगर हम भोग रहे हैं तब भी भगवान ने हमें वह क्षमता और सहूलियत दी है, जिससे हम अपने कष्टों को न्यून या खत्म कर सकते हैं । प्रारब्ध, पूर्व और इस जन्म के कर्म इत्यादि का फल तो मिलता है , और मिलता रहेगा ..पर फिर भी भगवान की कृपा से अगर हम संयमित जीवन जिएं तो निश्चित ही दुःख और तकलीफों से रक्षा होगी । कुंडली और ग्रह-विज्ञान व्यक्ति के जीवन का खाका है, जो हमें बताता है कि हमारा जीवन कैसे गुजरेगा, कब कौनसा समय हमारे लिए अच्छा है, कौनसा बुरा और कौनसा सबसे बुरा है । हमें करना सिर्फ इतना होता है कि बुरे समय का पता लगा कर या महसूस करके अपने आपको संयमित कर लें , पर अधिकतर हम ऐसा नही करते , और हम अपनी आदतों से , कर्मों से और निर्णयों से बुरे समय में और बुरा कर रहे होते हैं , जिससे अच्छे समय का फल भी हम नही भोग पाते, यहाँ स्थिति नीम चढ़े करेले के जैसी हो जाती है । अब प्रश्न उठता है कि आखिर करें तो क्या करें ? तो जैसा ऊपर मैंने बताया कि हर व्यक्ति खुद अपने आप में एक दिव्य पुंज है, हर व्यक्ति के अंदर अपनी एक खुद की दिव्य अलौकिक शक्ति मौजूद होती है, जरूरत है हमें उसे सिर्फ जागृत करने की , हम नकारात्मक विचार, क्रियाओं से अपनी उस ऊर्जा को कमजोर कर चुके होते हैं, गंदी कर चुके होते हैं , एक दम से तो हम इसे जागृत नही कर सकते पर निम्नलिखित विधि द्वारा कुछ दिनों व महीनों में हम इस ऊर्जा से फिर से जुड़ सकते हैं , एक बार जुड़ने के पश्चात हम देखेंगे कि जिन समस्याओं के निवारण के लिए हम भटक रहे थे, वह खुद ब खुद हल होती जा रहीं हैं , शुरुआती दौर में छोटी छोटी समस्याओं का निवारण होगा, उसके बाद जैसे जैसे आप इस क्रिया में आगे बढ़ेंगे, आप देखेंगे कि बड़ी समस्याओं से भी आपको मुक्ति प्राप्त हो रही है , यह क्रिया बिना किसी पर प्रपंच और आडम्बर के है , बस इस क्रिया में आपको नित्य सिर्फ 10 मिनट का समय देना है , चित्र में दिया गया मन्त्र अपनी दिव्य अलौकिक ऊर्जा को जागृत करने का अति प्रभावशाली मन्त्र है, जिसकी विधि इस प्रकार है :
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