लेखक - पी. ए. बाला
आज आपको ऐसे दुर्लभ और अचूक प्रयोग के बारे में बताऊंगा जो कभी विफल नही होगा , यह प्रयोग उन सभी कार्यों को प्रतिपादित करने में सहयोग करेगा, जिसको करने में आपने कई प्रयास किये हैं, बार बार किये हैं । यहाँ कार्यों के प्रयास की बात हो रही है, न कि उपायों और प्रयोगों की ... जैसे आप नौकरी पाने का बहुत प्रयास किये, शादी का, रोग मुक्ति का, संतान होने के लिए इत्यादि बहुत से कार्य जो आप के अथक प्रयासों के बावजूद फलित नही हो रहे हैं । ऐसे कार्यों को फलित करने के लिए एक दुर्लभ दिव्य प्रयोग बता रहा हूँ , यह प्रयोग जितना सरल है उतना कठिन भी है, क्योंकि इस प्रयोग में आपको ऐसे पीपल, बरगद, नीम का पेड़ चाहिए होगा जो बिल्कुल आपस में जुड़े हुए हों, उनकी जड़ एक हो , आपस में तने, शाखाएं मिली हुई हों आपको बस एक पेड़ ऐसा ढूंढना है, एक बार ऐसा वृक्ष मिल जाये तो फिर बाकी प्रयोग सरल है , प्रयोग इस प्रकार से है :
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उपरोक्त बताया वृक्ष मिल जाने पर आप किसी भी दिन यह प्रयोग कर सकते हैं , इसमें आपको देसी गाय (गिर गाय) के घी का दिया इस वृक्ष के नीचे सात बार जलाना है , जलाने का तरीका इस प्रकार है कि पहले तीन दिन आपको दिया अनवरत जलाना है , इसके बाद सात दिन बाद एक बार फिर उसके भी सात दिन बाद एक बार, फिर उसके 15 दिन बाद एक बार और फिर उसके 15 दिन बाद एक बार और आखिरी बार जिस दिन दीपक जलावें उस दिन त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) तीनों को प्रणाम करके उनको निमंत्रण देना है कि आप तीनों की दिव्य शक्ति का मैं आह्वान करता हूँ, वह सदा मेरे साथ रहें , ऐसा कह कर घर आ जाएं । अब ऊपर बहुत आसान तरीके से प्रयोग को समझा दिया है फिर भी मुझे पता है कि कई लोगों को यह समझ नही आएगा , तो एक सरल तरीके से और समझा देता हूँ । मान लीजिए आपने कल यानी 16 जुलाई को पहला दीपक जलाया तो 17, 18 जुलाई को क्रमशः दूसरा और तीसरा दीपक जलाएंगे , फिर चौथा दीपक सातवें दिन यानी 25 जुलाई को जलाएंगे और फिर उसके सातवें दिन 1 अगस्त को जलाएंगे , फिर पंद्रहवें दिन 16 अगस्त को जलाएंगे और अंतिम दीपक उसके पंद्रहवें दिन यानी 31 अगस्त को जलाएंगे । आशा करता हूँ कि अब सबको समझ आ जायेगा, अगर अब भी समझ न आये तो फिर प्रयोग मत कीजियेगा । अब इस प्रयोग के कुछ नियम और निर्देश हैं , जो इस प्रकार हैं :
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यह प्रयोग किसी भी दिन शुरू किया जा सकता है ।
इस प्रयोग में केवल देसी गिर गाय के घी का प्रयोग करें
इस प्रयोग में बीच में कोई दिन रविवार को पड़ जाए तो यह नही सोचें कि रविवार को पीपल पर दीपक नही जलता है, दीपक जला सकते हैं, रविवार को पीपल का स्पर्श नही कर सकते ।
इस प्रयोग की अवधि में ही आपका कार्य सिद्ध हो जाएगा, ऐसा होने पर भी प्रयोग पूरा करें ।
महिलाएं अगर यह प्रयोग करती हैं, और बीच में महावारी के समय अपने परिवार के किसी भी सदस्य से उस दिन दीपक जलवा सकती हैं, फिर ठीक होने पर खुद अनवरत करें ।
यह प्रयोग बताये तीनों वृक्ष एक साथ मिले हुए हों उसी पर करें, कोई भी दो वृक्ष मिले उस पर यह प्रयोग न करें या अलग अलग तीनों वृक्षों पर न करें ।
अंतिम दिन त्रिदेवों को बताये अनुसार आह्वान करना न भूलें ।
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तीन पेड़ पीपल, बरगद, नीम का पेड़ परस्पर एक दूसरे से मिले हों , उसको वृक्ष की त्रिवेणी कहा जाता है, और माना जाता है ऐसी जगह पर ब्रह्म शक्ति का निवास माना जाता है । ऐसा स्थान बेहद पवित्र होता है । यह प्रयोग वर्तमान ब्रह्मलीन 116 वर्षीय दंडी स्वामी जी के श्रीमुख से निकल हुआ है, जो बहुत पहुंचे हुए निस्वार्थ सेवा संत थे । इसे हल्के में न लेवें और जैसा बताया है, वैसा ही करें, अपने हिसाब से उसमें कुछ भी घटाए या बढ़ाएं नही ।
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